उत्तर प्रदेश चुनाव: जेवर में एयरपोर्ट भारी पड़ेगा या सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति का विवाद
बीजेपी 'यूपी मॉडल" में जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट परियोजना को विधानसभा चुनाव के 'गेमचेंजर' के तौर पेश कर रही है. गठबंधन के उम्मीदवार अवतार सिंह भड़ाना गुर्जर अस्मिता का मुद्दा उठा रहे हैं. वहीं, बीएसपी दोनों मुद्दों को लेकर विरोधियों पर हमलावर है.
जेवर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उन विधानसभा सीटों में है जिनकी चर्चा सबसे ज़्यादा है.
वजह कई हैं. इंटरनेशनल एयरपोर्ट समेत दूसरी विकास योजनाओं के श्रेय की होड़. प्रतीकों को लेकर भिड़ते और एक-दूसरे पर तीखे हमले करते प्रत्याशी. सम्राट मिहिर भोज की विरासत पर दावेदारी और उनकी मूर्ति से जुड़ा विवाद. इसी से जुड़े जातीय वर्चस्व के सवाल और पार्टियों की अंदरूनी गुटबाज़ी के किस्से.
वोटरों की लिस्ट में मुद्दे कई और भी हैं. कनारसी गांव के देशराज गुर्जर कहते हैं, "बेरोज़गारी बड़ा मुद्दा है."
रोज़गार को लेकर भी सवाल हर प्रत्याशी उठा रहा है. वादे भी किए जा रहे हैं, लेकिन मुख्य मुक़ाबले में मानी जा रही पार्टियां 'स्वाभिमान और अस्मिता' की बात करते हुए भावनाओं से जुड़े मुद्दों पर ज़्यादा ज़ोर दे रही हैं.
यहां 10 फ़रवरी को वोट डाले जाएंगे.
जेवर पर टिका 'यूपी मॉडल'
सत्ताधारी बीजेपी की बात करें तो उसके 'यूपी मॉडल' में जेवर विकास का 'नया प्रतीक' है.
नवंबर 2021 में इंटरनेशनल एयरपोर्ट के भूमि पूजन के लिए आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलान किया, "जेवर अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर अंकित हो गया है."
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले से आने वाले प्रदेश सरकार के मंत्री सुरेश राणा तक विकास के काम गिनाते हैं तो जेवर एयरपोर्ट का ज़िक्र ज़रूर करते हैं.
ये एशिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा. बीजेपी के सभी नेता इसे 'गेमचेंजर' माने बैठे हैं.
गौतमबुद्ध नगर से बीजेपी सांसद डॉक्टर महेश शर्मा कहते हैं, "जेवर मेरी आत्मा का टुकड़ा है."
मौजूदा विधायक और बीजेपी प्रत्याशी धीरेंद्र सिंह अपनी हर सभा और मीडिया से होने वाली चर्चा में एयरपोर्ट, फ़िल्म सिटी और मेडिकल डिवाइस पार्क को अपनी उपलब्धि के तौर पर गिनाते हैं.
एयरपोर्ट की बात बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र भाटी भी करते हैं और योजना बनाने का श्रेय अपनी पार्टी को देते हैं.
पहली बार चुनाव लड़ रहे भाटी कहते हैं, "ये एयरपोर्ट बहन कुमारी मायावती जी की योजना थी. हमारी नेता जब यहां प्रदेश में मुख्यमंत्री थीं वो भी चाहती थीं कि जेवर में एयरपोर्ट बने. उसके लिए उन्होंने पहल भी की थी."
https://www.youtube.com/watch?v=5T3w-pe0cv4
भड़ाना की चुनौती
बीजेपी को चुनौती हाल में उससे नाता तोड़ने वाले अवतार सिंह भड़ाना भी दे रहे हैं. लेकिन वो दूसरे मुद्दे उठा रहे हैं.
अवतार सिंह भड़ाना कहते हैं, "जिस सरकार को लोगों ने बनाया था, उस सरकार ने धोखा दिया है. इस क्षेत्र के साथ अन्याय किया है."
