क्या है एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी, जिससे देश में शुरू हुआ कोरोना का इलाज ? इसके बारे में सबकुछ जानिए
नई दिल्ली, 27 मई: भारत में भी एंटीबॉडी कॉकटेल से कोरोना मरीजों का इलाज शुरू हो गया है। 84 साल के बुजुर्ग मरीज पर इसका सफल उपयोग हो चुका है और उन्हें बहुत जल्द अस्पताल से डिस्चार्ज भी कर दिया गया है। भारत में इस दवा को इसी महीने इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिली है और दवा कंपनी सिप्ला यहां इसकी मार्केटिंग कर रही है। आने में वाले वक्त में कुछ और कंपनियां एंटबॉडी कॉकटेल लेकर बाजार में उतरने वाली हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी क्या है, इससे कैसे उपचार किया जाता है, इसकी कीमत कितनी है और ट्रायल क दौरान इसके नतीजे कैसे रहे हैं।
एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी क्या है ?
कोविड-19 की यह थेरेपी दो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का कॉकटेल या मिश्रण है। एंटीबॉडी प्रोटीन है, जो शरीर में किसी वायरस के खिलाफ सुरक्षा के लिए खुद पैदा होती है। लेकिन, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है, जो किसी खास बीमारी से लड़ने के लिए बनाई जाती है। इस एंटीबॉडी कॉकटेल में दो दवा हैं- कैसिरिविमैब और इमडेविमैब, जिसे स्विटजरलैंड की मल्टीनेशनल कंपनी रोश ने बनाया है। एंटीबॉडी कॉकटेल कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को पंगु बना देता है। यह एसएआरएस-सीओवी-2 वायरस के अटैचमेंट को ब्लॉक कर देता है और फिर मानव कोशिकाओं में उसकी एंट्री रोक देता है। दो एंटीबॉडी के इस्तेमाल से वायरस के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का बचाव भी होता है।
एंटीबॉडी कॉकटेल किन कोविड मरीजों के लिए कारगर है ?
एंडीबॉडी कॉकटेल थेरेपी कोविड के हल्के और मध्यम लक्षणों वाले वैसे व्यस्क मरीजों के लिए है, जिनमें बीमारी के गंभीर शक्ल अख्तियार करने की आशंका रहती है। जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट नरेश त्रेहन ने इंडिया टुडे को बताया है कि यह उपचार हाई-रिस्क कोविड मरीजों के लिए सबसे उपयोगी है और टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद कम से कम 48 से 72 घंटे के अंदर निश्चित तौर पर दी जानी चाहिए। 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे को या जिनका वजह कम से कम 40 किलो हो उन्हें भी यह दवा दी जा सकती है। उन मरीजों को यह दवा लेने की सलाह नहीं दी जाती, जिन्हें कोविड के गंभीर बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया है और जिन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता है।
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एंटीबॉडी कॉकटेल कैसे दी जाती है ?
एंटीबॉडी कॉकटेल मरीजों को नस के माध्यम से या त्वचा के नीचे इंजेक्शन के जरिए दी जाती है। फुल डोज एंटीबॉडी कॉकटेल देने के लिए 20 मिनट से आधे घंटे का वक्त लगता है। इसके बाद प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं पर नजर रखने के लिए मरीज को 1 घंटे तक निगरानी में रखा जाता है। रीजेनेरॉन और रोश की एंटीबॉडी कॉकटेल को भारत में पिछले 5 मई को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है और देश में इसका वितरण दवा कंपनी सिप्ला कर रही है। इस दवा के पहले बैच में 1 लाख पैक इसी हफ्ते यहां पहुंची है, जिससे 2 लाख मरीजों का इलाज हो सकता है। हरियाणा में 84 साल के बुजुर्ग मोहब्बत सिंह को इसकी पहली डोज लगाकर अस्पताल से छुट्टी भी मिल चुकी है।
एंटीबॉडी कॉकटेल की कीमत
एंटीबॉडी कॉकटेल दवा के एक पैक में दो मरीजों के लायक दवा होती है। भारत में एक पैक की एमआरपी 1,19,500 रुपये रखी गई है। यानी एक मरीज की डोज की कीमत 59,750 रुपये है। 1,200 एमजी की एक डोज में 600 एमजी कैसिरिविमैब और 600 एमजी इमडेविमैब होती है। इस दवा को सुरक्षित रखने के लिए 2 से 8 डिग्री सेल्सियस का तापमान चाहिए और एक मरीज के लिए पैक खोलने के 48 घंटे के अंदर दूसरी डोज दूसरे मरीज पर भी इस्तेमाल हो जाना चाहिए। इस समय दिल्ली से सटे हरियाणा के गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में इस दवा से उपचार शुरू हो चुका है और न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक गुरुवार से दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट में भी यह इलाज शुरू हो रहा है। आने वाले वक्त में कुछ और कंपनियां एंटीबॉडी कॉकेटल लॉन्च करने की तैयारी में हैं।
एंटीबॉडी कॉकटेल की दवा कितनी असरदार ?
रोश कंपनी ने इस साल मार्च में इसके फेज-3 ग्लोबल ट्रायल के नतीजों की घोषणा की थी, जो होम आइसोलेशन में रह रहे कोविड-19 के हाई-रिस्क मरीजों पर की गई थी। नतीजों से पता चला कि एंटीबॉडी कॉकटेल देने के बाद अस्पताल में भर्ती कराने का जोखिम या मौत की आशंका प्रचलित उपचार की तुलना में 70 फीसदी तक कम हो गई और लक्षणों की अवधि 4 दिन घट गई। सबसे पहले यह थेरेपी तब सुर्खियों में आई थी, जब पिछले साल अक्टूबर में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर इस दवा का प्रयोग किया गया था।