NRC: पश्चिम बंगाल में एनआरसी लागू करने पर गुस्सा क्यों हो जाती हैं ममता बनर्जी ?
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बेंगलुरु। एनआरसी के मुद्दे पर केन्द्र सरकार और विपक्ष में घमासान जारी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(एनआरसी)मुद्दे पर लंबे समय से काफी हमलावर रुख अपनाए हुए हैं। उनके भारी विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार ने पिछले माह असम में एनसीआर की अंतिम लिस्ट जारी कर दी। जिसके बाद से लगातार ममता बनर्जी एनआरसी का विरोध करते हुए बयान दे रही हैं कि वह किसी भी हालत में पश्चिम बंगाल में एनआरसी संबंधी प्रक्रिया कभी नहीं होने देंगे। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की।
इसके बाद मीडिया से रुबरु होते हुए ममता बनर्जी ने कहा,''मैं यहां असम के नेशनल सिटिजन रजिस्टर (एनआरसी) की आखिरी लिस्ट से बाहर किए गए 19 लाख लोगों के बारे में चर्चा करने आई थी। मैंने शाह से कहा कि सभी को एनआरसी में शामिल किया जाना चाहिए। बंगाल में एनआरसी की जरूरत नहीं है।''जब से असम में अंतिम एनआरसी सूची जारी की गई है,तब से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी अधिक परेशान हो गयी है। जिस तरह से पश्चिम बंगाल राज्य में जनता के बीच भाजपा का कद बढ़ रहा है उससे अगले वर्ष होने वाले चुनाव परिणामों को लेकर टीएमसी का यूं परेशान होना तो बनता ही है।
मजबूत वोट बैंक
बता दें नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुद्दे पर मुखर होकर विरोध करने वालीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आए दिन पश्चिम बंगाल में होने वाली सभी बुरी चीजों का आरोप बंगाल में बसे दूसरे राज्यों के लोगों पर गढ़ती रही हैं। भारतीयों को बंगाली भाषा में "बोहिरगेटो" यानी कि बाहरी लोग संबोधित कर उन्हें सदा से कटघरे में खड़ा करती आयी हैं।
वहीं दूसरी ओर राजनीतिक फायदे के लिए वह विशेषकर बंगलादेशी घुसपैठियों की हिमायती बनी हुई हैं। वास्तव में ममता बनर्जी ने बीते वर्षों में इन्हीं अवैध प्रवासियों को अपनी वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है। ऐसे में अगर राज्य में एनआरसी लागू होता है तो उनके वोटबैंक में सेंध लगना तय है तभी तो वो बौखलाई हुई हैं। हालांकि, पश्चिम बंगाल में एनआरसी के लिए ममता के विरोध को केवल राज्य में एक वफादार वोट बैंक खोने के संदर्भ में ही नहीं देखा जाना चाहिए।
भाजपा पर हैं निशाना
ममता बनर्जी इस मुद्दे के जरिये भाजपा को एक ऐसी पार्टी के रूप में चित्रित करने का प्रयास कर रही हैं जो बंगाली मुस्लिमों के खिलाफ है, और उन्हें राज्य से बाहर निकालने के लिए एनआरसी ला रही है। ऐसा करके वो राज्य में खुद को मुस्लिम हितैषी के रूप में पेश कर रही हैं ताकि भाजपा राज्य में कहीं भी मजबूत स्टैंड न ले सके। हालांकि, ऐसा करके ममता बनर्जी अपनी पक्षपाती राजनीति और कुशासन को नहीं छुपा सकती हैं।
बीते वर्षों में जिस तरह की राजनीति उन्होंने की है भला वो किससे छुपी है। चाहे हिंदुओं के मौलिक अधिकारों का हनन हो या संघीय व्यवस्था पर हमला या फिर राज्य की कानून व्यवस्था का अपनी स्वार्थ की राजनीति के लिए इस्तेमाल करना हो, ममता ने वो सब किया जो एक राज्य की मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें शोभा नहीं देता। ऐसे में ममता बनर्जी चाहे जो भी कहें उनके कोई भी दांव-पेंच काम नहीं आने वाले हैं।
2005 में कहा बंगाल में घुसपैठ आपदा बन गया है
ममता बनर्जी ने ही संसद में पहली बार 2005 में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के मुद्दे को उठाया था। उन्होंने लोकसभा में कहा था, "बंगाल में घुसपैठ अब एक आपदा बन गई है... मेरे पास बांग्लादेशी और भारतीय मतदाता सूची दोनों हैं। यह बहुत गंभीर मामला है। मैं जानना चाहुंगी कि सदन में इस पर कब चर्चा होगी?"
