Hindi Diwas 2022: 'लोग सुविधाभोगी, विभाग के पास बजट नहीं'....जानिए कवि दिनेश बावरा से 'हिंदी' का हाल
Oneindia Exclusive: आज पूरा हिंदुस्तान 'हिंदी दिवस' मना रहा है, राष्ट्र के लोगों की भाषा होने के बावजूद आज भी ये राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। शायद प्रगतिशील समाज के चलते आज हिंदी भाषियों की हालत काफी पतली है। जो बच्चे हिंदी मीडियम स्कूलों में पढ़ते हैं उन्हें प्रतियोगिताओं में भाषा के कारण काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हाल ही में हिंदी भाषा को लेकर काफी घमासान मचा था, क्यों है हिंदी को लेकर झगड़ा, क्या है इसके पीछे की वजह? इस बारे में प्रकाश डाला मशहूर कवि और एक्टर दिनेश बावरा ने, जिन्होंने वनइंडिया हिंदी के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में हिंदी भाषा को लेकर काफी सुंदर और अच्छी बातें कहीं, जिसे हर भारतीय को जानना बहुत जरूरी है।
अपने चरिपरिचित अंदाज में दिनेश बावरा ने कहा कि 'हिंदी के प्रति उदासीनता का कारण आप इस बात से समझ सकते हैं कि आज हिंदी विभाग के पास अन्य विभागों के अपेक्षा बजट कम होता है। जहां पैसा ही नहीं वहां पर काम कैसे होगा, सरकार को इस ओर ध्यान देना बहुत ज्यादा जरूरी है।'
'भाषा को लेकर कोई घमासान नहीं'
उन्होंने कहा कि 'भाषा जोड़ने का काम करती है, भाषा को लेकर कोई घमासान नहीं है, जो कुछ भी बातें हो रही वो केवल शहरों तक ही सीमित है क्योंकि वहां पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव निश्चित रूप से दिखाई देता है, लेकिन मैं नहीं मानता कि हिंदी भाषा पर कोई खतरा है, क्योंकि इसके पीछे कारण जब तक हम आस्थावान है, रामचरित मानस जैसा ग्रंथ हमारे पास है, तब तक ऐसा हो ही नहीं सकता है।'
फिर उन्होंने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराते हुए कहा कि 'जरा ये बताइए कि अगर आप किसी नाई के पास जाएं और उससे अंग्रेजी में बाल काटने को कहें तो क्या वो काट देगा? वो बाल को तो नहीं काटेगा बल्कि वो आपकी जेब जरूर काट देगा? तो हिंदी आम की भाषा है, ना तो ये आज की भाषा है और ना ही ये खास की भाषा है, इसलिए मैं नहीं मानता कि कि इस भाषा को लेकर कोई घमासान है। ठीक है सवाल पैदा हुआ है तो होने दीजिए, होना भी चाहिए लेकिन मैं घमासान के पक्ष में नहीं हूं।'
इसके बाद दिनेश बावरा से जब पूछा गया कि 'आज लोग हिंदी और अंग्रेजी के चक्कर में हिंग्लिश बोलने लग गए हैं, ना तो वो ठीक तरह से हिंदी बोल पाते हैं और ना ही शुद्ध अंग्रेजी, तो इसके बारे में वो क्या कहेंगे?' तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बढ़ी ही गूढ़ बात कही, उन्होंने कहा कि 'इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि हमलोग सुविधाभोगी लोग हैं, हम हमेशा सुविधा की तरफ भागते हैं, हम सोचते हैं कि कौन डिटेल में जाएं और माथा पच्ची करे, मेरा मानना है कि हिंदी बहुत सघन भाषा है, कोई संदेह नहीं कि हिंग्लिश जरूर नुकसान कर रही है, दोष पैदा कर रही है, व्याकरण की दृष्टि से कमजोर हो रहे हैं, भाषा को अब हम संस्कार के रूप में नहीं देख रहे है, अब भाषा केवल संकेत और बोलचाल का जरिया बन गई है, जो कि ठीक नहीं है।'
यहां देखें पूरा इंटरव्यू
हिंदी दिवस के खास मौके पर उन्होंने कहा कि 'मेरा मानना है कि दुनिया में दो भाषाएं होनी चाहिए, एक मातृभाषा और एक राष्ट्रभाषा। एक भाषा ऐसी, जिसमें आप अपने बाबूजी से बात करें, अपनी मां से बात करें,अपने गांव की बात करें, अपने गली-मोहल्ले की बात करें, जिससे उससे लगे कि ये हमारा है और दूसरी भाषा वो , जिसमें जब हम बात करें जिससे दूसरे वाले को लगे कि ये उस राष्ट्र का है, उस देश का है, भारत का है। मैं सरकार से अपील करता हूं कि वो हिंदी अधिकारियों को थोड़ी शक्ति दें, वो उन्हें आगे ले जाएं और वो उसे बढ़ाएं।'