क्यों कांग्रेस नेता के एजेंडे पर आगे बढ़ा RSS का संगठन? मुस्लिम-क्रिश्चियनों से जुड़ा है मामला
नई दिल्ली, 21 जून: धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट से बाहर किया जाए। इस मांग को लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक से जुड़ा संगठन जनजाति सुरक्षा मंच देशभर में रैलियां आयोजित कर रहा है। इसने सैकड़ों सांसदों तक अपनी बात पहुंचाई है और हजारों विधायकों और पार्षदों से संपर्क की कोशिशों में जुटा है। मंच का कहना है कि ऐसे लोग दोहरा लाभ ले रहे हैं और कठिन मेहनत कर जीने-खाने वाले असली आदिवासियों का हक छीन रहे हैं। लेकिन, दिलचस्प बात ये है कि इस अभियान की शुरुआत एक कांग्रेसी सांसद ने की थी और इसपर संयुक्त संसदीय समिति भी बनाई गई थी।
धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को एसटी से बाहर करने की मांग
राष्ट्रव्यापी जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने से पहले आरएसएस से जुड़ा संगठन जनजाति सुरक्षा मंच धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट से बाहर करने का आंदोलन तेज करने की योजना बना रहा है। जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की मौजूदा संख्या का पता चलेगा। अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिलने का मतलब है कि इन आदिवासियों को सरकारी नौकरियों, शिक्षा से लेकर चुनावों में भी आरक्षण का लाभ मिलता है।
आदिवासियों का अधिकार छीना जा रहा है-मंच
जनजाति सुरक्षा मंच के शरद चवन ने कहा है, 'लोगों का एक वर्ग, जिन्होंने दूसरा धर्म अपना लिया है, उन्हें दोहरा फायदा मिल रहा है। वह अपने बच्चों को क्रिश्चियन स्कूलों में डालकर अल्पसंख्यकों वाला फायदा लेते हैं, लेकिन अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नौकरी करते हैं। वे उन आदिवासियों के अधिकार छीन रहे हैं, जो अपनी परंपराओं को जिंदा रखने के लिए कड़ा परिश्रम कर रहे हैं।' उन्होंने बताया कि उनका मंच 273 एससी-एसटी बहुल जिलों में 171 रैलियां पहले ही आयोजित कर चुका है और विभिन्न दलों के 451 सांसदों से समर्थन मांग चुका है। अगले महीने यह मंच गुजरात के एसटी बहुल जिलों नर्मदा,वलसाड और भरूच में कम से कम 4, झारखंड में 11 और छत्तीसगढ़ में 13 रैलियां आयोजित कर रहा है। इसके अलावा देशभर के कम से कम 3,000 एमएलए और एमएलसी तक पहुंचने की कोशिशों में जुटा हुआ है।
2011 में 82 समूहों ने 'ओआरपी' श्रेणी में लिखवाया था नाम
मध्य प्रदेश के रतलाम-झाबुआ क्षेत्र के सांसद गुमान सिंह , गुजरात के भरूच से सांसद मनसुखभाई वसावा ने इन कोशिशों का समर्थन किया है और उन आदिवासियों का नाम एसीटी की लिस्ट से हटाने के लिए रैली आयोजित करने का आह्वान किया है, जो धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, ताकि उन्हें निश्चित तौर पर उस आरक्षण का लाभ ना मिले, जो खासकर अनुसूचित जनजातियों के लिए हैं। हालांकि, इनके खिलाफ कुछ आदिवासी संगठन विरोध में भी रैलियां आयोजित कर रहे हैं और आरएसएस पर अनुसूचित जनजाति के हिंदूकरण करने का आरोप लगा रहे हैं। 2011 की जनगणना के दौरान भी जन जागरण कार्यक्रम और डिलिस्टिंग अभियान ने जोड़ पकड़ा था। तब 82 छोटे स्थानीय धार्मिक मतों ने खुद का नाम 'अन्य धर्म और विश्वास' (Other Religions and Persuasion) वाली श्रेणी में लिखवाया था। यह भारत के 6 धर्मों-हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध और जैन से अलग है।
संघ ओआरपी पर भी जताता है चिंता
आरएसएस का संगठन अपनी रैलियों के माध्यम से आदिवासी समूहों की ओर से 'अन्य धर्म और विश्वास' (ओआरपी) की पहचान बताने का भी विरोध कर रहा है। क्योंकि, उसका मानना है कि आखिरकार इनका ईसाई धर्म में धर्मांतरण हो जाएगा। 2011 में 79 लाख लोगों ने खुद की पहचान ओआरपी बताई थी। जबकि, 1991 में इनकी संख्या सिर्फ 42 लाख थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की उच्च स्तरीय बैठकों में में इसे 'हिंदू समाज के लिए गंभीर चिंता की बात' मानी गई है।
कांग्रेस नेता ने 1960 के दशक में उठाया था मुद्दा
लेकिन, दिलचस्प बात ये है कि अब जिस मुद्दे पर आरएसएस से जुड़ा संगठन जनजाति सुरक्षा मंच संघर्ष कर रहा है, उसकी मांग पहली बार कांग्रेस के तत्कालीन सांसद कार्तिक ओरांव ने 1960 के दशक में उठाई थी। उन्होंने दावा किया था कि धर्मांतरण कराने वाले अनुसूचित जनजाति के लोग आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ ले रहे हैं। उनकी मांग के बाद 1968 में इस मामले की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति भी बनाई गई थी। (तस्वीरें- प्रतीकात्मक)