राजस्थान: सबसे कम उम्र की महिला MBBS सरपंच को कितना जानते हैं आप?
राजस्थान के भरतपुर ज़िले का कामां पंचायत. यहां न तो लड़कियां डॉक्टरी की पढ़ाई करती हैं न ही इंजीनियरिंग की. ग्रेजुएशन और बीएड की पढ़ाई हाल फिलहाल में कुछ लड़कियों ने ज़रूर शुरू की है.
लेकिन शहनाज़ ने कामां में एक नया कीर्तिमान रच दिया है. वो कामां पंचायत की पहली एमबीबीएस सरपंच बनी हैं.
राजस्थान के भरतपुर ज़िले का कामां पंचायत. यहां न तो लड़कियां डॉक्टरी की पढ़ाई करती हैं न ही इंजीनियरिंग की. ग्रेजुएशन और बीएड की पढ़ाई हाल फिलहाल में कुछ लड़कियों ने ज़रूर शुरू की है.
लेकिन शहनाज़ ने कामां में एक नया कीर्तिमान रच दिया है. वो कामां पंचायत की पहली एमबीबीएस सरपंच बनी हैं.
शहनाज़ सिर्फ 24 साल की हैं और एमबीबीएस की पढ़ाई का चौथा साल है.
इसी महीने की 30 तारीख़ से शहनाज़ को गुरुग्राम के सिविल अस्पताल में अपनी इंटरशिप शुरू करनी है. वो आगे पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी करनी चाहती थीं.
लेकिन डॉक्टर बनने से पहले शहनाज़ सरपंच बन गईं.
शहनाज़ राजनीति में उतरना चाहती थीं, लेकिन इतनी जल्दी भी नहीं.
अपने इस फैसले के बारे में बीबीसी से बातचीत करते हुए शहनाज़ ने बताया, "पिछले छह महीने में मेरी ज़िंदगी अचानक बदल गई. मुझसे पहले मेरे दादाजी भी यहां से सरपंच थे. लेकिन पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट ने वो चुनाव खारिज़ कर दिया था. उसके बाद से ही चुनाव में घर से कौन खड़ा होगा, इसकी चर्चा शुरू हुई."
राजस्थान में सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए दसवीं पास होना अनिवार्य है. शहनाज़ के दादाजी पर सरपंच के चुनाव में फ़र्ज़ी शैक्षणिक योग्यता का सर्टिफिकेट देने का आरोप था, जिसके बाद कामां का सरपंच चुनाव रद्द कर दिया गया था.
शहनाज़ का पूरा परिवार राजनीति में ही है. उनके दादा 55 साल तक सरपंच रहे. पिता गांव के प्रधान रहे हैं. मां राजस्थान से विधायक, मंत्री और संसदीय सचिव रही हैं. शहनाज़ के सरपंच बनने के बाद वो परिवार की चौथी पीढ़ी हैं, जो राजनीति में जा रही हैं.
अपने फैसले के बारे में वो आगे कहती हैं, "पिताजी अगले साल प्रधान का चुनाव लड़ने वाले हैं. मां इस साल के अंत में होने वाले विधायक के चुनाव की तैयारी में जुटी हैं. इसलिए परिवार की राजनीति की इस विरासत को मैंने खुद ही आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया."
लेकिन क्या ये वंशवाद को बढ़ावा देने जैसा नहीं...?
सवाल के पूरा होने से पहले ही शहनाज़ अपना जवाब देना शुरू करती हैं, "मेरे सरपंच बनने से गांव में बेटियों की पढ़ाई लिखाई का स्तर बेहतर होगा. गांव के दूसरे मां-बाप भी सोचेंगे कि लड़कियों को क्यों न ज़्यादा पढ़ाया जाए? इसकी शुरुआत मेरी मां ने की थी. वो पहली महिला प्रधान बनीं, जिन्होंने गांव से पर्दा प्रथा खत्म की थी."
दरअसल शहनाज़ का नाम कामां में आज चर्चा का विषय इसलिए है, क्योंकि वो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही हैं और इतनी कम उम्र में सरपंच बन गईं हैं.
राजस्थान के इस इलाके में लड़कियों की पढ़ाई पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया जाता है.
राजस्थान के भरतपुर में साक्षरता दर 70.1% है, जो राज्य की साक्षरता दर से बेहतर है.
राजस्थान की साक्षरता दर 66.1 फ़ीसदी है. लेकिन भरतपुर में लड़कियों के मुकाबले लड़के ज़्यादा पढ़े लिखे हैं.
शहनाज़ ने 5वीं क्लास तक पढ़ाई जयपुर में की है. 10वीं की पढ़ाई गुरुग्राम के श्रीराम राम स्कूल, अरावली से और 12वीं की पढ़ाई भी डीपीसी मारुति कुंज से की है.
एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए शहनाज़ फिर उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद आ गईं.
पढ़ाई लिखाई के चक्कर में शहनाज़, कामां में सिर्फ गर्मियों की छुट्टियों में ही रहती थीं.
इसके बावजूद पांच गांव में सरपंच के उपचुनाव में उन्हें 195 मतों के अंतर से सरपंच चुन लिया गया.
बेटी की जीत पर शहनाज़ की मां ज़ाहिदा खान ने बीबीसी से कहा, "हमारा परिवार वंशवाद की मिसाल नहीं बल्कि इस बात की मिसाल है कि साल दर साल आप अपने काम को और बेहतर करते हुए लगातार चुनाव जीत सकते हैं."
शहनाज़, मेव मुस्लिम परिवार से आती हैं.
हरियाणा के मेवात और राजस्थान के अलवर और भरतपुर इलाकों में मेव मुस्लिम परिवार ज़्यादा तादाद में रहते हैं. उन्हें आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से बहुत पिछड़ा माना जाता है.
ऐसे परिवार से निकल कर शहनाज़ का सरपंच तक का सफर कामां इलाके की लड़कियों के लिए एक मिसाल है.
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