अब सवाल यह उठता है कि पिछले 14 वर्षों में ऐसा क्या बदलाव आया जिससे टीएमसी सुप्रीमो के रुख में पूरी तरह से यू-टर्न आ गया है। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2005 में ममता बनर्जी की पार्टी राज्य में कम्यूनिस्ट सरकार की प्रमुख विपक्षी थी और उस समय
ममता ने तत्कालीन कम्यूनिस्ट सरकार पर अवैध बांग्लादेशियों को शरण देने का आरोप लगाया था। ममता के कहे बोल पर पर ध्यान दें तो आपको समझ आएगा कि आज भी यह मुद्दा भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। अवैध शरणार्थियों ने मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराना आने वाले समय के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। ये घुसपैठिये ऐसी गतिविधियों में लिप्त पाए गये हैं जो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है।
हालांकि 2005 से लेकर अब तक बंगाल की राजनीतिक परिस्थितियों में भारी परिवर्तन आ चुका है। पश्चिम बंगाल में वामपंथी अपना अस्तित्व खो चुके हैं और टीएमसी पश्चिम बंगाल की राजनीति में तब से हावी रही है। हालांकि, बीजेपी हाल के दिनों में टीएमसी को कड़ी चुनौती दे रही है और लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी ने सभी राजनीति के विशेषज्ञ को चौंकाते हुए 18 सीटें जीती थीं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जिन्होंने 14 वर्ष पहले संसद के निचले सदन में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का जमकर विरोध किया था वही ममता बनर्जी अब अवैध प्रवासियों की पहचान करने के खिलाफ हैं।
तुष्टिकरण की राजनीति के लिए इसे मुद्दा बनाया
यहां ध्यान देने वाली बात है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हमेशा से ही एनआरसी यानि नेशनल सिटिजन रजिस्टर की आलोचक रही हैं तथा पश्चिम बंगाल में इसे लागू न करने के लिए मुखर रही हैं। पिछले साल, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता ने कहा था कि एनआरसी एक राजनीतिक मकसद के साथ किया जा रहा है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा था कि भाजपा लोगों को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी स्थिति को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इससे देश में गृह युद्ध हो सकता है।
बता दें टीएमसी पर अवैध बांग्लादेशियों को वोट बैंक बनाने के आरोप लगते रहे है और इस तरह से एनआरसी का विरोध इस आरोप को और मजबूती देता है। ममता पश्चिम बंगाल में मुस्लिम तुष्टीकरण भी करती रही हैं। अब उन्होंने स्पष्ट रूप से एनआरसी को भी अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के लिए मुद्दा बनाया है।
अवैध प्रवासियों को नकली वोटर आईडी कार्ड दिलाए जा रहे
बता दें कि बांग्लादेशी अप्रवासी भारत के वैध नागरिक नहीं हैं, फिर भी ऐसे आरोप लगते रहे है कि कुछ नेताओं द्वारा इन अवैध प्रवासियों को नकली वोटर आईडी कार्ड दिलाए जा रहे हैं। यहां भी एनसीआर का विरोध करके, टीएमसी ने स्पष्ट रूप से अपने वोटबैंक को मजबूत करने का काम किया है और ऐसा करके वो राज्य के विधानसभा चुनाव में बड़ा फेर बदल करने के सपने देख रही हैं।
घुसपैठ बंगाल की राजनीति की धुरी रही है
विशेषज्ञ कहते हैं कि ममता पर लगातार वोट बैंक की राजनीति के तहत राज्य में सीपीएम से लेकर मौजूदा सरकार तक सभी बांग्लादेशियों की सहायता करती रही हैं। किसी भी राज्य सरकार ने अब तक घुसपैठ पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल नहीं की है।
