जानिए, पिछले 6 सालों में किन-किन मुद्दों पर केंद्र से टकरा चुकी हैं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी?
नई दिल्ली। भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों और शक्तियों का बंटवारा इस तरह किया गया है कि राज्य और संघ के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो, लेकिन पिछले 9 सालों में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ हुई टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली सरकार लगातार इसका मजाक बनाती आई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का केंद्र से टकराव का सीधा कारण राजनीतिक और मुस्लिम वोट बैंक है, जिसके बल पर पश्चिम बंगाल में करीब 27 सालों तक बंगाल में सत्ता में रही वाममोर्च की सरकार के बाद अब ममता बनर्जी सत्ता का स्वाद चखती आ रही हैं।
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प्रदेश में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 की तैयारी चल रही है
गौरतलब है वर्तमान मे प्रदेश में 2021 में प्रस्तावित पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है और बीजेपी बंगाल में पहली बार सरकार बनाने को लेकर उत्साहित है और प्रदेश में लगातार आक्रामक कैंपेन कर रही है। इसी क्रम में गुरूवार को बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष और बंगाल बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश का दौरा कर रहे थे कि अचानक उनके काफिले पर पत्थरबाजी की घटना सामने आई। चूंकि प्रदेश की कानून-व्यवस्था का जिम्मा ममता सरकार के पास है, ऐसे में सूचना के बावजूद बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष की गाड़ी पर हुआ पथराव बीजेपी को नागवार गुजरा है।
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राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बंगाल की ममता सरकार को आड़े हाथ लिया
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस के जरिए बंगाल की ममता सरकार को आड़े हाथ लेते हुए चेतावनी दी कि उन्हें संविधान से नहीं खेलना चाहिए। राज्यपाल ने बताया कि उन्होंने आशंका जताते हुए राज्य सरकार को आगाह किया था, लेकिन राज्य सरकार ने इसकी अनदेखी की, जबकि राज्य की कानून-व्यवस्था का जिम्मा उसके हाथ में हैं। राज्यपाल धनखड़ ने अपने संबोधन में सख्त लहजे में सीएम ममता बनर्जी को आग से नहीं खेलने की चेतावनी दी है, जिससे संभावना बढ़ गई है कि वो चुनाव से पूर्व पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।
पश्चिम बंगाल में पहली बार बीजेपी नेताओं के ऊपर हमले हुए हैं
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब पश्चिम बंगाल में बीजेपी नेताओं के ऊपर हमले हुए हैं। 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद लगातार ममता और मोदी सरकार के साथ छत्तीस का आंकड़ा देखा गया है। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पश्चिम बंगाल में 18 लोकसभा सीटों पर हुई धाकड़ जीत के बाद पश्चिम बंगाल सरकार कुछ ज्यादा ही आगबबूला हो गई है। यह लगातार बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं पर हमले और हत्या की खबरों से समझा जा सकता है, जहां सियासी फायदे-नुकसान के लिए राजनीतिक हत्याओं का दौर शुरू हो गया था।
बंगाल में 110 से अधिक बीजेपी नेता वकार्यकर्ता की हत्या हो चुकी है
एक रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल में ममता दीदी के राज में अब तक कुल 110 से अधिक बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओ की हत्या हो चुकी है। कहा जाता है कि 1 जून से अनलॉक की शुरूआत के बाद से हत्याओं के सिलसिले में तेजी आई है। इसी साल अगस्त और सितंबर के महीने में राजनीतिक संघर्ष में 12 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या रिपोर्ट हुई है, जिसमें आधा दर्जन कार्यकर्ता बीजेपी के थे। यही नहीं, प्रदेश में एक बीजेपी विधायक और 3 पार्टी कार्यकर्ताओं के शव भी संदिग्ध हालात में फांसी के फंदे से झूलते हुए पाए गए। इस पर बीजेपी ने कहा था कि ममता राज में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।
बंगाल में राजनीतिक हत्याओं को सिलसिला वाममोर्च की सरकार से जारी है
