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क्यों माओवादी नेता गणपति की तस्वीर तक नहीं खोज पाई पुलिस

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव मुपल्ला लक्ष्मणा राव उर्फ़ गणपति की जो तस्वीर सुरक्षा एजेंसियों के पास है, वो उस वक़्त की बताई जाती है जब उनकी उम्र 35 साल थी.

इसके अलावा गणपति की कोई और तस्वीर पुलिस या मीडिया के पास नहीं है. गणपति का आख़िरी इंटरव्यू भी माओवादियों के मुखपत्र में दस साल पहले ही छपा बताया जाता है. 

By BBC News हिन्दी
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माओवादी, छत्तीसगढ़
BBC
माओवादी, छत्तीसगढ़

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव मुपल्ला लक्ष्मणा राव उर्फ़ गणपति की जो तस्वीर सुरक्षा एजेंसियों के पास है, वो उस वक़्त की बताई जाती है जब उनकी उम्र 35 साल थी.

इसके अलावा गणपति की कोई और तस्वीर पुलिस या मीडिया के पास नहीं है. गणपति का आख़िरी इंटरव्यू भी माओवादियों के मुखपत्र में दस साल पहले ही छपा बताया जाता है. 'ओपन मैगज़ीन' में भी उनका इंटरव्यू नौ साल पहले छपा था.

इसके बाद ऐसे कोई सबूत नहीं मिले कि गणपति ने कोई साक्षात्कार किसी पत्रकार को दिया हो या अपने संगठन के मुखपत्र में ही उनका कोई इंटरव्यू छापा हो.

69 साल के गणपति आज कैसे दिखते हैं, ये किसी को नहीं मालूम.

देश में कई सरकारी गुप्तचर शाखाएं हैं. जैसे इंटेलिजेंस ब्यूरो और राज्यों के गुप्तचर विभाग. इसके अलावा नक्सल विरोधी अभियान में शामिल केंद्रीय सुरक्षा बलों की भी अपनी गुप्तचर शाखाएं हैं.

जहां सुरक्षा बलों की भारी-भरकम मौजूदगी है, वहां उनके गुप्तचर विभाग के लोग काफी सक्रिय हैं और उन्हें केंद्रीय गुप्तचर एजेंसी के साथ-साथ राज्य पुलिस की एजेंसियों का सहयोग मिलता रहता है.

नक्सल उन्मूलन अभियान के नाम पर इन गुप्तचर एजेंसियों को सरकार की ओर से मोटा बजट मिलता है जिसका लेखा जोखा यानी 'ऑडिट' भी नहीं होता. इसमें और ख़र्चों के अलावा 'सोर्स मनी' भी है. 'सोर्स मनी' का मतलब है वो पैसा जो जानकारी जुटाने के लिए ख़र्च किया गया हो.

मगर इन सबके बावजूद गणपति के बारे में किसी भी एजेंसी के पास कोई ठोस जानकारी नहीं है. सभी एजेंसियां गणपति को लेकर जो जानकारियां साझा करती हैं वो केवल 'अपुष्ट' होती हैं.

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2004 में बने महासचिव

मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ़ गणपति साल 2004 में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव बने. तब 'माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर' यानी 'एमसीसी' और सीपीआई-एमएल (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) 'पीपल्स वॉर ग्रुप' यानी 'पीडब्लूजी' का विलय हुआ था.

अविभाजित आंध्र प्रदेश के करीमनगर ज़िले में पैदा हुए गणपति शिक्षक का काम छोड़ उच्च शिक्षा के लिए वारंगल चले गए.

बताया जाता है कि वारंगल में ही उनका संपर्क पीपल्स वॉर ग्रुप के कोंडापल्ली सीतारमैया से हुआ जो संगठन के महासचिव हुआ करते थे. बाद में गणपति भी पीडब्लूजी के महासचिव बन गए.

बीते साल भर से ख़बरें प्रकाशित हो रही हैं कि गणपति को संगठन के महासचिव के पद से हटा दिया गया है या फिर ख़ुद उन्होंने पद छोड़ दिया है.

इन ख़बरों का कोई आधार नहीं है, पुलिस के दावों को छोड़कर. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है.

अमूमन ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर किसी की नियुक्ति को लेकर संगठन आधिकारिक घोषणा ही करता है.

