लकड़ी के भाले से मध्य प्रदेश के हिमांशु का कमाल, राष्ट्रीय स्पर्धा में ऐसे बनाई जगह
मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव के नवयुवक ने जो कर दिया वो आज के यूथ के लिए मिशाल है। अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बल पर यह युवा खिलाड़ी ने यह साबित कर दिया है कि मेहनक कभी बेकार नहीं जाती। आज यह खिलाड़ी जैविलीन थ्रो में भारत में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिया जाना जाता है। अब खेलो इंडिया गेम्स में भी जगह बना चुका है। हिमांशु एक आर्थिक रूप के कमजोर वर्ग की फेमिली से आते हैं। लिहाजा इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें कड़ी मेहनत के साथ अन्य कई समस्यओं से गुजरना पड़ा। आइये जानते हैं कि इस जैविलीन खिलाड़ी ने किन चुनौतियों को पार कर खेलों की श्रेष्ठ प्रतियोगिता में जगह बनाई है।
हिमांशु ने जीते कई मेडल
साल
2021
में
36वां
जूनियर
नेशनल
में
जैविलीन
थ्रो
गुवाहाटी
में
आयोजित
किया
गया
था।
इस
प्रतियोगिता
में
हिमांशु
ने
गोल्ड
मेडल
जीता
था।
इसके
बाद
वे
रायपुर
में
32वें
वेस्ट
जोन
में
स्वर्ण
पदक
जीतने
में
कामयाब
रहे।
दिल्ली
के
थर्ड
इंडियन
जैविलीन
चैलेंज
में
उनकी
चौथी
पोजिशन
रही।
जबकी
एक
बार
फिर
से
एमपी
यूथ
चैम्पियनशिप
में
उन्हें
गोल्ड
मिला।
8
मई
को
जमशेदपुर
में
आयोजित
फोर्थ
ओपन
इंडियन
जैविलीन
चैलेंज
में
हिमांशु
ने
66.40
मीटर
भाला
फेंक
प्रतियोगिता
में
सिल्वर
मेडल
हासिल
किया।
वहीं
अब
खिलाड़ी
हिमांशु
मिश्रा
का
चयन
4
जून
से
15
जून
तक
पंचकुला
हरियाणा
में
होने
वाले
खेलो
इंडिया
यूथ
गेम्स
के
लिए
हो
चुका
है।
जैविलीन की शुरुआत कड़ी चुनौती
मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव रामपुर बघेलान के बड़ा बरहा में खिलाड़ी हिमांशु मिश्रा का घर है। 17 साल के हिमांशु जैविलीन थ्रो में अब तक 3 गोल्ड और 1 सिल्वर मेडल अपने नाम कर चुके हैं। हलांकि यहां तक पहु्चना हिमांशु के लिए आसान नहीं था। गांव में जब उन्होंने जैविलीन की प्रैक्टिस शुरू की तो उन्हें लोग ताने भी मारते थे। उनके पास अच्छे कोच से सीखने लिए पैसे नहीं थे। शुरुआती दौर से ही उन्हें तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
लकड़ी के भाले की शुरुआत
हिमांशु के पास शुरुआत में किसी अच्छे कोच के पास जान के लिए पैसे नहीं थो तो उन्होंने खुद से कुछ करने की सोची। उन्होंने लकड़ी का एक भाला बनवाया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। हिमांशु अपने गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित एक बगीचे में अपना प्रैक्टिस ग्राउंड बनाया। यहीं वे रोज जाते और भाला फेंकने का अभ्यास करते।
रेसर बनना चाहते थे हिमांशु
हिमांशु पहले तो धावक बनना चाहते थे। 800 मीटर तक की दौड़ में उनका प्रदर्शन बेहतर रहता था। लेकिन बाद में उन्होंने जैविलीन थ्रो में अपना करियर बनाने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने लकड़ी का जैविलीन बनाया। हिमांशु पहले से ही दौड़ में अच्छे थे। जुवैलीन की प्रैक्टिस के साथ ही वे हर रोज करीब 5 से 7 किलोमीटर की दौड़ लगाने लगे।
कुहनी में खिंचाव ने परिवार को किया निराश
अपनी आय से हिमांशु के पिता मुश्किल से परिवार का भरण पोषण कर पाते हैं। हिमांशु के प्रैक्टिस के साथ बेहतर डाइड की भी आवश्यता होती थी लेकिन वो उन्हों उपलब्ध नहीं करा पाते थे। जैविलीन थ्रो करते वक्त जब उनकी मांसपेशियों में खिंचाव आ गया तो परिवार के लोग चिंतित हो गए। क्योंकि उनके पास बेहतर इलाज के पैसे नहीं थे। लेकिन इस दौरान उनकी मां और पिता उनके लिए ढाल बने रहे। उन्होंने किसी भी तरह से बेटे को निराश नहीं होने दिया। इस बीच हिमांशु ने भी हार नहीं माना और वे प्रैक्टिस करते रहे। करीब 6 महीने के वक्त में एक बार फिर से हिमांशु अपनी पूरी ताकत से जैविलीन फेंकने लगे।
मां ने कहा- दर्द से हिमांशु ग्राउंड पर लेट जाता था
खिलाड़ी हिमांशु मिश्रा कहते हैं एक बार थ्रो करने के बाद उनकी मांसपेशियों में इतना दर्द होता था कि वे ग्राउण्ड में ही लेट जाते थे। उनकी मां बेटे के उस दर्द को याद कर भावुक हो जाती हैं। करीब आधे घंटे तक दर्द के कारण वे उठ नहीं पाते थे। इसका कारण उन्होंने थ्रो की सही टेक्निक की जानकार न होना बताया। हालांकि लगातार प्रैक्टिस के बीच उनके मांसपेशियों का खिंचाव दूर होता गया इस बीच वे जैविलीन थ्रो का सही तरीका भी सीख गए। अब हिमांशु राजस्थान में कोच खडग सिंह से जैविलीन की टेक्निक सीख रहे हैं।