विकास दुबे के बिकरू गांव का हाल और मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए भटकता परिवारः ग्राउंड रिपोर्ट
"पुलिस वालों को लगा कि इस गाँव के सभी लोग, ख़ासकर ब्राह्मण लोग विकास दुबे के गैंग के लोग थे. सभी लोग डर के मारे महीनों भागे रहे, कुछ को पकड़कर मार दिया गया.''
कानपुर से क़रीब 40 किमी दूर बिकरू गाँव अचानक चर्चा में आने के बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश के सामान्य गाँवों की तरह दिख रहा है.
हाँ, सड़कें, नालियां और सड़कों के किनारे लाइटें इसे दूसरे गाँवों से कुछ अलग ज़रूर करती हैं.
शिवली जाने वाली मुख्य सड़क से बिकरू गाँव की दूरी क़रीब तीन किलोमीटर है.
मुख्य सड़क पर एक साल पहले बिकरू गाँव की पहचान बताने के लिए लगा सरकारी बोर्ड अब नदारद है, लेकिन बिकरू गाँव का रास्ता वहाँ हर कोई जानता है.
गाँव की तरफ़ मुड़कर कुछ दूर चलने के बाद हमने एक व्यक्ति से विकास दुबे के घर का रास्ता पूछा, तो उस व्यक्ति के कुछ बोलने से पहले ही वहाँ खेल रहा क़रीब सात-आठ साल का बच्चा बोल पड़ा, "सामने जौन बड़ी वाली लाइट देखात है, वहीं से बाएं मुड़ जाना."
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बच्चे ने रास्ता बिल्कुल सही बताया था. हम पहले भी यहाँ आ चुके थे. विकास दुबे का घर फिर किसी से नहीं पूछना पड़ा. आगे बढ़ते ही विकास दुबे का खँडहर बन चुका घर सामने था.
पिछले साल दो जुलाई को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद विकास दुबे का ढहाया हुआ क़िलेनुमा घर और उसके भीतर तोड़ी हुई लग्ज़री गाड़ियां और दो ट्रैक्टर अब भी उसी हालत में हैं लेकिन आस-पास के घरों में उस दहशत के निशान अब नहीं हैं.
विकास दुबे के इस विशाल घर को ज़िला प्रशासन और पुलिस ने घटना के अगले ही दिन तब ढहा दिया था जब घटना को अंजाम देने के बाद विकास दुबे और उनके साथियों को पुलिस वहाँ नहीं तलाश पाई थी.
क़रीब एक हफ़्ते के बाद नौ जुलाई 2020 को विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन से गिरफ़्तार किया गया था और अगले ही दिन कथित पुलिस एनकाउंटर में उनकी मौत हो गई.
इस दौरान और उसके बाद भी पुलिस ने कई दिनों तक आसपास के घरों में छापेमारी की और विकास दुबे के कथित एनकाउंटर से पहले उनके छह सहयोगियों को भी कथित एनकाउंटर में मार दिया था.
पुलिस ने ताबड़तोड़ तलाशी अभियान चलाया और सैकड़ों लोगों को हिरासत में लिया. पूछताछ के बाद बहुत से लोग छोड़ भी दिए गए लेकिन 45 लोग अब भी जेल की सलाखों के पीछे हैं.
बिकरू गाँव में आज भी कोई व्यक्ति उस घटना के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताता है.
https://www.youtube.com/watch?v=n7ouoxMDrKk
जिन लोगों के परिजनों को विकास दुबे के सहयोग के आरोप में पकड़ा गया या कथित एनकाउंटर किया गया, उनके घरों पर सिर्फ़ महिलाएं हैं. वो किसी से बात नहीं करना चाहतीं, ख़ासकर मीडिया से.
विकास दुबे के घर के ठीक सामने दाहिनी ओर सत्तर साल की बुज़ुर्ग महिला सुषमा पांडेय रहती हैं तो बाईं ओर प्रभात मिश्र की माँ, उनकी दादी और दो बहनें.
सुषमा पांडेय के पति प्रेम प्रकाश पांडेय कथित एनकाउंटर में मारे गए थे और उनका बेटा जेल में है. बेटे की पत्नी दो छोटे बच्चों के साथ अपने मायके चली गई है.
क़रीब आठ-नौ महीने से सुषमा पांडेय घर में अकेली में हैं. बरामदे से लगे एक छोटे से कमरे में चारपाई पर बैठे-बैठे उनका ज़्यादातर समय रोने में चला जाता है. बड़ी मुश्किल से बात करने को तैयार हुईं.
कहने लगीं, "पड़ोस के लोग कुछ दे जाते हैं तो खा लेती हूँ. बीपी और शुगर की मरीज़ हूँ. पति रहे नहीं, बेटा जेल में है और बहू अपने बच्चों के साथ मुझे छोड़कर चली गई. न जाने किस अपराध की सज़ा मिल रही है."
https://www.youtube.com/watch?v=y-8vDGdppI0
कुछ यही हाल अमर दुबे की दादी का है. अमर दुबे की घटना के दो दिन पहले ही शादी हुई थी. अमर दुबे और उनके ताऊ भी एनकाउंटर में मारे गए थे और अमर दुबे की पत्नी ख़ुशी दुबे जेल में हैं.
अमर दुबे की दादी ज्ञानवती कहती हैं, "ये एक साल रो-रो के बिताया है. क्या कहें. हमारा नाती उस दिन घर में ही नहीं था. बहू को लेकर कानपुर गया था. दो दिन हुए थे उसकी शादी को. यहाँ से जाने के बाद वापस नहीं आया. उसकी बहू भी जेल में है. अकेले बैठे अपनी मौत का ही इंतज़ार कर रहे हैं."
