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पुलवामा हमले से पहले हुर्रियत नेताओं ने पाकिस्तान के विदश मंत्री से की थी बात, जानिए इनका इतिहास

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नई दिल्ली। पुलवामा हमले के बाद सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए जम्मू कश्मीर अलगाववादी नेताओं को मिलने वाली सभी प्रकार की सिक्योरिटी वापस ले ली है। इसमे मिरवाइज, उमर फारूक, अब्दुल गनी भट्ट, बिलाल लोन, हासीम कुरैशी और शाबिर शाह जैसे अलगावादी नेता शामिल है, जिनसे सिक्योरिटी वापस ले ली गई है। हालांकि, पाकिस्तान के सबसे करीबी माने जाने वाले अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी इस लिस्ट में शामिल नहीं है। सरकार ने कहा कि घाटी के इन अलगाववादी नेताओं को दी जा रही सिक्योरिटी और सरकारी वाहन को आज रविवार शाम से ही हटा दिया जाएगा। इसी सप्ताह गुरुवार को पुलवामा में हमले से कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने हुर्रियत नेताओं से फोन पर बात की थी। हुर्रियत पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और आतंकी सगंठनों के साथ लिंक होने के कई बार सबूत सामने आए हैं।

घाटी में रहकर कैसे पाक से नजदिकियां बढ़ाता गया हुर्रियत

नब्बे के विद्रोह में बना था हुर्रियत

नब्बे के दशक में जम्मू कश्मीर में जब विद्रोह अपने चरम पर था, उस वक्त हुर्रियत का जन्म हुआ, जिसे 'ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस' कहा गया। इसमें करीब 10 छोटी-बड़ी अलगावादी पार्टियां थी, जिसमें पीपल्स कॉन्फ्रेंस (अब्दुल गनी लोन), जमात-ए-इस्लामी (सैयद अली शाह गिलानी), अवामी एक्शन कमेटी (मीरवाइज उमर फारूक), पीपुल्स लीग (शेख याकूब), इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (मोहम्मद अब्बास अंसारी), मुस्लिम कांफ्रेंस (अब्दुल गनी भट) जेकेएलएफ (यासीन मलिक) और जेकेएनएफ (नईम अहमद खान) शामिल हुई। मीरवाइज उमर फारूक को इसका चेयरमैन बनाया गया।

अलग-अलग विचारधाराओं का झोला बना हुर्रियत

कश्मीरी अवाम की आवाज बनने के लिए हुर्रियत बन तो गया, लेकिन कुछ महीनों में जब ये सब एक-दूसरे में लड़ना शुरू हुए तो इनकी असलियत सामने आ गई। हुर्रियत एक ऐसा झोला बनकर तैयार हुआ था जिसमें अलग-अलग विचारधाराएं थी। आखिरकार 2003 में हुर्रियत दो टुकड़ों में बंट गया। सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाला समूह इस बात पर अडिग था कि नई दिल्ली के साथ बात तभी संभव है, जब भारत की केंद्र सरकार यह स्वीकार करे कि जम्मू कश्मीर एक विवादित टुकड़ा है, जबकि मीरवाइज के नेतृत्व वाला ग्रुप सरकार के साथ वार्ता चाहता था। लेकिन उसके कुछ सालों के बाद तो मिरवाइज ग्रुप के भी टुकड़े हो गए और उनके साथ रहने वाले यासिन मलिक 2005 में पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद में कश्मीरी अलगाववादियों से मुलाकात करके आ गए और फिर हुर्रियत के बिखरने का सिलसिला जो शुरू हुआ वह थमा ही नहीं।

पाक ने पुलवामा हमले से पहले की थी हुर्रियत नेताओं से बात

कश्मीर को लेकर हुर्रियत कभी एक नहीं दिखा, लेकिन लगभग अलगाववादी नेताओं के लिंक पाकिस्तान से जरुर जुड़ते दिखे। नई दिल्ली ने अगस्त 2014 में इस्लामाबाद से बात करने के लिए हुर्रियत को स्पष्ट मना कर दिया था। हालांकि, इसके बाद भी पाकिस्तान और हुर्रियत नेताओं के बीच बातचीत थमी नहीं। पुलवामा हमले से दो सप्ताह पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी ने हुर्रियत नेता मिरवाइज और गिलानी से फोन पर बात की थी, जिसके बाद भारत ने कड़ा विरोध जताया था। हालांकि, हुर्रियत और पाकिस्तान का पुराना नाता रहा है।

हुर्रियत का पाकिस्तान लिंक

जुलाई 2001: जनरल परवेज मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आगरा शिखर सम्मेलन से पहले नई दिल्ली में अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की थी।

अप्रैल 2005: राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने नई दिल्ली में कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से फिर मुलाकात की थी।

अप्रैल 2007: प्रधानमंत्री शौकत अजीज ने नई दिल्ली की यात्रा पर पाकिस्तान हाउस में अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की थी। उस वक्त अजीज सार्क के प्रमुख के रूप में भारत आए हुए थे।

जुलाई 2011: पाकिस्तान के विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग में हुर्रियत नेताओं सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी।

नवंबर 2013: प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के सुरक्षा और विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के साथ पाकिस्तान उच्चायोग में मुलाकात की थी।

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English summary
Hurriyat: Pakistan foreign minister talked Jammu Kashmir separatists before the Pulwama attack
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