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#MosqueMeToo :'अजमेर दरगाह पर मेरे साथ यौन उत्पीड़न हुआ'

सोशल मीडिया पर महिलाएं हज समेत अन्य धार्मिक स्थलों पर हुए यौन उत्पीड़न के अनुभव साझा कर रही हैं.

By BBC News हिन्दी
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"मैं अजमेर दरगाह के अंदर जाने के लिए भीड़ में खड़ी थी. तभी मेरे पीछे खड़े तीन लड़कों में से एक ने दूसरे से कहा कि इस लड़की को पीछे से हाथ लगा."

ये आपबीती एक मुस्लिम लड़की उरूज बानो की है.

उन्होंने धार्मिक स्थल पर अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न का अनुभव बीबीसी से साझा किया, "वो बार-बार ये बोल रहा था. मैं सहम गई थी. उस वक्त मैं सिर्फ 15 साल की थी."

"मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं आगे के लोगों को धक्का देकर वहां से भाग जाऊं. मैं किसी को बता नहीं सकती थी, मैं बिना आंसूओं के रो रही थी."

सोशल मीडिया पर इन दिनों हैशटैग #MosqueMeToo के साथ महिलाएं अपने इसी तरह के अनुभव साझा कर रही हैं.

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हज
Getty Images
हज

उरूज की आपबीती

उरूज आगे बताती हैं, "जब ये घटना मेरे साथ हुई मैं अपने माता-पिता के साथ थी. लेकिन हिचक के मारे मैं उन्हें कुछ भी नहीं बता सकीं".

वो कहती हैं, "उनकी बात बार-बार मेरे कानों को चीर रही थी. मैं पीछे मुड़कर देखने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी."

"मुझे हैरानी थी कि उन लड़कों को भीड़ में खड़े लोगों का कोई डर नहीं था और किसी को उनकी बात सुनाई नहीं दी."

"फिर मैं हिम्मत जुटाकर पीछे मुड़ी और उन्हें घूर कर देखा. उसके बाद वो वहां से चले गए."

"मैंने दरगाह की ओर सिर उठाकर सोचा कि कैसे कोई धार्मिक स्थल पर ऐसी हरकत कर सकता है."

"अंदर जाने के बाद जब अम्मी ने कहा कि दुआ मांगों तो मैंने एक ही दुआ मांगी कि ऐ ख़ुदा! उन लोगों को सज़ा देना. मैंने आज तक ये बात किसी से साझा नहीं की थी."

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https://twitter.com/SherlockCloset/status/962070984864940043

यौन दुर्व्यवहार के किस्से

उरूज अकेली नहीं है जिनके साथ धार्मिक स्थल पर ऐसी कोई घटना हुई है.

बीते कुछ दिनों से दुनिया भर की कई मुस्लिम और अन्य धर्म की महिलाएं हज और अन्य धार्मिक स्थलों पर अपने साथ हुए यौन दुर्व्यवहार के किस्से सोशल मीडिया पर साझा कर रही हैं.

ट्विटर पर इस मुहिम की शुरुआत मिस्र-अमरीकी महिलावादी और पत्रकार मोना एल्टहावी ने की.

उन्होंने 2013 में हज की यात्रा के दौरान अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न का अनुभव साझा किया.

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https://twitter.com/monaeltahawy/status/962237871494189062

मोना ने अपने ट्वीट में लिखा, "हज यात्रा के दौरान अपने यौन उत्पीड़न की कहानी मैंने इस उम्मीद में साझा की कि दूसरी मुस्लिम महिलाएं भी चुप्पी तोड़ें और पवित्र धार्मिक स्थलों पर अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के अनुभवों को साझा करें."

इसके बाद मानो ऐसे अनुभवों की बाढ़ सी आ गई और कई महिलाओं ने अपनी कहानियां शेयर कीं.

https://twitter.com/maimoonarahman/status/960936999644422144

कई पुरुषों ने भी इस हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए महिलाओं का साथ दिया है.

https://twitter.com/hass_saleh/status/961453484250935297

https://twitter.com/MuslimIQ/status/962452155365036033

मक्का या मदीना में...

24 घंटे से भी कम समय में इस हैशटैग से दो हज़ार ट्वीट किए गए.

लेकिन इन सबके उलट कुछ महिलाएं मानती हैं कि इन पवित्र जगहों पर ऐसी घटनाएं किसी ग़लतफ़हमी के कारण होती हैं या फिर इनको साज़िश के तहत गढ़ा जाता है.

