कानपुर ट्रेन हादसा: सीट बदलने से बच गई इस शख्स की जान, करीब से देखा मौत का मंजर
उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने एस-2 बोगी में लाशों को लटकते हुए देखा था। उन्होंने कहा, 'ये मैं भी हो सकता था।' शायद ट्रेन दुर्घटना की सूचना रेलवे के अधिकारियों को देने वाले वह पहले व्यक्ति थे।
नई दिल्ली। इंदौर पटना एक्सप्रेस में एक महिला यात्री से सीट बदलने वाले शख्स की जान इस हादसे में बाल-बाल बची। रविवार रात करीब सवा 3 बजे हुए हादसे में पत्रकार संतोष उपाध्याय पहले एस-2 कोच में सवार थे, जिसमें काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। हादसे के बाद उन्होंने कहा कि अगर सीट न बदली होती तो शायद वह भी मरने वालों की लिस्ट में शामिल होते।
एक महिला से बदली थी सीट
संतोष उपाध्याय शनिवार को उज्जैन से ट्रेन में सवार हुए थे। उनके पास वेटिंग टिकट था। बाद में उन्हें एस-2 बोगी में 7 नंबर बर्थ दी गई। रात में एक महिला ने उनसे कहा कि वह एस-5 में सात नंबर की सीट पर बैठ जाएं, क्योंकि उनके साथ एक अन्य महिला भी थीं और वे दोनों साथ में यात्रा करना चाहती थीं। दोनों महिलाओं ने बताया था कि वे उज्जैन एसपी ऑफिस में काम करती हैं और भोपाल से ट्रेन में सवार हुई थीं।
पढ़ें: कानपुर ट्रेन हादसा: टूटा हाथ लिए पापा को ढूंढ़ रही है दुल्हन
टॉयलेट से लौटते वक्त सुनी चीखें
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने एस-2 बोगी में लाशों को लटकते हुए देखा था। उन्होंने कहा, 'ये मैं भी हो सकता था।' शायद ट्रेन दुर्घटना की सूचना रेलवे के अधिकारियों को देने वाले वह पहले व्यक्ति थे। ट्रेन में टॉयलेट से लौटते वक्त उन्हें अचानक शोर सुनाई दिया और ट्रेन में झटके महसूस हुए।
पढ़ें: इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसा: जरूरत से अधिक भरी हुई थी ट्रेन
जो बाहर आए उन्होंने दूसरों को निकाला
कुछ ही पलों में यात्री ट्रेन की बोगियों से बाहर गिरने लगे। उपाध्याय ने इमरजेंसी विंडों के जरिए किसी तरह खुद को बोगी से बाहर निकाला और मैदान पर आए। उनकी गर्दन और पीठ पर चोटें आई हैं। बाहर का मंजर खौफनाक था। उन्होंने कहा, 'वहां काफी अंधेरा था और लोग चीख रहे थे। मुझे पता चल चुका था कि ट्रेन हादसे का शिकार हुई है। मैंने 3:11 बजे बिहार रेलवे के सीपीआरओ विनय कुमार को फोन किया, उसके बाद मैंने करीब 3:17 बजे कानपुर में रेलवे कंट्रोल रूम को फोन किया। जब तक सुरक्षाकर्मी वहां नहीं आए, तब तक ट्रेन से सुरक्षित बाहर आए यात्रियों ने दूसरों बाहर निकालने में मदद की।'
आंखों के सामने घूमता है वो मंजर
इलाहाबाद में रहने वाले संतोष उपाध्याय सुबह होने पर घटनास्थल से चले गए। शाम को वह घर पहुंच गए। उन्होंने कहा, 'शरीर में जो चोटें आई हैं वो तो चली जाएंगी लेकिन उस भयानक मंजर का क्या होगा जो हर पल आंखों के सामने घूम रहा है।'