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Mallikarjun Kharge: क्या कांग्रेस के दलित वोट बैंक को वापस लाने में कामयाब होंगे नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे

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New Congress President Mallikarjun Kharge: कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में मल्लिकार्जुन खड़गे दामोदरम संजीवैया (1962) और बाबू जगजीवन राम (1969) के बाद तीसरे दलित नेता हैं, जो पार्टी के अध्यक्ष चुने गए हैं। हालांकि, वे पार्टी में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़े हैं, लेकिन शुरुआती दिनों से उनपर गांधी परिवार के 'आशीर्वाद का ठप्पा' लगा रहा है। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर पर भारी जीत दर्ज की है और 24 साल बाद पार्टी में गांधी परिवार से अलग नेता की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो रही है। कांग्रेस के शुरुआती दिनों से दलित वोट बैंक उसके साथ था। लेकिन, लगभग तीन दशकों से कांग्रेस की पकड़ दलित वोट बैंक पर से ढीली पड़ी है। ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस में इस बदलाव का पार्टी पर कैसा असर पड़ेगा।

कर्नाटक के दलित नेता हैं मल्लिकार्जुन खड़गे

कर्नाटक के दलित नेता हैं मल्लिकार्जुन खड़गे

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कई बार खुद को भगवान बुद्ध का अनुयायी बताया है, लेकिन कर्नाटक की राजनीति में उनकी पहचान दलित नेता होने की वजह से ही बनी है। वे एस निजलिंगप्पा (1968)के बाद प्रदेश के दूसरे नेता हैं, जो कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए हैं। कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां भारतीय जनना पार्टी और कांग्रेस में कड़ी टक्कर देखने को मिलती रही है। राज्य में कांग्रेस की सरकार अपनी कमजोरियों से गिरी थी तो बीजेपी की सरकार भी विवादों से बची हुई नहीं है। ऐसे में खड़गे का कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना, भाजपा के खिलाफ कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला जरूर मजबूत करेगा।

कांग्रेस में खड़गे को नहीं मिला मुख्यमंत्री बनने का मौका

कांग्रेस में खड़गे को नहीं मिला मुख्यमंत्री बनने का मौका

गौरतलब है कि भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी अगले चुनावों के बारे में सोचकर ही कर्नाटक में 21 दिन गुजार रहे हैं। कर्नाटक में दलित राजनीति एक संवेदनशील मुद्दा रहा है और खड़गे के बढ़े हुए कद को कांग्रेस वहां भुनाने की भरपूर कोशिश कर सकती है। लेकिन, याद रखना होगा कि जब 2018 में मुख्यमंत्री बनाए जाने की बारी आई थी तो खड़गे सिद्दारमैया से रेस में पीछे छूट गए थे। उनके साथ एक नहीं कम से कम तीन-तीन बार ऐसी परिस्थितियां आ चुकी हैं और आखिरकार पार्टी हाई कमान ने उन्हें केंद्र की राजनीति में आगे बढ़ाना शुरू किया।

खड़गे को पिछले कई वर्षों से प्रोजेक्ट कर रही है कांग्रेस

खड़गे को पिछले कई वर्षों से प्रोजेक्ट कर रही है कांग्रेस

इस बात में कोई दो राय नहीं कि मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रोजेक्ट करके कांग्रेस दलित राजनीति पर प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही है। यूपीए सरकार के दौरान उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में अहम जिम्मेदारियां दी गईं थीं। पार्टी ने 2014 से 2019 तक उन्हें लोकसभा में कांग्रेस का नेता सदन बनाया। लेकिन, फिर भी 2019 के लोकसभा चुनाव में वे कर्नाटक की अपनी परंपरागत गुलबर्गा सीट से भी भाजपा के हाथों पहली बार बुरी तरह पराजित हो गए। पार्टी फिर उन्हें राज्यसभा में लाई और विपक्ष का नेता तक बनाया। उधर कांग्रेस की विरोधी भारतीय जनता पार्टी ने भी दलित-आदिवासी वोट बैंक को सहेजने के लिए काफी लंबा प्रयास किया है। पहले रामनाथ कोविंद जैसे दलित नेता को राष्ट्रपति के पद पर बिठाया और हाल ही में आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू की राष्ट्रपति भवन में ताजपोशी कराकर अपने चुनावी गेम को काफी मजबूत कर चुकी है। मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं और बीजेपी ने उनके नाम पर समाज के इस वर्ग में काफी बड़ा संदेश दिया है। मतलब, खड़गे के जरिए कांग्रेस जो नरेटिव सेट करना चाहती है, उसपर भाजपा एक मजबूत नींव पहले से ही तैयार कर चुकी है।

खड़गे की पहली चुनौती हिमाचल और गुजरात

खड़गे की पहली चुनौती हिमाचल और गुजरात

यानि केंद्र में मोदी सरकार के अबतक के कार्यकाल में खड़गे गांधी परिवार के बाद कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेता बने हुए हैं। लोकसभा से लेकर राज्यसभा में पार्टी का प्रमुख चेहरा बनकर उन्होंने अपने दल की नीतियों को आगे रखा है। लेकिन, जब चुनावों में वोट की बात आई है तो उसपर उनका कोई खास प्रभाव देखने को नहीं मिल पाया है और कांग्रेस को ज्यादातर बार हार का ही सामना करना पड़ा है। एक बात और गौर करने वाली है। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष नहीं हैं। ना ही वे दक्षिण भारत से पहले कांग्रेस अध्यक्ष हैं और ना ही कर्नाटक से। इसलिए कर्नाटक की बात तो दूर, पार्टी अध्यक्ष के तौर पर खड़गे की पहली अग्निपरीक्षा हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों में होनी है। हिमाचल में दलितों की आबादी करीब 27 फीसदी है। जिनपर पिछले चुनाव में भाजपा का प्रभाव नजर आया था। कुल 17 सुरक्षित सीटों में से पार्टी 13 जीत गई थी। लेकिन, गुजरात में खड़गे के लिए करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। वहां अनुसूचित जाति की जनसंख्या सिर्फ 6.74 फीसदी है।

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मल्लिकार्जुन की दलित 'वोट यात्रा' काफी लंबी और संघर्ष से भरी होगी

मल्लिकार्जुन की दलित 'वोट यात्रा' काफी लंबी और संघर्ष से भरी होगी

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर निकले हुए हैं। सोनिया गांधी की उम्र और स्वास्थ्य उनका पूरा साथ नहीं दे रहा है। यूपी चुनाव का हाल देखने बाद प्रियंका गांधी कितना समय दे पाएंगी, यह भी देखने वाली बात है। यानि मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कांग्रेस के साथ कितना दलित वोट वापस जुड़ेगा,उसके लिए पहले इन दोनों राज्यों के चुनाव नतीजों का इंतजार करना होगा। लेकिन, सवाल यह भी है कि क्या खड़गे स्वतंत्र रूप से पार्टी में अपनी भूमिका तय कर सकेंगे? क्योंकि, राहुल गांधी के मुताबिक वे 'पक्के कांग्रेसी' हैं। कांग्रेस में उस नेता के लिए यह सराहना उपयुक्त मानी जा सकती है, जो गांधी परिवार के प्रति समर्पित माना जाता है। ऐसे में खड़गे के रूप में कांग्रेस नेतृत्व का सिर्फ चेहरा बदलने से दलितों का भरोसा पार्टी में वापस उसी तरह लौट जाएगा, यह उम्मीद कर लेना अभी दूर की कौड़ी है।

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English summary
Mallikarjun Kharge:The newly elected Congress presidentis expected to add back the Dalit vote bank to the party. But, he has not yet been successful
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