कृषि कानूनों की वापसी के बावजूद किसानों का आंदोलन के लिए अड़े रहना क्यों 'नाजायज' नहीं
नई दिल्ली, 25 नवंबर: केंद्र सरकार ने खेती से जुड़े अपने विवादित कानूनों को वापस ले लिया है। बीते हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद कैबिनेट ने भी इस पर मुहर लगा दी है। आगामी सत्र में संसद से भी इनकी वापसी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। जाहिर है कि इन कानूनों की वापसी में कोई शक करने का अब कोई मतलब नहीं है। ऐसे में कई लोग खासतौर से मीडिया और सोशल मीडिया में लगातार ये कहा जा रहा है कि किसानों का अब भी आंदोलन के लिए अड़ना पूरी तरह नाजायज है। ये सही है कि किसानों के इस आंदोलन में सबसे बड़ी मांग तीन कानूनों की वापसी को लेकर थी, जो पूरी हो गई। बावजूद इसके आंदोलन जारी रखने को गलत कहना ठीक नहीं है और इसकी कुछ वजह हैं।
दूसरी मांगे भी आंदोलन के पहले दिन से
ये किसान आंदोलन जब बीते साल नवंबर में दिल्ली की सीमाओं पर आया तो सरकार की किसान संगठनों से जो बात हो रही थी, उसमें बिजली, पशु पालन, पराली जलाने, पुराने ट्रैक्टर पर रोक, एमएसपी पर कानून जैसे मुद्दे भी शामिल थे। कुछ पर तो दोनों पक्षों में सहमिति भी बनी थी। क्योंकि किसानों को सबसे बड़ा डर कृषि कानूनों को लेकर था और सरकार तब इन्हें वापस ना लेने पर अड़ गई तो इनका शोर ज्यादा हुआ। अब किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखते हुए आंदोलन खत्म करने के लिए 6 मांगे की हैं। जिन्हें देखें तो ये बहुत जायज लगती हैं, ना कि इनमें किसानों की हठ दिखती है।
आखिर एक साल बाद खाली हाथ कैसे उठ जाएं किसान?
किसानों की बड़ी मांग अब एमएसपी को लेकर है। जो नई नहीं है और लंबे समय से जिसके लिए अलग-अलग तरह से लड़ते रहे हैं। इस दफा किसानों को लगता है कि जब उन्होंने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर ही लिया है कि जिसमें कश्मीर से केरल तक के किसान जुड़े हैं और समर्थन कर रहे हैं। एक साल से दिल्ली के बॉर्डरों पर वो धरने चला रहे हैं तो शायद ये एक अच्छा मौका है कि सरकार पर दबाव बनाकर एमएसपी पर कानून भी बनवाया जाया। इससे सबसे अच्छी बात ये होगी कि एमएसपी पर कानून बनता है तो किसान भी ये महसूस करेगा कि इतने बड़े धरने के बाद को खाली हाथ नहीं कुछ हासिल करके लौट रहा है। अगर वो बिना एमएसपी कानून के जाता है तो निश्चित ही ये उसके लिए खाली हाथ लौटने जैसा होगा। ये किसान ही नहीं कोई भी संवेदनशील इंसा नहीं चाहेगा कि इतने लंबे आंदोलन के बाद किसान खाली लौटें।
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आंदोलन के दौरान के मागों को मनवाए बिना तो किसान जाएगा ही नहीं
किसान मोर्चा ने पुरानी मांगों के अलावा आंदोलन के दौरान हुए घटनाओं को लेकर भी कुछ मांगे की हैं। इसमें आंदोलन में शामिल किसानों पर हुए केस वापस लेने। आंदोलन के दौरान जिन 700 से ज्यादा किसानों की जान गई, उनको मुआवजे और पुनर्वास। इसके अलावा लखीमपुर खीरी मामले में आरोपी गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी पर कार्रवाई की है। इन बातों को सरकार से मनवाए बिना तो किसान मोर्चा का आंदोलन वापस लेना नामुमकिन सा लगता है। इसकी वजह है कि ये भावनात्मक भी है। अगर किसान मोर्चा आंदोलन में जान देने वाले किसानों के परिवारों के लिए कुछ किए बिना जाता है तो उन परिवारों को जवाब देना उसके लिए मुश्किल होगा। इसी तरह अजय टेनी का भी मामला है, अगर किसान उनको बर्खास्त भी नहीं करा पाते हैं तो वो इसे अपनी हार की तरह देखेंगे। ऐसे में अगर थोड़ा संजीदगी से देखें तो किसानों की मांग नाजायज नहीं दिखती हैं।