भड़ाना इसके पहले मुज़फ़्फ़रनगर की मीरापुर सीट से बीजेपी की टिकट पर विधायक चुने गए थे. हरियाणा से राजनीति की शुरुआत करने वाले भड़ाना चार बार सांसद रह चुके हैं. जेवर में उन्हें राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है.
टिकट मिलने के बाद पीछे हटने का संकेत देने और फिर 'अपनों के लिए चुनाव' लड़ने का एलान करने की वजह से भड़ाना ज़्यादा चर्चा में आए.
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चुनाव और सम्राट मिहिर भोज की विरासत
जेवर सीट पर मौजूद उम्मीदवारों में से 'सबसे धनवान' प्रत्याशी भड़ाना अब हर सभा में भावनात्मक मुद्दे उठा रहे हैं.
वो किसान आंदोलन की याद दिलाते हैं और किसी भी कार्यक्रम में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति से जुड़े विवाद को उठाना नहीं भूलते.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "हमने हमेशा ही सब समाजों का सम्मान किया. लेकिन हमारा अपमान हुआ है. इन्होंने दादरी में जो हमारा अपमान किया है. उसका बदला लिया जाएगा. मुझे डर नहीं लगता. मेरे समाज को कह दिया है मैंने, आपने सेंट परसेंट वोट बीजेपी को दिया था, इस बार उन्होंने धोखा किया है, (इसका) जवाब देना चाहिए."
जेवर से सटे दादरी में बीते साल सितंबर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक इंटर कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था.
मूर्ति के शिलापट्ट पर 'गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज' लिखा था और किसी ने 'गुर्जर' शब्द पर कालिख पोत दी. इस घटना को लेकर राजपूतों और गुर्जरों के बीच तनाव पैदा हो गया. चुनाव प्रचार के दौरान इसका असर महसूस किया जा सकता है.
भड़ाना के समर्थक देशराज कहते हैं, "वो नाराज़गी हमारे दिलों से नहीं निकल सकती. भड़ाना ने ये मुद्दा उठाया और एलान किया, गुर्जरों एक हो जाओ."
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बीएसपी उम्मीदवार का सवाल
लेकिन, इस एकता को चुनौती चुनाव मैदान में मौजूद गुर्जर समुदाय के दूसरे प्रत्याशी ही दे रहे हैं. बीएसपी के उम्मीदवार नरेंद्र भाटी सवाल करते हैं, "अवतार भड़ाना इसको उठाने वाले कौन हैं? क्या यहां समाज में नेता नहीं है? सबसे पहले ये मुद्दा मैंने उठाया था."
हालांकि, भाटी भी कहते हैं कि चुनाव में ये एक प्रमुख मुद्दा है.
वो कहते हैं, "ये एक मुद्दा है. किसी भी समाज के महापुरुषों का अपमान नहीं होना चाहिए."
लेकिन, भारतीय जनता पार्टी की राय अलग है. पार्टी का दावा है कि उनके लिए चुनाव में ये मुद्दा नहीं है.
डॉक्टर महेश शर्मा ने बीबीसी से फ़ोन पर हुई बातचीत में कहा, "महापुरुष सबके होते हैं. ये किसी एक जाति के नहीं होते. इस विषय को राजनीति के तहत कुछ लोगों ने उठाया था, अब वो विषय समाप्त हो चुका है. कोई भी विपक्ष के लोग इसका दुरुपयोग करें, लेकिन हमारी पार्टी की तरफ़ से किसी भी तरह का ये विषय नहीं है."
लेकिन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश ख़ासकर गौतमबुद्ध नगर की राजनीति पर क़रीबी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाराशर कहते हैं कि इस मुद्दे का असर दिखता है. उनकी राय है कि कितने गुर्जर बीजेपी का साथ छोड़कर जाएंगे, ये कई दूसरी बातों से भी तय होगा.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "दादरी में भी और यहां भी इस बार थोड़ा (प्रभाव) दिख रहा है. गुर्जर थोड़े बीजेपी से नाराज़ हैं. लेकिन राजनीति में चीज़ें बदलती रहती हैं. पश्चिम में लग रहा है कि जाट थोड़ा अलग हटेंगे भाजपा से. जाट जितना हटेगा, गुर्जर बीजेपी से सटेगा."
