देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए जस्टिस यूयू ललित, इन ऐतिहासिक फैसलों के लिए होती है उनकी चर्चा
नई दिल्ली, अगस्त 10। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित को देश का अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से बुधवार को उनके नाम की एक आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी गई। आपको बता दें कि यूयू ललित के नाम की सिफारिश खुद मौजूदा चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना ने की थी। आपको बता दें कि एनवी रमना का कार्यकाल 26 अगस्त को खत्म हो रहा है। यूयू ललित उनका ही जगह लेंगे।
74 दिन का कार्यकाल रहेगा यूयू ललित का
आपको बता दें कि एनवी रमना ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के समक्ष यूयू ललित के नाम की सिफारिश रखी थी। उनकी सिफारिश के आधार पर ही यूयू ललित को नया सीजेआई नियुक्त कर दिया गया है। हालांकि उनका कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं होगा। वो 8 नवंबर को अपने पद से रिटायर्ड हो जाएंगे। ऐसे में यूयू ललित सिर्फ 74 दिन ही देश के मुख्य न्यायाधीश रहेंगे।
जानिए जस्टिस यूयू ललित के बारे में
आपको बता दें कि 9 नवंबर 1957 को जन्मे यूयू ललित ने जून 1983 में अपना कानूनी करियर शुरू किया था और दिसंबर 1985 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में काम किया। बाद में वे दिल्ली चले गए। उन्हें अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक वरिष्ठ वकील के रूप में नियुक्त किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश किए जाने से पहले यूयू ललित ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में कार्य किया था। उन्हें 13 अगस्त 2014 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया गया था।
यूयू ललित जाने जाते हैं इन फैसलों को लेकर
- आपको बता दें कि बतौर सुप्रीम कोर्ट के जज के कार्यकाल में यूयू ललित ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं। 2017 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने तीन तलाक को अवैध घोषित करने वाला फैसला सुनाया था। यूयू ललित उस बेंच का हिस्सा थे।
- इसके अलावा जस्टिस ललित की अगुवाई वाली बेंच ने केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनास्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार त्रावणकोर के राजसी परिवार के पक्ष में दिया था। अदालत ने फैसला दिया था कि मंदिर के शेबैत का अधिकार वंशक्रम से जुड़ा होना चाहिए। श्री पद्मनास्वामी मंदिर देश के सबसे धनाढ्य मंदिरों में शामिल है।
- इसके अलावा एक पॉक्सो केस में स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट मामले में भी जस्टिस ललित की अगुवाई वाली बेंच का फैसला देश के सामने एक नजीर है। इसमें अदालत ने फैसला दिया था कि 'यौन इरादे' से किसी बच्चे का शरीर छूना या किसी तरह का शारीरिक संपर्क करना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पॉक्सो) ऐक्ट की धारा 7 के तहत 'यौन हमला' है और स्किन-टू-स्किन टच होना ही आवश्यक नहीं है। इस फैसले के साथ ही सर्वोच्च अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के स्किन-टू-स्किन टच वाले विवादित फैसले को पलट दिया था।
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