GROUND REPORT: 'हमें भारत में ही मार दो पर म्यांमार वापस मत भेजो'
वहीं दूसरी ओर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले महीने सितंबर में भारत में रह रहे रोहिंग्याओं पर बयान दिया था कि ये रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी नहीं हैं. इन्होंने नियमों का पालन कर शरण नहीं ली. मानवाधिकार की बात करने से पहले देश की सुरक्षा अहम है. ऐसे में रोहिंग्या शरणार्थियों का डर बढ़ता जा रहा है.
दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार लौटने से इनकार नहीं करते. लेकिन वो कहते हैं कि उन्हें नागरिक के तौर पर अपनी पहचान चाहिए.
''एकबार हम वहाँ पहुंच जाएंगे तो फिर हमारा बलात्कार किया जाएगा. हमें भी जला दिया जाएगा. हमारे बच्चों को काट दिया जाएगा. मेरी ससुराल में 10-15 लोग थे, सभी को काट दिया गया. कोई नहीं बचा. हमें फिर वहीं भेजा जा रहा है. हम मुसलमान हैं तो क्या इंसान नहीं हैं?''
अपनी बात ख़त्म करते हुए मनीरा बेगम की बदरंग सी आँखें डबडबा जाती हैं. हिज़ाब के कोने से आँखें पोंछते हुए वो ख़ुद को संभालती हैं.
दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में रहने वाली मनीरा 15 दिन पहले पति को खो चुकी हैं.
अभी उनका मातम पूरा भी नहीं हुआ था कि अब उन्हें म्यांमार वापस भेजे जाने का डर खाए जा रहा है.
एक फ़ॉर्म से फैला डर
सुप्रीम कोर्ट ने चार अक्तूबर को रोहिंग्या मामले में दख़ल देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने सात रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेज दिया.
इन सात लोगों को साल 2012 में गैरकानूनी तरीक़े से सीमापार करके भारत आने के आरोप में फ़ॉरनर्स एक्ट क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
पिछले छह साल से इन लोगों को असम की सिलचर सेंट्रल जेल में हिरासत में रखा गया था. इस घटना के बाद भारत में रह रहे लगभग 40,000 रोहिंग्या शरणार्थियों में वापस म्यांमार भेजे जाने का डर फ़ैल गया है.
दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को इस बात का ख़ौफ़ है कि उन्हें कभी भी हिंदुस्तान से निकाला जा सकता है.
उनका ये डर इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि इस बीच दिल्ली पुलिस शरणार्थियों को एक फ़ॉर्म दे रही है. रोहिंग्याओं का आरोप है कि उनपर इसे भरने का दबाव बनाया जा रहा है.
उन्हें लगता है कि फ़ॉर्म के आधार पर जानकारी इकट्ठा करके सरकार उन्हें दोबारा म्यांमार भेजना चाहती है.
ये फ़ॉर्म बर्मी और अंग्रेज़ी भाषा में है. बर्मी भाषा के कारण इन लोगों का ख़ौफ़ और भी अधिक बढ़ा है. उनका कहना है कि ये फ़ॉर्म म्यांमार एंबेसी की ओर से भरवाया जा रहा है.
जामिया नगर थाने के एसएचओ संजीव कुमार ने ऐसे किसी भी फ़ॉर्म के बारे में बात करने से इनकार कर दिया.
पर एक सहायक सब-इंस्पेक्टर ने फ़ोन पर बताया कि "हमें ऊपर से ऑर्डर मिले हैं."
दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर चिन्मय बिसवाल ने बताया, ''वो भारतीय नहीं हैं. बाहर से आए लोग हैं. ऐसे में उनकी पूरी जानकारी तो हम जुटाएंगे.''
दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित कैंप में कुल 235 रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं और श्रम विहार में कुल 359 लोग रहते हैं.
इन लोगों को दिल्ली पुलिस की ओर से जो फ़ॉर्म दिया गया है उसमें व्यक्तिगत विवरण और उनकी म्यांमार से जुड़ी जानकारी मांगी जा रही है.
मसलन वे म्यांमार के किस गाँव से हैं, उनके घर में कौन-कौन लोग हैं, उनके अभिभावक का पेशा क्या है और उनकी नागरिकता इत्यादि.