माना जाता है कि बंगाल में वाममोर्च की सरकारों के काल से ही राजनीतिक हत्याओं को सिलसिला चला आ रहा है। ममता के शासन काल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्याओं के शुरू हुए दौर से कहा जा सकता है कि वाममोर्च के शासन के दौरान सियासी हत्याओं की जो शुरूआत हुई थी, उसे ममता सरकार में प्रश्रय मिलता गया है। केरल में सत्तारूढ़ वाममोर्च की सरकार में हुई बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्या की खबरों से कौन अपरिचित है, जब केरल विधानसभा चुनाव से पूर्व प्रदेश में दर्जनभर से अधिक बीजेपी कार्यकर्ता और नेता की हत्या की खबरें मीडिया में सुर्खियों में बनी थीं।
2019 में एक डाक्टर को पिटाई के बाद हड़ताल पर चले गए चिकित्सक
जून, 2019 में कोलकाता में दिल के मरीज के अस्पताल में मौत के बाद एक डाक्टर को पिटाई की घटना के बाद राज्य में डाक्टरों की हड़ताल को कौन भूल सकता है, और तब डाक्टरों के साथ खड़ा होने के बजाय ममता सरकार उन लोगों के साथ खड़ी नजर आईं, जिन्होंने डाक्टरों की पिटाई की थी। सीएम ममता बनर्जी ने इसके लिए भी केंद्र मोदी सरकार पर आरोप मढ़ दिया। हालात तब और बिगड़ गए जब सोशल मीडिया पर लहूलुहान डाक्टरों की तस्वीरें देखकर बाकी डाक्टर भी भड़क गए, जिसका देशव्यापी असर भी देखा गया और एम्स से लेकर निजी अस्पताल तक की स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो गईं थीं।
शारदा चिटफंड घोटाले ने केंद्र के साथ ममता के टकराव को और बढ़ाया
केंद्र के साथ ममता के टकराव में बड़ा पेंच शारदा चिटफंड घोटाले ने भी बढ़ाया, जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच कर रही सीबीआई के अधिकारी तत्कालीन कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए पश्चिम बंगाल पहुंची थी और उसे राज्य पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पहले सीबीआई अधिकारियों को पुलिस कमिश्नर के घर घुसने नहीं दिया गया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सीबीआई अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद खुद सीएम ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर के घऱ पहुंचकर धऱने पर बैठ गईं। शारदा चिट फंड घोटाले की जांच का नेतृत्व कर रहे तत्कालीन कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप था और इसी मामले में पूछताछ करने सीबीआई वहां पहुंची थी।
टीएमसी सरकार लगातार 9 वर्षो से केंद्र को चुनौती देती आ रही है
इतिहास गवाह है कि जब कभी केंद्र ने राज्य की शक्तियों का प्रभुत्व के आधार पर एक सीमा से अधिक दमन किया है, तो केंद्र ही कमजोर हुआ है, जिसके कई उदाहरण मिल जाएंगे। यह पहली बार था जब ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार लगातार 9 वर्षो से केंद्र को चुनौती देती आ रही है। हालांकि सविंधान निर्माताओं ने राज्यों को केंद्र की शक्तियों को राज्यों में सीमित रखने के लिए कुछ ऐसे प्रावधान रखे है, जिससे राज्य और संघ में अधिकारों को लेकर संघर्ष की स्थिति न उत्पन्न न हो, लेकिन लगता है ममता बनर्जी लालू यादव, जयललिता और मायावती से कुछ सबक नहीं सीख पाई हैं, जिन्होंने टकराव को अपना राजनीतिक हथियार बना रखा है।
बंगाल चुनाव 2021 में सत्तारूढ़ टीएमसी को हार का खतरा सता रहा है
निः संदेह पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ टीएमसी को हार का खतरा सता रहा है, जिसका ट्रेलर वह लोकसभा चुनाव 2019 में वह देख चुकी है। लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 18 सीटों पर कब्जा करके बीजेपी टीएमसी को उसके घर में बड़ा धक्का दे चुकी है। इसलिए जैसे-जैसे प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, बंगाल में केंद्र और राज्य के बीच टकराहट बढ़ते जा रहे हैं। इसकी बानगी बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की गाड़ी पर की गई पत्थऱबाजी से समझा जा सकता है। हालांकि इस बार मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को समन कर केंद्र ने तेवर कड़े किए हैं।
कानून-व्यवस्था का हवाला देकर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं राज्यपाल
कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अगर कानून-व्यवस्था का हवाला देकर राज्यपाल जगदीप धनखड़ कल को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दें, क्योंकि प्रदेश की कानून-व्यवस्था में विधानसभा चुनाव संपन्न करवाना चुनाव आयोग के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। वैसे भी, इस चुनाव में बीजेपी टीएमसी पर भारी पड़ती दिख रही है और केंद्र सरकार यह दांव चलकर ममता सरकार को झटका दे सकती है और इसकी आशंका अब और बढ़ गई है कि 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव राष्ट्रपति शासन में संपन्न हो सकती है।
