मध्य प्रदेश: इन 7 सीटों पर कब्जा बनाए रखना भाजपा के लिए आसान नहीं
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव का आगामी पांचवां चरण 6 मई को है। इस पांचवें चरण में मध्यप्रदेश की 7 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होना है। ये सीटें है टीकमगढ़, दमोह, सतना, रीवा, खजुराहो, होशंगाबाद और बैतूल। यह मध्यप्रदेश का दूसरा चरण होगा। इस चरण की सभी सीटें वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। भाजपा की कोशिश है कि ये सभी सीटें उसके पास ही रहें। इसके लिए भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने विशेष रणनीति बनाई है।
गड़करी, उमा भरती की सभाएं
रणनीति के अनुसार केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी 3 मई को बैतूल लोकसभा क्षेत्र में प्रचार करेंगे। गडकरी की दो सभाएं होनी है, जो मुलताई और आठनेर में होंगी। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी इन सभी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव रखती हैं। वे अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रही हैं कि इनमें से कोई भी सीट भाजपा के हाथ से निकलने न पाए। कांग्रेस को यहां से बदलाव की संभावनाएं नजर आती हैं।
उत्तरप्रदेश की सीमा से सटी टीकमगढ़ और खजुराहो लोकसभा सीट पर सपा का भी प्रभाव है, लेकिन यहां सपा के नेता अखिलेश यादव का कोई कार्यक्रम अभी तक नहीं बना है। टीकमगढ़ को छोड़कर बाकी सीटों पर भाजपा, कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार मैदान में है। खजुराहो सीट पर भाजपा के सामने मुख्य उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस नहीं सपा का उम्मीदवार ही चुनौती बताया जा रहा है। रीवा सीट पर पिछले 30 साल से एक ही ट्रेंड है कि कोई भी सांसद यहां से 2 बार चुनाव नहीं जीता। इस बार भाजपा ने अपने ही सांसद को दोबारा टिकट दिया है। कांग्रेस यहां से सहानुभूति के नाम पर वोट मांग रही है।
रीवा में भाजपा ने जनार्दन मिश्रा को फिर उतारा
रीवा लोकसभा सीट पर भाजपा ने जनार्दन मिश्रा को ही फिर से उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने सुंदरलाल तिवारी के बेटे और श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी को टिकट दिया है। सुंदरलाल तिवारी के प्रति लोगों के मन में बहुत श्रद्धा थी, हाल ही में उनका निधन हुआ है। कांग्रेस को लगता है कि सहानुभूति वोट सिद्धार्थ को मिलेंगे ही। बसपा ने यहां से विकास पटेल को मैदान में उतारा है। सपा का समर्थन बसपा को है ही। रीवा का क्षेत्र जाति आधारित राजनीति के लिए प्रसिद्ध है। यहां ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज के लोगों का कांग्रेस के प्रति झुकाव बताया जाता है। सपा-बसपा का यहां अलग वोट आधार है। रीवा क्षेत्र से पिछले 7 चुनाव में तिवारी परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट मिलता रहा है। इसलिए वंशवाद का मुद्दा भी उछाला जा रहा है। कांग्रेस का दावा है कि सिद्धार्थ तिवारी राजनीति में नए है। उनका राजनीतिक जीवन बेदाग रहा है। वे युवा है इसलिए मतदाताओं का समर्थन उन्हें ही मिलेगा।
भाजपा के नेताओं के दावा है कि इन सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा है और भाजपा के पक्ष में सकारात्मक माहौल है। कांग्रेस ने इस इलाके के लिए कुछ विशेष नहीं किया। रीवा क्षेत्र की आठों विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में न तो सपा-बसपा गठबंधन कुछ कर पाएगा और न ही कांग्रेस। मोदी फैक्टर भी यहां जमकर चल रहा है। कांग्रेस को मध्यप्रदेश की इन सात सीटों में से 5 पर अच्छा भरोसा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद 5 क्षेत्रों में चुनाव प्रचारकिया है। कांग्रेस को टीकमगढ़, खजुराहो और दमोह सीट पर भारी समर्थन की आशा है।
टीकमगढ़ में वीरेन्द्र खटीक- किरण अहिरवार में मुकाबला
भाजपा ने टीकमगढ़ से वीरेन्द्र खटीक को प्रत्याशी बनाया है, तो कांग्रेस ने किरण अहिरवार को। खजुराहो में कांग्रेस के विधायक विक्रम जीत नातीराजा की पत्नी कविता सिंह को प्रत्याशी बनाया है और भाजपा ने वी.डी. शर्मा को। दमोह में भाजपा ने दिग्गज नेता प्रहलाद पटेल को उम्मीदवार बनाया है और कांग्रेस ने प्रताप सिंह लोधी को। दमोह सीट पर विधानसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री जयंत मलैया की हार हुई थी। कांग्रेस का दावा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के कई गढ़ ढह जाएंगे। प्रहलाद पटेल ने दमोह संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, तब वे 2 लाख 13 हजार वोटों से जीते थे। विधानसभा चुनाव में दमोह संसदीय क्षेत्र की सभी सीटों पर भाजपा की बढ़त केवल 16 हजार की रह गई। खजुराहो संसदीय क्षेत्र से नागेन्द्र सिंह करीब ढाई लाख वोटों से जीते थे, यहां भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की और पूरी संसदीय क्षेत्र की सीटों पर वोटों का अंतर एक लाख से भी कम कर दिया।
सतना संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने गणेश सिंह को टिकट दिया है और कांग्रेस ने राजाराम त्रिपाठी को। मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री और अमित शाह के खास विश्वास पात्र राजेन्द्र शुक्ला को भाजपा ने रीवा और सतना दोनों ही सीटों की जिम्मेदारी दी है। राजेन्द्र शुक्ला को लगता है कि मोदी लहर में भाजपा ये दोनों सीटें जीत जाएगी। जल्द ही इन संसदीय क्षेत्रों में चुनाव प्रचार थम जाएगा। प्रचार के परंपरागत साधन उपयोग में लाए जाएंगे। प्रदेश की कांग्रेस के लिए भी यह प्रतिष्ठा का प्रश्न है कि वह इन 7 सीटों में से कितनी सीटों पर जीत पाती है।
पढ़ें- मध्य प्रदेश की सभी सीटों से जुड़ी लोकसभा चुनाव 2019 की विस्तृत कवरेज