विकास दुबे के पड़ोस में रहने वाले आत्माराम दुबे भी उन लोगों में से हैं जिनके परिवार पर विकास दुबे का क़रीबी होना क़हर बनकर टूटा. उनके बेटे प्रवीण दुबे भी पुलिस के कथित एनकाउंटर में मारे गए थे.
घर के सामने बैठकर कुछ लकड़ियां तोड़ रहे थे. कहने लगे, "पुलिस वालों को लगा कि इस गाँव के सभी लोग, ख़ासकर ब्राह्मण लोग विकास दुबे के गैंग के लोग थे. सभी लोग डर के मारे महीनों भागे रहे, कुछ को पकड़कर मार दिया गया. न कोई जाँच, न कोई सुनवाई, न कोर्ट-कचहरी. हम लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, वो हम ही जानते हैं."
"माफ़िया बाहर के लिए थे, यहां के लिए नहीं"
बिकरू गाँव के लोगों के लिए विकास दुबे के ज़िंदा रहने और फिर मारे जाने के अलग-अलग मायने हैं.
उनके पड़ोसियों और गाँव के दूसरे लोगों के लिए विकास दुबे भले ही माफ़िया रहे हों लेकिन उससे गाँव वालों को कोई नुक़सान नहीं था. बिकरू गाँव की अच्छी सड़कों और तमाम सुविधाओं को ये लोग नज़ीर के तौर पर दिखाते हैं.
विकास दुबे के एक और पड़ोसी महेश कुशवाहा कहते हैं, "गाँव के लोगों के लिए विकास दुबे ही सब कुछ थे. किसी को कोई ज़रूरत हो या फिर आपसी लड़ाई-झगड़ा, सारे फ़ैसले वहीं होते थे. लोगों को कुछ ज़रूरत होती थी तो वहीं जाते थे. वो माफ़िया बाहर के लिए थे, यहां के लिए नहीं."
हालांकि कुछ लोग इसकी वजह ये बताते हैं कि नुक़सान तभी तक नहीं था, जब तक कि विकास दुबे की हाँ में हाँ करते रहिए. मौजूदा ग्राम प्रधान मधु का घर कुछ दूरी पर डिब्बा निवादा मजरे में है.
वो कहती हैं, "विकास दुबे और उनके घर के सदस्यों के पास पिछले 25 साल से गाँव की प्रधानी थी. हर चीज़ में उन्हीं की मनमानी चलती थी. लोग डर के मारे सब कुछ स्वीकार करते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है."
"खेत की पैमाइश नए सिरे से होनी चाहिए"
गाँव के ही निवासी सद्दीक़ बताते हैं कि विकास दुबे के समय में जिन लोगों को पट्टे पर ज़मीन दी गई थी, उन्हें उसके बारे में मालूम ही नहीं है और दूसरे लोग उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. सिद्दीक़ कहते हैं, "खेत की पैमाइश यहाँ नए सिरे से होनी चाहिए क्योंकि पहले विकास दुबे जहाँ निशान लगा देते थे वही मान लिया जाता था."
इस तरह की शिकायतें गाँव के और लोगों की भी थी. लेकिन बिल्हौर की एसडीएम आकांक्षा गौतम कहती हैं कि उन्हें इस तरह की कोई शिकायत नहीं मिली है. उनके मुताबिक़ यदि लिखित शिकायत मिलती है तो ज़रूर इसकी जाँच की जाएगी.
विकास दुबे के परिवार का कोई व्यक्ति बिकरू गाँव में अब नहीं रहता. उनके बुज़ुर्ग माँ-बाप पास में ही शिवली क़स्बे में रहते हैं जबकि उनके एक भाई दीप प्रकाश दुबे जेल में हैं और पत्नी लखनऊ या कानपुर में रहती हैं.
पत्नी ऋचा दुबे कहती हैं, "हमारे पास जो कुछ भी था वह सब कुछ ज़ब्त कर लिया गया है. एक साल से मैं विकास दुबे के मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए भटक रही हूं लेकिन मुझे नहीं मिल रहा है. दूसरे दस्तावेज़ भी नहीं मिल रहे हैं."
इस सवाल पर कानपुर के आला अधिकारी कोई जवाब नहीं देते हैं. सिर्फ़ यही कहते हैं कि 'विधिक तरीक़े से कार्रवाई हो रही है. घटना की जाँच चल रही है.'
बिकरू गाँव के रामनरेश कुशवाह कहते हैं कि इस घटना के बाद पुलिस वाले हमेशा ही गाँव में आते थे और तलाशी के नाम पर लोगों को परेशान करते थे. रामनरेश कुशवाहा बताते हैं कि पिछले दो महीने से पुलिस वालों का आना-जाना कुछ कम हुआ है.
हालाँकि कानपुर के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल किसी को अनावश्यक परेशान करने की बात को सिरे से नकारते हैं. वो कहते हैं, "जांच के लिए जब ज़रूरी हुआ तब पुलिस वाले गए. अनावश्यक रूप से किसी को परेशान नहीं किया गया है. गाँव के लोग पुलिस की कार्यप्रणाली से पूरी तरह संतुष्ट हैं."
बहरहाल, बिकरू गाँव के कुछ लोग विकास दुबे और उनके कथित आतंक के ख़ात्मे के बाद मानो खुली हवा में साँस ले रहे हों तो बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस बात की चिंता है कि वो किसी भी तरह की मदद मांगने किसके पास जाएं.
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