साल 2016 में हज पर जाने वालीं दिल्ली की 45 वर्षीय महिला ख़ुशनुमा कहती हैं, "हज के दौरान काफ़ी भीड़भाड़ होती है और तवाफ़ (एक प्रकार की परिक्रमा) में तो काबा शरीफ़ के चारों ओर चक्कर काटना होता है जिस कारण धक्कामुक्की होना आम बात है."

वह कहती हैं कि सभी लोगों को तवाफ़ पूरा करने की जल्दी होती है जिसकी वजह से लोग तेज़ी से आगे बढ़ते हैं और उसके कारण हाथ इधर-उधर छू जाते हैं.

उन्होंने कहा कि मक्का या मदीना में उन्होंने ऐसी कोई हरकत नहीं देखी. हालांकि, वह कहती हैं कि ऐसा ज़रूरी नहीं है कि महिलाओं के साथ मक्का, मदीना या किसी पवित्र स्थल पर कोई छेड़खानी न ही होती हो.

https://twitter.com/NewtmasGrape/status/962040126665707521

वहीं, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की 28 वर्षीय शोध छात्रा शाहिदा ख़ान #MosqueMeToo जैसे सोशल मीडिया कैंपेन को पश्चिमी प्रोपेगैंडा का हिस्सा बताती हैं.

वह कहती हैं कि यह सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ाने के लिए चलाए जाते हैं.

साल 2017 में उमरा (धार्मिक यात्रा) करने के लिए मक्का और मदीना गईं शाहिदा कहती हैं कि उन्होंने कभी-भी वहां छेड़छाड़ या यौन उत्पीड़न जैसी चीज़ होते महसूस नहीं की.

वह कहती हैं, "मक्का के काबा शरीफ़ में पहुंचा कोई भी मर्द किसी ग़ैर औरत की तरफ़ नज़र उठाकर भी नहीं देखता है. यहां तक कि तवाफ़ के दौरान मर्द औरतों के लिए रास्ता छोड़ देते हैं. मुस्लिम इन जगहों को पवित्र समझते हैं और यहां पहुंचना उनके लिए एक सपने के पूरा होने जैसा होता है. लोग यहां सिर्फ़ धर्म-कर्म में लगे होते हैं."

उनका कहना है कि हज या उमरा के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया या भारत से अधिक उम्र के लोग जाते हैं लेकिन मध्य-पूर्व के देश के अधिकतर युवा लोग जाते हैं लेकिन उन्होंने कभी भी उनकी तरफ़ से किसी छेड़खानी या भेदभाव को महसूस नहीं किया.

एक अनुमान के मुताबिक हर साल बीस लाख मुस्लिम हज यात्रा करते हैं. इस दौरान मक्का में भारी भीड़ देखने को मिलती है.

#MosqueMeToo
Getty Images
#MosqueMeToo

बिना मेहरम हज जाने की इजाज़त

#MosqueMeToo से पहले #MeToo के ज़रिए दुनिया भर की महिलाएं यौन उत्पीड़न की कहानियां साझा कर रही थीं.

ये अभियान फ़िल्म प्रोड्यूसर हार्वे वाइनस्टीन पर कई हाई प्रोफाइल अभिनेत्रियों की ओर से लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद शुरू किया गया था.

पिछले साल के अपने आख़िरी रेडियो प्रोग्राम 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि भारत की मुस्लिम महिलाएं बिना किसी मेहरम (रक्त संबंधी) के स्वतंत्र रूप से हज यात्रा कर सकेंगी.

हज यात्रा
Getty Images
हज यात्रा

हज पर बिना मेहरम जाने की इजाजत

भारत से हर साल 70,000 मुसलमान हज पर जाते हैं जिनका नंबर लॉटरी के ज़रिए आता है.

मोदी सरकर ने ये फ़ैसला किया है कि इन 1200 महिलाओं को लॉटरी सिस्टम से अलग रखकर हज पर जाने की इजाज़त दी जाएगी.

अब तक कोई मुस्लिम महिला अपने खून के रिश्ते वाले रिश्तेदार के बिना हज पर नहीं जा सकती थी.

अब ये 1200 महिलाएं इतिहास में पहली बार बग़ैर मेहरम के हज के लिए रवाना हो सकेंगी और मुस्लिम महिलाओं के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.

लेकिन #MosqueMeToo के ज़रिए सामने आ रहे यौन उत्पीड़न के क़िस्से हज पर जाने वाली महिलाओं को ज़रूर सोचने पर मजबूर करेंगे.

BBC Hindi
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English summary
MosqueMeToo harassment with me at Ajmer Dargah
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