इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज का विदाई समारोह हुआ रद्द, पीएम मोदी को लेटर लिखकर कॉलेजियम पर उठाए थे सवाल
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडे को गुरुवार को आधिकारिक विदाई देने से इनकार कर दिया गया। उन्होंने कुछ दिन पहले न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में कमियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा था। जस्टिस पांडे मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच से रिटायर हुए थे। हाईकोर्ट के जजों का विदाई समारोह गुरुवार को रखा गया था।
हाईकोर्ट के जज का विदाई समारोह रद्द
हाईकोर्ट के सीनियर रजिस्ट्राट मानवेंद्र सिंह ने नोटिस में इसकी पुष्टि की है। गुरुवार को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के वरिष्ठ रजिस्ट्रार मानवेन्द्र सिंह ने इस पर हस्ताक्षर किए। उनके नोट में बताया गया है कि जस्टिस रंगनाथ पांडेय के लिए, जो आयोजित विदाई समारोह का नोटिस एक जुलाई को जारी किया गया था, उसे कुछ अप्रत्याशित परिस्थितियों की वजह से वापस लिया जा रहा है।
जजों की नियुक्ति पर उठाए सवाल
सीनियर रजिस्ट्राट मानवेंद्र सिंह ने एक जुलाई को नोटिस जारी कर अवध बार एसोसिएशन, सॉलिसिटर जनरल, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल को सूचना दी थी कि जस्टिस पांडेय चार जुलाई को रिटायर्ड हो रहे हैं। इस मौके पर उन्हें चीफ जस्टिस के कोर्ट के कक्ष में विदाई दी जाएगी। रिटायर्ड हो रहे जजों को इस तरह विदाई समारोह के जरिए सम्मानित करना कोर्ट की एक पुरानी परंपरा रही है। हालांकिअवध बार एसोसिएशन ने बार में जस्टिस पांडे का स्वागत किया और उन्हें विदाई दी। इस मौके पर जस्टिस पांडे ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया की निंदा की।
पीएम मोदी को लिखा था पत्र
जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में कहा है कि वे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त विसंगतियों की तरफ उनका ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में प्रचलित कसौटी केवल परिवारवाद और जातिवाद है। इस चिट्ठी में न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को लोकसभा चुनावों में प्रचंड जीत पर बधाई भी दी थी। जस्टिस पांडे ने आगे कहा कि प्रशासनिक अधिकारी को सेवा में आने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरना होता है। अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीशों को भी अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं में योग्यता सिद्ध कर ही चयनित होने का अवसर मिलता है। लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति का हमारे पास कोई निश्चित मापदंड नहीं है।