'फ़ॉर्म नहीं भरोगी तो भी जाना पड़ेगा'
चार बच्चों की माँ मनीरा अपने चार साल के बेटे की ओर देखते हुए कहती हैं, ''उस देश में दोबारा जाकर ना हम बच्चा पढ़ा सकते हैं, ना अपनी जिंदगी बसा सकते हैं, ना रह सकते हैं, ना कमा-खा सकते हैं. 15 दिन पहले मेरा पति मर गया. वहाँ हालात बहुत बुरे हैं, मेरे माँ-बाप को काट दिया गया है. किसी तरह जान बचा कर यहाँ आई. हमें फिर उसी जगह भेजा जा रहा है. हमें डर है. हम नहीं जाएंगे.''
पुलिस के ज़बरन फ़ॉर्म भरवाने के मामले पर वो कहती हैं, ''पिछले कुछ दिन से हालात बिगड़ रहे हैं. पुलिस ने एक फ़ॉर्म दिया है. वो इसे ज़बरदस्ती भरने को कह रही है. हमारी बस्ती का 'ज़िम्मेदार' (हर कैंप का वो शख़्स जो इनके क़ानूनी काम को देखता है) कहता है कि ये वापस भेजने का फ़ॉर्म है. मुझे ये फ़ॉर्म नहीं भरना. हमें पुलिस कहती है 'नहीं भरोगी तो भी जाना पड़ेगा'.''
''कल भी एक पुलिस वाला आया था. साल 2012 में ही मेरा घर तोड़ दिया गया था तो अब वहाँ जाकर क्या करूंगी. वहाँ पर अब कुछ नहीं है हमारा. मैंने सात दिन पहले फ़ॉर्म भर दिया था क्योंकि पुलिस साफ़ नहीं बताती कि इसमें लिखा क्या है. मुझे कहा गया हमें फ़ॉर्म चाहिए तुम भर दो. अब मुझे पता चला है तो वो फ़ॉर्म पुलिस को वापस नहीं किया है.''
उसी कैंप में रह रहीं मरीना की माँ हलीमा ख़ातून हिंदी नहीं बोल सकतीं लेकिन उनके चेहरे की झुर्रियाँ अपने दुखों की दास्तां बयाँ करती हैं.
वो कहती हैं, ''मैं नहीं जाऊंगी. इससे पहले भी बांग्लादेश ने जिन लोगों को म्यांमार सरकार को सौंपा, उन्हें मार दिया गया. हमें वापस नहीं जाना. भारत सरकार हमें यहीं मार दे लेकिन हमें उस देश वापस नहीं लौटना.''
'...उस दिन ख़ुद चले जाएंगे'
दिल्ली का श्रम विहार शरणार्थी कैंप वो जगह है जहाँ मंगलवार को पुलिस पहुंची और लोगों से गुरुवार शाम तक फ़ॉर्म भरने को कहा.
यहाँ रहने वाले मोहम्मद ताहिर के भीतर म्यांमार वापसी का ऐसा ख़ौफ़ है कि अकेले बैठे ख़ुद से ही शिकायत करने लगते हैं.
रात के खाने की तैयारी में जुटे मोहम्मद ताहिर बाहर बैठे मछली साफ कर रहे थे. तभी वो बड़बड़ाने लगे, ''जब हम वहाँ के नागरिक ही नहीं तो क्यों जाएं? अब ज़ुल्म बर्दाश्त कैसे करेंगे?''
उन्होंने अपनी टूटी-फ़ूटी हिंदी में बताया, ''पुलिस आई है. फ़ॉर्म भरने को कहा है. हम नहीं जाना चाहते. अभी भी हमारे गाँव बुथिदौंग में कत्लेआम चल रहा है. वो लोग मेरे घर की महिलाओं को रात को उठा ले जाते हैं और ज़ुल्म (रेप) करते हैं. हम कैसे ये बर्दाश्त कर सकते थे. हमें जान बचाकर आना पड़ा. हमारा चाचा रहता है वहाँ, कहता है कि घर से निकलने नहीं देता, बाज़ार नहीं जाने देता है.''
