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मायावती के लोकसभा चुनाव ना लड़ने के पीछे ये है असल वजह?

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नई दिल्ली- मायावती का खुद लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान ने बहुत लोगों को आश्चर्य में डाल दिया होगा। लेकिन, यह अचानक लिया गया फैसला नहीं है। बीएसपी सुप्रीमो ने यह फैसला सारे नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद ही सोच-समझकर लिया है। क्योंकि, यह चुनाव बहन जी के करियर सबसे बड़ा चुनाव होने जा रहा है। सबसे बड़ा इस नजरिए से कि इसमें मिली कामयाबी उन्हें उस कुर्सी तक पहुंचा सकता है, जहां अबतक देश का एक भी दलित नेता नहीं पहुंचा है। लेकिन, अगर इसबार वह अपना दबदबा दिखाने में नाकाम रह गईं, तो फिर उनके पूरे राजनीतिक भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लग सकता है। इसलिए, उनकी पहली कोशिश है, यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की, जिसके दम पर वह अपनी आगे की दावेदारी मजबूत कर सकें।

लक्ष्य प्रधानमंत्री पद, प्रयास ज्यादा से ज्यादा सीट

लक्ष्य प्रधानमंत्री पद, प्रयास ज्यादा से ज्यादा सीट

लगता है कि एनडीटीवी के प्रणय रॉय के एक विश्लेषण ने मायावती के उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया है। मोटे तक पर उस विश्लेषण पर गौर करें, तो उन्होंने महागठबंध को यूपी की 80 में से 53 लोकसभा सीटों तक में जीतने की संभावना जता दी है। हालांकि, यह स्थति तब आएगी, जब कांग्रेस भी महागठबंधन के साथ होगी। इसलिए, शायद मायावती उन सभी 53 लोकसभा सीटों पर जोड़ लगाना चाहती हैं, जिसमें बीजेपी विरोधी मत प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। 63 वर्षीय माया जानती हैं कि यह चुनाव उनके लिए 'अभी नहीं-तो कभी नहीं' वाला चुनाव है। इसलिए उन्होंने साफ कहा है कि, उनके लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना अधिक जरूरी है, बजाय अपने लिए एक सीट जीतने के।

मायावती को लगता है कि अगर मौजूदा लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी और आरएलडी का गठबंधन 50 सीटों के आसपास तक भी पहुंच गया, तो अगला प्रधानमंत्री भी उत्तर प्रदेश से बन सकता है और वह दलित भी हो सकता है। दरअसल, मायावती की सोच में दम भी है। राज्य में पिछले दिनों जितने भी लोकसभा उपचुनाव हुए है, उसमें उनके गठबंधन को भारी सफलता मिली है। लेकिन, इसबार कांग्रेस के अलग से मैदान में उतरने से उनकी मेहनत बहुत बढ़ गई है। खासकर प्रियंका गांधी वाड्रा जिस तरह से प्रचार कर रही हैं, उससे उन्हें डर है कि कांग्रेस जीते या न जीते, लेकिन गठबंधन का नुकसान जरूर कर देगी। इसलिए, वह पूरा ध्यान अपने उम्मीदारों को कामयाब बनाने पर लगाना चाहती हैं और मोदी विरोधी मतों का विभाजन रोकना चाहती हैं।

बुआ को बबुआ पर है पूरा भरोसा

बुआ को बबुआ पर है पूरा भरोसा

बुआ को अपने 20% से ज्यादा वोट बैंक पर तो भरोसा है ही,अब उतना ही भरोसा अपने बबुआ यानि अखिलेश यादव और उनके वोट बैंक पर भी है। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को भी यूपी में 22% से ज्यादा मत मिले थे। अपने गठबंधन के बारे में वह पहले ही कह चुकी हैं कि वे आपसी सम्मान और पूरी नेक नीयत के साथ काम कर रहे हैं, जिसमें बीजेपी को हराने की पूरी क्षमता है। सबसे बड़ी बात ये है कि अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि वह चाहते हैं कि अगला प्रधानमंत्री भी उत्तर प्रदेश से ही बने, जाहिर है उन्होंने अगर ऐसी उदारता दिखाई है, तो उनके दिमाग में नरेंद्र मोदी तो होंगे नहीं।

इसलिए, बुआ को पक्का यकीन है कि उनके बारे में बबुआ की राय पार्टी के पहले के नेताओं से अलग है। वह जानती हैं कि अगर गठबंधन के पास सांसदों का नंबर होगा, तो प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी को अखिलेश जरूर आगे बढ़ाएंगे।

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...इसलिए अभी सारे पत्ते नहीं खोलना चाहतीं बुआ

...इसलिए अभी सारे पत्ते नहीं खोलना चाहतीं बुआ

मायावती जानती हैं कि एकबार उनके पक्ष में आंकड़े आ गए, तो किसी भी रास्ते से संसद में पहुंचना उनके लिए बाएं हाथ का खेल होगा। शायद इसलिए उन्होंने कहा भी है कि मैं जहां से चाहूं सीट खाली कराकर संसद में जा सकती हूं। वो पहलीबार 1994 में राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं और हाल तक इस्तीफा देने से पहले वह राज्यसभा सांसद थीं। वो कई बार जीतकर लोकसभा में भी पहुंच चुकी हैं। लेकिन, अगर वो अभी खुद लोकसभा चुनाव लड़ेंगी, तो समाजवादी पार्टी के कैडर में विरोधी उनके प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजर होने की बात उड़ाकर गठबंधन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। यही नहीं, खुद चुनाव लड़ने पर उनके पार्टी के बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी ध्यान उस सीट पर सिमट सकता है, जिसपर बहन जी उम्मीदवार होंगी और इसका खामियाजा बाकी सीटों पर भी भुगतना पड़ सकता है।

जबकि, मायावती जानती हैं कि अगर उनके पास सांसदों के अधिक से अधिक नंबर होगा तो चुनाव के बाद दलित कार्ड खेलना उनके लिए बहुत ही आसान हो जाएगा। मौजूदा परिस्थितियों में अखिलेश कभी उनकी दावेदारी नहीं ठुकराएंगे और दलित होने के नाम पर कांग्रेस समेत सभी गैर-विपक्षी पार्टियां उन्हें समर्थन देने को मजबूर हो जाएंगी। त्रिशंकु लोकसभा बनने की स्थिति में मायावती के पक्ष में उनका दलित होना और साथ-साथ महिला होना भी काफी अहम साबित हो सकता है। लेकिन, ये सारे कयास और समीकरण चुनाव बाद की परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। इसलिए, बीएसपी सुप्रीमो अभी से अपने सारे पत्ते नहीं खोल रही हैं, लेकिन उनका सबसे बड़ा लक्ष्य देश का पहला दलित प्रधानमंत्री बनना है।

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English summary
know the real reason behind Mayawati is not contesting Lok Sabha election
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