ये फैसले माओवादियों की सबसे बड़ी बैठक - जिसे वो 'पार्टी कांग्रेस' कहते हैं - उसमें होते हैं. माओवादियों के आख़िरी दस्तावेज बताते हैं कि अंतिम बार उनकी 'पार्टी कांग्रेस' 2007 में हुई थी.

लेकिन, छत्तीसगढ़ पुलिस का दावा है कि 2017 के मार्च महीने में भी माओवादियों की 'पार्टी कांग्रेस' हुई थी. हालांकि, इसकी जानकारी माओवादियों ने सार्वजनिक नहीं की है. ये जानकारी सिर्फ पुलिस के दावों पर ही आधारित है.

इस जानकारी को लेकर भी विरोधाभास है. छत्तीसगढ़ पुलिस कहती है कि 'पार्टी कांग्रेस' हुई थी और इसकी सूचना उनके गुप्तचर विभाग ने जुटाई है. जबकि, नक्सल प्रभावित अन्य राज्यों की पुलिस मानती है कि वो सिर्फ माओवादियों की केंद्रीय कमिटी की बैठक ही थी.

आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की पुलिस का दावा है कि उन्होंने माओवादी छापामारों के साथ विभिन्न स्थानों पर हुई मुठभेड़ों के दौरान जो दस्तावेज बरामद किये हैं, उसी के आधार पर वो ये बात कह रहे हैं.

माओवादी, छत्तीसगढ़
Getty Images
माओवादी, छत्तीसगढ़

कहां हैं बड़े माओवादी नेता

आंध्र प्रदेश की पुलिस जिस केशव राव उर्फ़ बसवराज को भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का नया महासचिव बनाए जाने का दावा कर रही है वो भी अविभाजित आंध्र प्रदेश के सिर्काकुलम जिले के रहने वाले हैं.

बताया जाता है कि कोटेश्वर राव उर्फ़ 'किशन जी' की पश्चिम बंगाल में पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत के बाद केशव राव माओवादी छापामारों की जनमुक्ति छापामार सेना के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन यानी 'सीएमसी' के 'कमांडर इन चीफ़' बन गए थे.

चौंकाने वाली बात ये है कि 62 वर्षीय नम्बला केशव राव की जो तस्वीर गुप्तचर एजेंसियों के पास है वो भी उनके जवानी के दिनों की 'ब्लैक एंड व्हाइट' तस्वीर है. आज वो कैसे दिखते हैं और कहाँ-कहाँ उन्हें देखा गया है इसकी कोई जानकारी किसी के पास नहीं है.

पुलिस और एजेंसियों का दावा है कि गणपति लंबे समय से बीमार चल रहे हैं और संगठन के दूसरे बड़े नेता दबाव डालते रहे हैं कि वो अब पद त्यागकर 'मार्गदर्शक मंडल' में रहें.

अधिकारियों का कहना है कि दबाव डालने वालों में प्रोसेनजीत बोस उर्फ़ 'किशान दा' भी हैं जो विलय के बाद एमसीसी से आए हैं और फिलहाल माओवादियों के पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं.

गणपति के पद से हटने की ख़बरें इस साल सितम्बर माह से ज़्यादा तूल पकड़ने लगीं जब आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम ज़िले में तेलुगूदेशम पार्टी के विधायक सर्वेश्वरा राव और पूर्व विधायक सीवेरी सोमा की माओवादियों ने हत्या कर दी थी.

गणपति और केशव राव के अलावा भी, गुप्तचर एजेंसियों के पास माओवादियों के कई दूसरे बड़े नेताओं की कोई जानकारी नहीं है. उन्हें ये भी नहीं पता कि उनकी दूसरी पंक्ति के नेता कौन हैं और किन इलाक़ों में रहते हैं.

सिर्फ बस्तर की बात करें तो दंडकारण्य विशेष ज़ोनल कमिटी के पूर्व सचिव कोसा अब कहाँ हैं, ज़िंदा भी हैं या नहीं, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है. कोसा के हटने के बाद रमन्ना को सचिव का पद दिया गया है.

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English summary
Police Unable To Find Communist Party Of India (Maoist) General Secretary Ganapathy Picture.
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