''पुलिस वाले यहाँ रात-दिन आ रहे हैं. वो कहते हैं फ़ॉर्म भर दो. हम फ़ॉर्म भर देंगे तो वो हमें वापस भेज देंगे. बोल देगें कि ये अपनी मर्ज़ी से जाना चाहता है. जिस दिन हमारी जान म्यांमार में सुरक्षित हो जाएगी उस दिन हम खुद चले जाएंगे. ज़बर्दस्ती करने की जरूरत ही नहीं होगी. हमने ना आधार कार्ड बनवाया है ना किसी तरह से भारत के नागरिक हैं. हम तो संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी कार्ड पर रहे हैं.''
मोहम्मद उस्मान इस कैंप के सभी कानूनी काम देखते हैं. शरणार्थियों की भाषा में कहें तो वो इस कैंप के 'ज़िम्मेदार' हैं.
वो बताते हैं, ''हमें पिछले महीने भी एक फ़ॉर्म दिया गया था. इसमें एक परिवार के सभी सदस्यों को वो फ़ॉर्म भरना था. इसके बाद हमारे शरणार्थी कार्ड की कॉपी करवाई गई और इसपर हमारी म्यांमार से जुड़ी सभी जानकारी लिखवाई गई. मसलन हमारा गाँव, हमारे घर वालों के बारे, हम भारत कैसे आए?''
''सात अक्तूबर को पुलिसवाले फिर से फ़ॉर्म लेकर आये थे. चार तारीख़ को जिन सात लोगों को वापस म्यांमार भेजा गया, उनमें से मोहम्मद यूनुस, मोहम्मद सलीम ने हमें बताया था कि ये फ़ॉर्म भरने पर हमें भी म्यांमार भेज दिया जाएगा. हम ये जानकारी नहीं देना चाहते. फ़ॉर्म पर बर्मीज़ भाषा में लिखा है जो हमारे शक़ को और पुख़्ता कर रहा है. लेकिन पुलिस हम पर ये फ़ॉर्म भरने का दबाव डाल रही है.''
किसी गृह-युद्ध या संकट की सबसे बड़ी शिकार महिलाएँ होती हैं. ऐसी ही एक पीड़िता हैं मर्दिना जो शरणार्थी कैंप के एक छोटे अंधेरे कमरे में रहती हैं.
इस घर में बस एक चटाई बिछी है और बाहर की ओर मिट्टी का चूल्हा है.
मिट्टी की दीवारों वाले के इस क़मरे पर टाट की छत पड़ी है जो हवा से भी हिल जाती है. लेकिन मर्दिना के लिए ये अब यही उनका घर है.
अपने कुछ महीने के बेटे को गोद में थामे वो कहती हैं, ''मेरे सामने मेरे गाँव की लड़कियों का बलात्कार किया गया. मेरे माँ-बाप को काट दिया. मैं अकेली ही जिंदा वहाँ से निकल सकी और अपने पड़ोसियों के साथ यहाँ पहुंची. हमारे देश में ज़ुल्म किए जा रहे हैं, जिस दलदल से निकलकर आएं हैं हमें वहीं भेजा जा रहा है. अब मेरी यहाँ शादी हुई और ये बच्चा है मैं इसे उसे बुरी दुनिया में नहीं ले जाना चाहती.''
दिल्ली में रहते हुए उन्हें यक़ीन है कि वो यहाँ चैन से सो सकती हैं. कोई उनका बच्चा उनसे नहीं छीनेगा.
पहचान को तरसते लोग
इन शरणार्थियों का कहना है कि म्यांमार सरकार की ओर से वापस भेजे गए सात शरणार्थियों को अबतक नागरिक नहीं माना गया है.
इन्हें एक पहचान पत्र एंबेसी की ओर से जारी किया गया है, जिसमें इन्हें म्यांमार का रहने वाला माना गया है लेकिन नागरिक का दर्जा नहीं दिया गया है.
वहीं दूसरी ओर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले महीने सितंबर में भारत में रह रहे रोहिंग्याओं पर बयान दिया था कि ये रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी नहीं हैं. इन्होंने नियमों का पालन कर शरण नहीं ली. मानवाधिकार की बात करने से पहले देश की सुरक्षा अहम है. ऐसे में रोहिंग्या शरणार्थियों का डर बढ़ता जा रहा है.
दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार लौटने से इनकार नहीं करते. लेकिन वो कहते हैं कि उन्हें नागरिक के तौर पर अपनी पहचान चाहिए. ये पहचान उन्हें यूएन के रिफ्यूज़ी पन्ने पर नहीं बल्कि एक देश के नागरिक के तौर पर चाहिए.
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