दादरी और जेवर के अलावा गौतमबुद्ध नगर की तीसरी विधानसभा सीट नोएडा है. 2017 में तीनों सीट बीजेपी ने हासिल की थीं.
भड़ाना को लेकर पंकज पाराशर कहते हैं कि वो चुनाव के दौरान सुर्ख़ियों में रहना जानते हैं.
वो कहते हैं, "अवतार सिंह भड़ाना जहां जाते हैं, चुनाव को हाई प्रोफ़ाइल कर देते हैं. वो पैसे की ताक़त से चुनाव लड़ते हैं. मेरठ, मीरापुर या फ़रीदाबाद जहां चुनाव लड़े वो, सुर्ख़ियों में बने रहे. अपने फ़ॉलोअर्स को वो दिखाने की कोशिश करते हैं कि मैं बहुत मज़बूत हूं. डरता नहीं हूं."
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आरोप और जवाब
भड़ाना पर कोविड प्रोटोकॉल उल्लंघन के आरोप भी लगे हैं, लेकिन बीबीसी से बातचीत में उन्होंने दावा किया, "लोगों की जान मुझे एमएलए (होने) से ज़्यादा क़ीमती है. मैंने प्रोटोकॉल के लिए कहा है लेकिन जनसमूह निकल रहा है, इसको कौन रोक सकता है."
उधर, बीएसपी उम्मीदवार नरेंद्र भाटी, भड़ाना के साथ नज़र आने वाली समर्थकों की भीड़ पर सवाल उठाते हैं.
वो कहते हैं, "अवतार भड़ाना यहां केवल 10 दिन के नेता हैं. वो रिश्तेदारियों के बेस पर आए हैं. मेरी कई पीढ़ियां यहां समाज सेवा में लगी रहती हैं. जेवर के लोग सम्मानित हैं. ये धनबल पर बिकने वाले नहीं हैं. न बड़े डायलॉग पर. ज़मीनी लोग इनके साथ घूम नहीं रहे. वो हरियाणा से लोग लाते हैं."
भड़ाना पर ऐसे आरोप दूसरे दल भी लगा रहे हैं लेकिन वो इन्हें सिरे से ख़ारिज कर देते हैं.
वो कहते हैं, "मैं हरियाणा में पैदा हुआ. एक गऊपालक के घर में. मैं जहां से भी बना हूं वहां के लोग मुझे चुनते हैं. मैं उन्हें अपना परिवार समझता हूं. लोगों के लिए जीता हूं लोगों के लिए मरता हूं."
किसके हक़ में समीकरण?
मौसम का मूड भांपकर दलबदल करने के आरोप को भी भड़ाना ख़ारिज करते हैं.
वो कहते हैं, "आज मैं इस गठबंधन में इसलिए आया हूं कि भाजपा सरकार ने किसान और मज़दूरों के साथ ज़ुल्म किए हैं. जब हमारा किसान मरता रहा, हम कहते रहे बीजेपी को, आला नेताओं को कि आप अपने मन की बात कहते हैं, इन किसानों की बात भी दो मिनट सुन लीजिए. जब हमने देखा कि किसान मर जाएगा, ग़रीब मर जाएगा तो देश कहां बचेगा? भाजपा से इस्तीफ़ा देकर हम किसानों की लड़ाई में कूदे."
बीजेपी किसानों की अनदेखी के आरोपों को ग़लत बताती है. गुर्जर उम्मीदवारों के बीच संघर्ष को भी पार्टी अपने हक़ में देख रही है.
डॉक्टर महेश शर्मा कहते हैं, "जेवर के अंदर हमारी स्थिति मज़बूत है. समीकरण भी हमारे फ़ेवर में है. गुर्जर समुदाय से तीन प्रत्याशी हैं."
कांग्रेस उम्मीदवार मनोज चौधरी भी गुर्जर समुदाय से आते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाराशर की राय में जेवर के समीकरण बाकी सीटों से थोड़े अलग हैं. यहां वोटर भी अलग तरीके से मतदान करते हैं.
