कर्नाटक के बसवराज बोम्मई सातवें हैं, अभी ऐसे 6 मुख्यमंत्री कौन हैं जिनके पिता भी रह चुके हैं CM
बेंगलुरु, 28 जुलाई: बसवराज बोम्मई कर्नाटक के 23वें मुख्यमंत्री बने हैं। बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे से पहले से ही इसके लिए कर्नाटक बीजेपी में कई नाम चल रहे थे। माना जा रहा है कि बोम्मई के नाम पर आसानी से मुहर इसलिए लगी है, क्योंकि वे पूर्व सीएम के करीबी हैं और लिंगायत समुदाय से भी आते हैं। ताजपोशी के साथ ही बसवराज बोम्मई एचडी कुमारस्वामी के बाद राज्य के ऐसे दूसरे सीएम बन गए हैं, जिनके पिता के पास भी कभी यह कुर्सी रह चुकी है। लेकिन, दिलचस्प ये है कि बसवराज के साथ ही अभी देश में कुल 7 ऐसे मुख्यमंत्री हो गए हैं, जिनके पिता भी कभी न कभी यह जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
कर्नाटक के पूर्व सीएम के बेटे हैं बसवराज बोम्मई
61 वर्षीय बसवराज बोम्मई उत्तर कर्नाटक के हावेरी जिले के शिग्गांव विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं। वे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई के बेटे हैं, जिनका आर्टिकल 356 के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ा गया एक मुकदमा देश की राजनीतिक व्यवस्था के लिए नजीर बन चुका है। एस आर बोम्मई 1989 में 9 महीने तक कर्नाटक सीएम रहे थे और केंद्रीय मंत्री भी रह चुके थे। बसवराज बोम्मई से पहले कर्नाटक में पिता की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी को मिल चुका है। उनके पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी राज्य के सीएम रहे हैं।
बसवराज बोम्मई क्यों हैं भाजपा के लिए बेहतरीन विकल्प
बीएस येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा फैसला जरा चौंकाने वाला है, क्योंकि मंगलवार तक उनका नाम बहुत ज्यादा प्रमुखता से सामने नहीं आया था। लेकिन, जानकार मानते हैं कि जिस तरह से लिंगायत समुदाय के संतों ने येदियुरप्पा के हटने पर गोलबंदी दिखाई थी, उसके बाद बोम्मई को आगे करके बीजेपी नेतृत्व ने एक तीर से कई चुनौतियों को साधने की कोशिश की है। इंजीनियरिंग ग्रेजुएट रहे बसवराज भाजपा या संघ के ऑरिजनल कैडेट नहीं हैं। वे जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) से होते हुए पार्टी में शामिल हुए हैं। लेकिन, इसके अलावा उनमें इतनी विशेषताएं हैं, जो मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में बीजेपी के लिए बेहतरनीन विकल्प बनकर उभरे हैं। येदियुरप्पा की तरह वे लिंगायत समुदाय से हैं, जिसके 16 फीसदी वोट बैंक पर भाजपा की पकड़ रही है। वे बड़े लिंगायत नेता येदियुरप्पा के बहुत ही भरोसेमंद हैं तो केंद्रीय नेतृत्व के प्रति भी अनुशासन में पूरी तरह से बंधे रहे हैं।
बोम्मई के अलावा वे 6 मुख्यमंत्री जिनके पिता भी रह चुके हैं सीएम
इस समय देश में कुल सात मुख्यमंत्री ऐसे हैं, जिनके पिता भी कभी सीएम की बागडोर संभाल चुके हैं। बसवराज बोम्मई इसमें सबसे ताजा नाम हैं। अगर दक्षिण भारत में ही देखें तो कर्नाटक के पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पिता एम करुणानिधि लंबे वक्त तक कई बार वहां के सीएम बने। इसी तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी भी एकजुट आंध्रपदेश के सीएम थे और मुख्यमंत्री रहते हुए ही एक हेलीकॉप्टर हादसे में उनकी मौत हुई थी। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक राज्य में सबसे लंबे समय से सीएम की कुर्सी पर हैं। उनके पिता बीजू पटनायक भी दो बार ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे थे। ओडिशा से सटे झारखंड में अभी झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन सीएम हैं। उनके पिता शिबू सोरेन भी राज्य में यह गद्दी संभाल चुके हैं। पूर्वोत्तर चलें तो मेघालय में अभी कॉनराड संगमा सीएम हैं, जिनके पिता पीएम संगमा भी मुख्यमंत्री थे। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू के पिता दोरजी खांडू भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं।
एक से ज्यादा मुख्यमंत्री देने वाला परिवार
देश में कम से कम ऐसे 19 मौके आ चुके हैं, जिसमें एक ही परिवार के एक से ज्यादा सदस्य मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। जम्मू और कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती दोनों, राज्य की कमान संभाल चुके हैं। बिहार में लालू यादव जब मुख्यमंत्री थे और उन्हें चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा तो उन्होंने सीएम की कुर्सी अपनी पत्नी राबड़ी देवी को ट्रांसफर कर दी। इनके अलावा तमिलानाडु में एमजीआर और उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रण भी मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदार संभाल चुके हैं।
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क्या है बोम्मई केस और आर्टिकल 356 के दुरुपयोग पर ब्रेक ?
कर्नाटक के नए सीएम बसवराज बोम्मई के पिता एसआर बोम्मई एक समाजवादी नेता थे, जिनका नाम सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले से जुड़ा है। उनके मामले में सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने से पहले आर्टिकल 356 को हथियार बनाकर विरोधी दल की सरकारों को गिरा देना, तब की केंद्र की सरकारों की परंपरा बन गई थी। कांग्रेस सरकारों ने इस आर्टिकल का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया। जब बोम्मई की पार्टी के विधायकों ने दल-बदल किया तो तत्कालीन गवर्नर ने उन्हें सदन में बहुमत साबित करने का मौका नहीं दिया। एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि मुख्यमंत्री के पास बहुमत है या नहीं, इसका फैसला सिर्फ सदन के अंदर ही होगा और कहीं भी नहीं। इसके अलावा फैसले में संविधान के इस अनुच्छेद के दुरुपयोग करके राज्यों में राष्ट्रपति शासन थोपने के केंद्र सरकारों की कोशिशों के खिलाफ भी गाइडलाइंस तय कर दी गई।