जाट आरक्षण आंदोलन से जुड़ी असहज करने वाली बातें
नई
दिल्ली(विवेक
शुक्ला)।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
जब
जाट
आरक्षण
पर
यह
कहकर
प्रतिबंध
लगा
दिया
कि
जाति
के
आधार
पर
आरक्षण
देना
गलत
है,
तो
एक
बार
फिर
से
यह
मुद्दा
गर्म
हो
गया।
मजेदार
बात
यह
है
कि
जाट
आरक्षण
आंदोलन
से
जुड़ी
कई
बातें
हैं,
जो
सुनकर
जाट
नेता
ही
नहीं
आप
भी
असहज
महसूस
करेंगे।
जी हां जाट नेता कहते हैं कि उनका यह वर्ग बहुत पिछड़ा हुआ है। आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से। लेकिन अगर आप इनके रहन-सहन पर नजर डालें तो आप कतई नहीं कहेंगे कि जाट पिछड़े हुए हैं।
एक दौर में राजधानी के बोट क्लब और फिर जंतर-मंतर पर जाट आरक्षण की मांग करने वाले नेता और उनके कार्यकर्ता लंबे चौड़ी कारों में आते थे धऱना देने के लिए। उन्हें ही वोटों के लिए सारे कायदे-कानूनों को भूल गई यूपीए सरकार ने जाट आरक्षण दिया था।
आरक्षण की जरूरत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने उसे मंगलवार को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जाट आरक्षण की जरूरत नहीं है। 9 राज्यों में जाट आरक्षण लागू था। यूपीए सरकार में ये फैसला लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसपर सुनवाई में कहा है कि जाटों को आरक्षण की जरूरत नहीं है।
चुनौती दी थी
जाटों को 9 राज्यों में ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण मिल गया। इसका कुछ ओबीसी संगठनों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। यूपीए सरकार का जाट आरक्षण को लेकर लिया फैसला शर्मनाक था।
पिछड़े तो नहीं
किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि हरियाणा, यूपी और राजस्थान के धौलपुर और भरतपुर के जाट किसी भी लिहाज से सामाजिक या आर्थिक दृष्टि से पिछड़े माने जा सकते हैं।
पिछड़ा कहना बेमनी
अब पंजाब के जाटों,चाहें हिन्दू या सिख, को पिछड़ा कहना बेमानी होगा। उनके पास राजीनीतिक ताकत से लेकर आर्थिक ताकत है। इसके बावजूद उन्हें पिछड़ा माना जाना गलत है। क्या प्रकाश सिंह बादल को आप पिछड़ा मानेंगे...
पर सबसे अफसोस की बात यह है कि जाट आरक्षण को हरी झंडी तो यूपीए सरकार के दौर में मिली, पर इसका किसी भी अन्य दल ने विरोध नहीं किया। इससे साफ है कि हमारे नेता और राजनीतिक दल कितने घटिया तरीके से राजनीति करते हैं।