राहुल के नए अवतार से निपटना भाजपा की सबसे बड़ी मुश्किल
नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की छवि सोशल मीडिया पर एक पार्ट टाइम नेता के तौर पर है, लेकिन पिछले कुछ समय में जिस तरह से राहुल गांधी ने खुद को फुल टाइम नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए कमरतोड़ मेहनत की है वह उनके स्वभाव के विपरीत है। राहुल गांधी ने खुद को बेहतर और गंभीर नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए पिछले चुनाव में कई ताबड़तोड़ रैलियां की, जिसका पार्टी को काफी हद तक फायदा भी मिला है।
बदले हुए राहुल गांधी
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजें इस बात की तस्दीक करते हैं कि राहुल गांधी की मेहनत यहां रंग लाई। राहुल गांधी ने यहां महज पांच दिन के भीतर ताबड़तोड़ रैलियां की। कर्नाटक में चुनाव के नतीजे घोषित होने के महज पांच दिन बाद राहुल गांधी 17 मई को छत्तीसगढ़ पहुंच गए थे। यहां पहुंचने के बाद राहुल गांधी ने 36 घंटे भीतर 800 किलोमीटर की यात्रा करके कई सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया और पार्टी के तमाम नेताओं से मुलाकात की। राहुल गांधी का यह अवतार हर किसी के लिए नया था और किसी को भी इस बात का यकीन नहीं था कि राहुल गांधी इस कदर पार्टी के लिए सक्रिय हो जाएंगे।
निर्णायक मूड में राहुल
पूर्व के चुनावों पर नजर डालें तो लोग यह उम्मीद लगा रहे थे कि राहुल गाधी कर्नाटक में ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार के बाद कुछ दिन के लिए ब्रेक लेंगे लेकिन उन्होंने अपने स्वभाव से इतर छत्तीसगढ़ में अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया। ना सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों में भी राहुल गांधी अपना अभियान शुरू कर दिया। वह तीन बार छत्तीसगढ़, छह बार मध्य प्रदेश और तीन बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं। कर्नाटक और गुजरात में बेहतर प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी इन राज्यों में पार्टी को 2019 के चुनाव से पहले निर्णायक बढ़त दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।
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2019 पर नजर
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीन ऐसे अहम हिंदी भाषी राज्य हैं जहां पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करने की जरूरत है। इन तीनों राज्यों के अलावा तेलंगाना और मिजोरम की कुल लोकसभा सीटों की संख्या पर नजर डालें तो यह 83 हैं, जिसमे से 2014 में कांग्रेस को सिर्फ पांच सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की जरूरत है और राहुल गांधी इस बात को बेहतर समझते हैं।
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