वो बताते हैं, "दलित आम तौर पर बहुजन समाज पार्टी का वोटर माना जाता है. प्रदेश के मुस्लिम इस बार समाजवादी पार्टी के साथ माने जा रहे हैं. लेकिन, जेवर में भाटी गोत्र के गुर्जर, भाटी गोत्र के ठाकुर और भाटी गोत्र के ही दोनों कम्युनिटी में मुसलमान हैं. (बीजेपी उम्मीदवार) धीरेंद्र सिंह का गोत्र भी भाटी है. ये लोग सामाजिक तौर पर जुड़े हुए हैं. ऐसे में लगता है कि वोट तीनों के बीच बंटेंगे. किसी एक को गुर्जर का वोट नहीं जाएगा."
गुर्जरों की नाराज़गी दूर करने के लिए बीजेपी ने इस समुदाय से आने वाले सांसद और दूसरे नेताओं को जेवर में लगाया है. हालांकि, इस समुदाय के कुछ लोग दावा करते हैं कि बीजेपी नेताओं को कुछ जगह विरोध का भी सामना करना पड़ा है.
विश्लेषकों की राय में इस सीट पर ठाकुर, गुर्जर, मुस्लिम और दलित वोटर ही जीत और हार की राह तय कराते हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=ppsHhMz1wNg
श्रेय की होड़
उधर, बीएसपी उम्मीदवार नरेंद्र भाटी का दावा है कि जेवर में उनकी पार्टी का दावा सबसे मज़बूत है.
वो कहते हैं, "कुछ लोग हवाई बातें कहेंगे. मैं ज़मीनी बात कहूंगा आपसे."
भाटी कहते हैं, " आप रिकॉर्ड उठाकर देखना, यहां जिसकी भी टक्कर रही है, बसपा से रही है. राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी तीसरे-चौथे नंबर की फ़ाइट में रहते हैं. "
साल 2012 में यहां बीएसपी उम्मीदवार ने मौजूदा विधायक धीरेंद्र सिंह को मात दी थी. तब वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे.
भाटी जेवर एयरपोर्ट को भी बीएसपी की योजना बताते हैं.
वो कहते हैं, "ये एयरपोर्ट बहन कुमारी मायावती जी की योजना थी. आज ये लोग आए हैं, बिल्कुल लास्ट में, लगा इनको चुनाव आने वाले हैं, इन्होंने फीता काटने काम किया."
बीजेपी में गुटबाज़ी?
हालांकि, बीजेपी का दावा है कि जेवर को एयरपोर्ट उनकी कोशिश से मिल रहा है.
डॉक्टर महेश शर्मा कहते हैं, " 30 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का हमारे यहां प्रोजेक्ट आया है. जेवर प्रोजेक्ट लाना, हालांकि इसमें मेरा योगदान कम, मेरे प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी का योगदान अधिक रहा है. ये ज़रूर है कि जब मैं एविएशन मिनिस्टर बना तो मैंने इस प्रोजेक्ट को उठाया. अखिलेश यादव की सरकार ये कह चुकी थी कि इस हवाई अड्डे को आगरा के पास ले जाया जाए. हमने इस विषय को प्रधानमंत्री जी के सामने रखा, उन्होंने हमें आदेश दिया."
बीजेपी रेस में ख़ुद को सबसे आगे बता रही है, लेकिन पार्टी के सामने जेवर में चुनौती सिर्फ़ विरोधियों से मुक़ाबले की नहीं है. पार्टी के अंदर भी सबकुछ ठीक नहीं बताया जाता.
ये दावा किया जा रहा है कि पार्टी प्रत्याशी ने आला नेताओं से शिकायत की है कि उन्हें स्थानीय नेताओं का सहयोग नहीं मिल रहा है.
डॉक्टर महेश शर्मा इस आरोप को ग़लत बताते हैं.
वो कहते हैं, "ये कहना ग़लत होगा. हमारी पार्टी संगठन की पार्टी है. हम सभी ने व्यवस्थाओं को बांट लिया है. भारतीय जनता पार्टी बहुत अच्छी स्थिति में है."
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