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लोकसभा चुनाव 2019: कन्हैया के सहारे क्या बेगूसराय में पुनर्जीवित हो पाएगा वामपंथ?

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kanhiya kumar begusarai

नई दिल्ली। कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी ने लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार के बेगूसराय संसदीय क्षेत्र को 'हॉट केक' बना दिया है। बिहार में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला बेगूसराय औद्योगिक नगरी के रूप में तो पहले से ही जाना जाता है लेकिन राष्ट्रीय फलक पर इसकी जितनी चर्चाएं और विमर्श अब हो रहा है, पहले किसी लोकसभा चुनाव में इतना नहीं हुआ था।

बिहार का 'मिनी मास्को' रहा है बेगूसराय

बिहार का 'मिनी मास्को' रहा है बेगूसराय

आजादी के बाद की वामपंथी राजनीति में बेगूसराय वामपंथ का गढ़ रहा है। 7 विधानसभा क्षेत्र में बंटे बेगूसराय में अधिकतर समय वामपंथ अधिकतम विधानसभा की सीटें जीतती आयीं थी। बीहट के कॉमरेड चंद्रशेखर ने बेगूसराय में वामपंथी विचारधारा को पाला भी था और इसे विकसित भी किया था। कन्हैया उसी बीहट गांव से आते हैं। अकारण नहीं है कि गाँव से निकला एक लड़का जेएनयू में वामपंथ की आवाज पुरजोर तरीके से रखता है। और अब वह इस लोकसभा चुनाव में वामपंथ के 'लाल सलाम' से सराबोर दिखते हैं।

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बेगूसराय वामपंथ का गढ़ कैसे बना?

बेगूसराय वामपंथ का गढ़ कैसे बना?

बेगूसराय का टाल इलाका दलहन की खेती के लिए प्रसिद्ध रहा है। 60 के दशक में दलहन और लाल मिर्च की खेती से जुड़े भूमिहार लोगों ने सामंत भूमिहारों के शोषण से तंग आकर वामपंथ आंदोलन का साथ दिया जो समाज के दबे-कुचले, शोषित-वंचित और मजदूर वर्ग की जरूरतों, मांगें और उनके हित की बातें करता था। ऐसे ही शोषित भूमिहारों ने सामंतों के खिलाफ हथियार उठा लिया था। फिर 70 के दशक में अंडरवर्ल्ड डॉन कामदेव सिंह के उभार ने बेगूसराय को खूनी संघर्ष का अखाड़ा बना दिया। लेकिन वामपंथ वंचित वर्ग का संबल बना रहा।

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बेगूसराय में वामपंथ कैसे कमजोर हुई?

बेगूसराय में वामपंथ कैसे कमजोर हुई?

1990 में बिहार में लालू यादव के उभार ने पहले के सामाजिक जातीय समीकरण को तोड़कर एक नया समीकरण बनाया। छोटी जातियों के गरीब शोषित लालू में खुद को देखने लगे। वामपंथ की एक धरा माले भूमिहारों की रणवीर सेना से संघर्ष करना प्रारंभ कर चुका था। इस संघर्ष से कई जातीय नरसंहार हुए। इससे बेगूसराय में भी वामपंथ से भूमिहारों का मोहभंग होना शुरु हुआ और वे कांग्रेस की तरफ झुके। लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम में 1997 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के राबड़ी सरकार को समर्थन देने से भूमिहारों का एक बड़ा तबका कांग्रेस से दूर हो गया। सन 2000 के चुनाव में लालू ने सीपीआई और सीपीएम के साथ राजनीतिक गठजोड़ करके पूरब के लेलीनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय में सेंध लगा दी और अधिकांश भूमिहार समता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की तरफ शिफ्ट होती गयी।

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बेगूसराय में कन्हैया ही क्यों?

बेगूसराय में कन्हैया ही क्यों?

कम्युनिस्ट पार्टी की जड़ें पश्चिम बंगाल में उखड़ने और त्रिपुरा में चौकाने वाले जनादेश ने वामदलों को सोचने पर विवश किया है। बिहार में वामदल हाशिये पर है। जेएनयू से निकले वाकपटु कन्हैया ने जितनी तेजी से युवाओं और आम जन के बीच प्रसिद्धि पाई है वह सच मे अभूतपूर्व है। बेगूसराय का भूमिहार बहुल क्षेत्र होना और कन्हैया का भूमिहार और वामपंथी होने को वामपंथ धरा बेगूसराय में अपनी खोयी जमीन तलाशने के लिए सोने पर सुहागा जैसे अवसर के रूप में देख रही है। तभी सीपीआई किसी भी कीमत पर बेगूसराय सीट छोड़ने पर सहमत नहीं हुई थी। हालाँकि समय के साथ-साथ राजनीतिक और सामाजिक समीकरण भी बदले हैं। कन्हैया ने भी वामपंथ के 'लाल सलाम' के साथ 'जय भीम' को जोड़ कर सोशल इंजीनियरिंग की है। अब देखना है कि वामपंथ फिर से बेगूसराय में कन्हैया के सहारे पुनर्जीवित हो पाती है या नहीं।

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English summary
Lok Sabha Elections 2019 With the help of Kanhaiya will the Left be revived in Begusarai
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