'अबॉर्शन के लिए महिला को पति की सहमति जरूरी नहीं', केरल हाईकोर्ट का आदेश
नई दिल्ली, 27 सितंबर। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत महिला को अबॉर्शन के लिए पति के सहमति की आवश्यकता हो। अदालत ने कहा है कि अगर महिला अबॉर्शन चाहती है तो इसके लिए वो खुद निर्णय लेने में सक्षम है।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट तहत गर्भवती महिला की सहमति के आधार पर अबॉर्शन का प्रावधान है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रावधान इसलिए है क्योंकि महिला ही गर्भावस्था के तनाव और दर्द को सहन करती है। हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। जिसमें अपने पति से अलग होने के दावे साथ एक महिला ने 21 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी।
केरल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वीजी अरुण ने कहा कि गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति की सहमति जरूरी नहीं है। एमटीपी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार 20 से 24 सप्ताह के गर्भ के बीच समाप्ति की अनुमति दी जा सकती है। इसका कारण विधवा या फिर तलाक के कारण वैवाहिक स्थिति में बदलाव है।
अदालत ने यह भी कहा कि भले ही गर्भवती महिला कानूनी रूप से तलाकशुदा या विधवा नहीं थी लेकिन उसके पति व्यवहार से ये पता चला कि वो महिला के साथ भविष्य में कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता। ये वैवाहिक जीवन में बड़े परिवर्त की स्थिति है। अदालत ने कहा कि अधिनियम में एक महिला को गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए अपने पति की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
याचिकाकर्ता ने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ अपने पति से शादी की थी। महिला ने कोर्ट को बताया की जब वो स्नातक की पढ़ाई कर रही थी तो वो इलाके में बस कंडक्टर था। याचिकाकर्ता ने पति पर आरोप लगाया कि शादी के बाद दहेज की मांग को लेकर उसे तंग किया जा रहा था। इस दौरान पति ने अपने अजन्मे बच्चे के पितृत्व पर सवाल उठाया और महिला को अकेला छोड़ दिया। इसके बाद उसने अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। बाद में जब वो अबॉर्शन के लिए स्थानीय क्लिनिक में गई तो डॉक्टरों ने पति से तलाक के कोई कानूनी दस्तावेज ना होने के कारण मना कर दिया। जिसके बाद महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।