यूपीए सरकार के साथ भी ममता बनर्जी की कार्य संस्कृति टकराव वाली रही
हालांकि केंद्र के साथ टीएमसी सरकार के संबंधों पर एक नजर डाले तो ममता बनर्जी की राजनीति टकराव की रही है। 2011 में मुख्मंत्री के तौर पश्चिम बंगाल की सत्ता संभालने वाली ममता बनर्जी की कार्य संस्कृति कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के साथ टकराव वाली रही थी। 2016 में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान ममता ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसका नमूना कोरोना महामारी में केंद्र के साथ टकराव, मई में अम्फन तूफान को लेकर गृह मंत्री के साथ झगड़ा शामिल है। इस क्रम में बंगाली प्रवासी मजदूरों को लेकर केंद्र और बंगाल सरकार के बीच टकराव को कौन भूल सकता है।
बंगाल सीमा पर नेपाल, बांग्लादेश व भूटान से आने वाले ट्रकों पर टकराव
यही नहीं, बंगाल की सीमा पर नेपाल, बांग्लादेश और भूटान से आने वाले ट्रकों को लेकर भी केंद्र और बंगाल सरकार के बीच टकराव देखा गया है। केंद्र के साथ बंगाल की ममता सरकार के टकराव को लेकर बंगाल बीजेपी नेताओं ने ममता सरकार के खिलाफ मिसिंग ममता, भय पेयचे ममता, कोथाय आचे ममता जैसे कई अभियान छेड़ने और हुगली के तेलिनीपाड़ा में हुए दंगे को लेकर सोशल मीडिया में सवाल उठाने पर बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और आईटी सेल प्रभारी अमित मालवीय के खिलाफ हुई रिपोर्ट पर राज्य पुलिस ने सांसद अर्जुन सिंह और लॉकेट बनर्जी समेत कई नेताओं पर मामले दर्ज कर एक और टकराव को जन्म दिया था।
मोदी सरकार के साथ टकराव के संकेत 2014 लोकसभा चुनाव में दे दिया
माना जा रहा है कि बंगाल की ममता सरकार बीजेपी को बंगाल विधानसभा चुनाव में मिलने जा रही संभावित बढ़त से आशंकित है, इसलिए टीएमसी जानबूझकर टकरावों को जन्म दे रही है। ममता ने मोदी सरकार के साथ टकराव के संकेत 2014 लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं होकर दे दिया था, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी से बुरी तरह पिछड़ने के बाद ममता बनर्जी का यह अनशन जारी रहा और यह सातवें आसमान पर पहुंच गया है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में नुकसान से आहत टीएमसी विधानसभा चुनाव में हार से भी आशंकित है।
ममता का पूरा कार्यकाल केंद्र, राज्यपाल और भाजपा से लड़ते हुए बीता है
ममता बनर्जी के पिछले वर्षों के कार्यकाल पर एक नजर डालें तो उनका पूरा कार्यकाल केंद्र और राज्यपाल और भाजपा से लड़ते हुए बीता है। मोदी सरकार की योजनाओं, केंद्रीय मंत्रालयों के द्वारा भेजे गए निर्देश और राज्यपाल की सलाह और निर्देशों को ममता बनर्जी बार-बार मानने से इनकार करती रही हैं। यही नहीं, सीएम ममता बनर्जी चुनाव आयोग, केंद्रीय सुरक्षा बलों और सेना से टकराहट मोल लेने से नहीं चूकी हैं। केंद्र से टकराव का सिलसिला ममता सरकार का यहीं तक खत्म नहीं हुआ, बल्कि क्रमवार बढ़ता और बदलता भी रहा। महामारी के दौरान ममता सरकार ने राजभवन की पूरी तरह अनदेखी की और बार-बार सूचनाएं मांगने पर भी राज्यपाल को जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई।
केंद्र की योजनाओं के नाम बदलकर ममता ने टकराव को जन्म दिया
ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी सरकार ने केंद्र की योजनाओं के नाम बदलकर भी टकराव को जन्म दिया है। केंद्रीय योजनाओं में शामिल दीन दयाल उपाध्याय योजना का पश्चिम बंगाल में बदलकर आनंदाधारा करना, स्वच्छ भारत अभियान का नाम बदलकर मिशन निर्मल बांग्ला करना, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना का नाम बदलकर सबर घरे आलो करना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का नाम राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का नाम बांग्लार ग्राम सड़क योजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का नाम बांग्लार गृह प्रकल्प योजना करना बताता है कि पश्चिम बंगाल एक भी मौका केंद्र से टकराव का नहीं छोड़ती है और फिर खुद ही लोकतंत्र खतरे में है का नारा देतर सिर पर आसमान उठा लेती है।