अवध के रास्ते दिल्ली में आया था मोदी राज, क्या करिश्मा दोहरा पाएगी भाजपा?
नई दिल्ली- लोकसभा चुनाव में जो महत्त्व उत्तर प्रदेश का है, दिल्ली की सत्ता में उसी तरह का महत्त्व उसके अवध क्षेत्र का भी है। इस क्षेत्र ने देश को तीन-तीन प्रधानमंत्री दिए हैं। इंदिरा गांधी ने रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया। राजीव गांधी अमेठी से जीतते थे और अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ से ही जीतकर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। 10 साल तक यूपीए का शासन रहा और उसमें रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी की हैसियत भी सबको पता है। 2014 में मोदी की सरकार बनी तो उसमें भी इस क्षेत्र का अहम रोल रहा। यहां की कुल 17 सीटों में से 15 सीटें मोदी की झोली में गईं। बड़ा सवाल है कि क्या इस बार भी अवध अपना इतिहास दोहराएगा? क्या अवध में भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव वाला प्रदर्शन फिर दोहरा पाएगी?
अवध में पिछले चुनावों का वोटिंग पैटर्न
अवध (17 सीटें) इलाके की अहमियत का अंदाज इसी से लगा लीजिए कि झारखंड (14 सीटें) और छत्तीसगढ़ (11 सीटें) जैसे राज्यों से भी यहां लोकसभा की ज्यादा सीटें हैं। अगर बीएसपी सुप्रीमो यूपी को 4 छोटे राज्यों में बांटने की अपनी सोच पर अमल कर पातीं, तो शायद अवध में खुद एक अलग राज्य बनने का दम था। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां की 17 में से 15 सीटें मिली थीं। सिर्फ रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस अपनी फर्स्ट फैमिली का गढ़ ही बचा पाई थी। जबकि, मौजूदा चुनाव में बीजेपी की लिए मुसीबत बने सपा और बसपा अपना खाता खोल पाने में भी नाकाम रहे थे। 2017 के विधानसभा में भी बीजेपी ने अपना जलवा बरकरार रखा। कांग्रेस ने अमेठी में विधानसभा की सभी 5 सीटें गंवा दिया और रायबरेली में भी दो ही सीट उसके खाते में आ पाए। 90 के शुरूआती वर्षों में जब से प्रदेश में गठबंधन की राजनीति ने जोड़ पकड़ना शुरू किया, इस इलाके में भाजपा से बड़ी जीत हासिल करने में कोई भी पार्टी सफल नहीं हुई है। जबकि, 2004 और 2009 के चुनाव में पार्टी सिर्फ लखनऊ में ही अपना गढ़ बचा पायी थी, जहां 1991 से उसका कब्जा है।
अवध में वोटों का ऐसा है गुणा-भाग
अवध इलाके में कुल 3.22 करोड़ मतदाता हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार अवध में मुस्लिम आबादी करीब 15 से 20% के बीच है। एक आंकड़े के मुताबिक यूपी के जिन 47 सीटों पर मुस्लिम-यादव-दलित (MYD) आबादी 50% से अधिक है, उनमें से 30 क्षेत्र अवध और पूर्वांचल के इलाकों से ही आते हैं। अवध की 2 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम-यादव-दलित (MYD) आबादी 60% से भी अधिक है। जबकि यहां की 8 सीटों पर इनकी जनसंख्या 50 से 60 फीसदी के बीच है और 4 सीटों पर ये संख्या 40 से 50 % के बीच है। मतलब अवध की करीब 10 सीटों का गुणा-भाग भाजपा के पक्ष में नहीं दिख रहा है।
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क्या कहता है सियासी माहौल?
अवध इलाके में लोकसभा की ये सीटें हैं- खीरी, धौरहरा, बहराइच, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, बाराबंकी, कैसरगंज, श्रावस्ती, गोंडा, फैजाबाद, अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर, अमेठी, राय बरेली, मोहनलालगंज और लखनऊ। फिलहाल यहां पर बीएसपी-एसपी गठबंधन की वजह से इसबार मुस्लिम मतदाता महागठबंधन के पक्ष में लामबंद होते दिख रहे हैं। लेकिन, प्रियंका गांधी वाड्रा फैक्टर के कारण अगर इस दफे यहां कुछ मुसलमान वोट महागठबंधन से बंटकर कांग्रेस के खाते में भी चला जाय तो कोई आश्चर्य भी नहीं होनी चाहिए। बीजेपी के रणनीतिकार इस स्थिति को अपने हक में मानते हैं। यही हाल ऊंची जातियों के मतदाताओं का भी हो सकता है। कांग्रेस को लगता है कि प्रियंका की वजह से ऊंची जातियों के वोटर उसके पक्ष में भी झुकेंगे। लेकिन, यह स्थिति बीजेपी के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित हो सकती है। अलबत्ता अपना दल से गठबंधन के चलते अन्य पिछड़ी जातियों का एक ठोस वोट बैंक जरूर भाजपा के पक्ष में एकजुट दिख रहा है। कुल मिलाकर इस इलाके का आखिरी निर्णय क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल है, लेकिन भाजपा के नजरिए से अवध से होकर गुजरने वाला दिल्ली का रास्ता फिलहाल आसान तो बिल्कुल नहीं लग रहा है।
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