ममता एनआरसी मुद्दे पर शुरु से अपनी छवि और राजनीति चमकाने का प्रयास कर रही हैं। बता दें घुसपैठ 60 के दशक से ही बंगाल की राजनीति की धुरी रही है। हर राजनीतिक पार्टी इसे अपने-अपने तरीके से भुनाती रही है।
ममता के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के आरोप लगाते रहे हैं। ममता एनआरसी के विरोध के ज़रिए ऐसे आलोचकों का भी यह कर मुंह बंद करती आयी है कि एनआरसी के सूची से बाहर रखे गए लोगों में सिर्फ़ अल्पसंख्यक ही बल्कि हिंदू और हिंदी भाषी भी हैं।
वह दलील देती आयी है कि देश के तमाम राज्यों में बाक़ी राज्यों के लोग रहते हैं। लेकिन अगर एनआरसी की आड़ में लाखों-करोड़ों लोगों को विदेशी घोषित कर दिया गया तो देश में गृहयुद्ध से हालात पैदा हो जाएंगे। कुल मिलाक पश्चिम बंगाल में घुसपैठिये तृणमूल कांग्रेस का वोट बैंक हैं इसलिए ममता बनर्जी किसी भी हाल में इसे खोना नहीं चाहती।
पश्चिम बंगाल में घुसपैठ का मुद्दा देश के विभाजन जितना ही पुराना
बता दें पश्चिम बंगाल में घुसपैठ का मुद्दा देश के विभाजन जितना ही पुराना है। राज्य की 2,216 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश से लगी है। इसका लंबा हिस्सा जलमार्ग से जुड़ा होने और कई जगह सीमा खुली होने की वजह से देश के विभाजन के बाद से ही पड़ोसी देश से घुसपैठ का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह अब तक थमा नहीं है।
साल 1989 में सरकार ने संसद में एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि राज्य के बांग्लादेश से सटे 11 ज़िलों में आबादी बढ़ने की दर देश की आबादी बढ़ने की दर से बहुत ज़्यादा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि एनआरसी का विरोध महज वोट बैंक की राजनीति है। 14 जुलाई 2004 को तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने लोकसभा में बताया था कि देश में 1.20 करोड़ बांग्लादेशी रहते हैं। इनमें से 50 लाख असम में हैं और 57 लाख बंगाल में. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने 16 नवंबर 2016 भारत में रहने वाले बांग्लादेशी अप्रवासियों की तादाद दो करोड़ बताई थी।
भाजपा
का
वर्तमान
में
दावा
है
कि
बंगाल
में
एक
करोड़
बांग्लादेशी
रहते
हैं।
पहले
सीपीएम
की
अगुवाई
वाले
लेफ्ट
फ्रंट
ने
वोटबैंक
की
राजनीति
के
तहत
इन
लोगों
को
राज्य
में
बसाया
और
अब
ममता
बनर्जी
सरकार
भी
ऐसा
ही
कर
रही
है।
राज्य
में
अल्पसंख्यकों
की
आबादी
तेज़ी
से
बढ़
रही
है।
फ़िलहाल
आबादी
में
इनका
हिस्सा
लगभग
30
फ़ीसदी
है
और
यह
लोग
लोकसभा
और
विधानसभा
की
कई
सीटों
पर
निर्णायक
स्थिति
में
हैं।
जानकारों
के
अनुसार
बीते
कुछ
दशकों
के
दौरान
ज़िले
में
आबादी
का
स्वरूप
तेज़ी
से
बदला
है।
बांग्लादेश
से
आने
वालों
का
सिलसिला
अभी
थमा
नहीं
हैं।
वह
कहते
हैं
कि
बोली
और
पहनावे
में
ख़ास
अंतर
नहीं
होने
की
वजह
से
स्थानीय
और
सीमा
पार
से
आने
वालों
के
बीच
अंतर
करना
मुश्किल
है।
वहीं
कुछ
लोगों
का
मानना
है
कि
'बंगाल
में
कम
से
कम
80
लाख
बांग्लादेशी
रहते
हैं।
इनकी
वजह
से
राज्य
के
युवकों
को
रोजगार
नहीं
मिल
रहा
है
और
वह
दूसरे
राज्यों
का
रुख
कर
रहे
हैं।
अवैध प्रवासियों को लेकर बीजेपी शुरू से ही सांप्रदायिक रुख अपनाती आई है। बीजेपी के मुताबिक़ बांग्लादेश से आने वाले हिंदू 'शरणार्थियों' का भारत में स्वागत है, लेकिन वहीं से आने वाले मुसलमान 'अवैध प्रवासी' हैं और उन्हें भारत में रहने का कोई हक़ नहीं है।
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