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केरलः बाढ़ का पानी बहा ले गया खाड़ी देशों से कमाया पैसा

इसके साथ-साथ प्रोफ़ेसर राजन यह भी कहते हैं कि केरल के लोगों को अब खाड़ी देशों में काम के लिए अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. अब उन्हें पड़ोसी देश नेपाल या फिर अपने देश के ही उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कामगारों के साथ प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में उनके लिए काम के हालात पहले से अधिक ख़राब हो जाएंगे.

केएमएस के इस साल जारी किए गए सर्वे में जनवरी से मार्च के बीच 15 हज़ार परिवारों को शामिल किया गया था.

By BBC News हिन्दी
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केरलः बाढ़ का पानी बहा ले गया खाड़ी देशों से कमाया पैसा

सजित नमबूद्री लगभग एक दशक के बाद सात महीने पहले ही सऊदी से लौटकर अपने घर वापस आए थे.

वे यहां अपने माता पिता के साथ रहने की योजना बनाकर लौटे थे लेकिन पिछले महीने केरल में आई भीषण बाढ़ ने उनकी तमाम योजनाओं पर पानी फेर दिया.

सजित कहते हैं, ''हमने अपना सब कुछ खो दिया. अब हमें ये सब वापस पाना होगा. बाढ़ की वजह से हमारा लगभग तीन से चार लाख रुपए का नुकसान हुआ है. मेरी कार और पिताजी का स्कूटर दोनों ही बाढ़ के पानी में बह गए. ये दोनों ही मैंने अपने पैसो से बिना लोन लिए ख़रीदे थे.''

सजित का पैतृक घर त्रिशूर ज़िले के वेटुकाडवु पालम गांव में है. उनके घर से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर चालाकुडी नदी बहती है.

पिछले महीने 15 अगस्त के दिन इस नदी का जलस्तर 11 फुट तक पहुंच गया था. सजित के घर की दीवारों पर आज भी उस जलस्तर की छाप देखी जा सकती है.

सबकुछ बह गया

बाढ़ के दौरान सजित के वृद्ध माता पिता एक दूसरे घर में चले गए थे जो थाड़ी ऊंचाई पर स्थित था.

वहीं इस दौरान सजित अपने घर की छत पर रहे. खाड़ी देश से लौटकर फिलहाल सजित कोच्चि के देवसम बोर्ड के पास पादरी की अस्थायी नौकरी कर रहे हैं.

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वे कहते हैं, ''बाढ़ से हुए नुकसान के बाद मैं अभी तक सिर्फ़ दो बेड और कुछ चादरें ही ख़रीद पाया हूं. हम पानी पीने या खाने से पहले उसे उबाल रहे हैं. पूरे घर में कीचड़ घुस गया है. मुझे अपने घर के फर्श पर दोबारा टाइल लगवाने पड़ेंगे.''

''अब, तो मैं दोबारा दुबई जाने के बारे में सोचने लगा हूं जहां मैं एक बिजलीकर्मचारी के तौर पर काम करता था. हालांकि यह भी आसान काम नहीं है क्योंकि मुझे नया पासपोर्ट बनवाना पड़ेगा. मेरा पुराना पासपोर्ट बाढ़ में बह गया.''

वापस लौटते लोग

40 साल के सजित केरल के उन तमाम लोगों में से एक हैं, जो नौकरी की तलाश में खाड़ी देशों की तरफ गए थे और वहां कमाए गए पैसों में से कम से कम 30 से 50 प्रतिशत हिस्सा उन्होंने केरल में कोई ज़मीन खरीदने या मकान बनाने में ख़र्च किया.

केरल प्रवासी सर्वे (केएमएस) की तरफ से पिछले हफ्ते जारी आंकड़ों के अनुसार केरल में बाहर से 85 हज़ार 92 करोड़ रुपए आए हैं. केरल में विदेशों से आने वाले धन के ये आंकड़े पहले के मुक़ाबले ज़्यादा हैं.

खाड़ी देशों से वापस केरल लौटने वाले अधिकतर लोग या तो वहां के देशों में बढ़ाए गए कर की वजह से या फिर अपने माता-पिता की बढ़ती उम्र की वजह से लौटकर आए हैं.

पिछले पांच सालों में केरल से खाड़ी देशों की तरफ जाने वाले लोगों की संख्या 24 लाख से घटकर 21 लाख हो गई है.

यहां तक कि इन पांच सालों में यानी साल 2013 से 2018 के बीच इस संख्या में 11.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है.

काम की चुनौतियां

तिरुवनंतपुरम में सेंटर फ़ॉर डेवलेपमेंट स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर इरुदया राजन कहते हैं, ''इस बाढ़ की वजह से शायद अब पलायन में वृद्धि होगी. बहुत से लोग जो यह सोच कर खाड़ी देशों से लौट आए थे कि अब केरल में रहेंगे, उनके घर बाढ़ में या तो बर्बाद हो गए या टूट गए. और सरकार के स्तर पर अभी तक ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई है जिसमें उनके घरों को वापस दिलवाने की बात हो. तो ये लोग पैसा कमाने के लिए वापस खाड़ी देशों की तरफ लौट सकते हैं.''

इसके साथ-साथ प्रोफ़ेसर राजन यह भी कहते हैं कि केरल के लोगों को अब खाड़ी देशों में काम के लिए अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. अब उन्हें पड़ोसी देश नेपाल या फिर अपने देश के ही उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कामगारों के साथ प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में उनके लिए काम के हालात पहले से अधिक ख़राब हो जाएंगे.

केएमएस के इस साल जारी किए गए सर्वे में जनवरी से मार्च के बीच 15 हज़ार परिवारों को शामिल किया गया था.

केरल और तमिलनाडु के लगभग 24 लाख लोग खाड़ी देशों या सिंगापुर और मलेशिया में काम करते हैं.

दूसरे राज्यों से मिलती चुनौती

प्रो. राजन इस बात को कुछ इस तरह समझाते हैं, ''इस गिरावट की वजह समझने के लिए हमें केरल में होने वाली जनसांख्यिकी परिवर्तन को समझना होगा. केरल से इतने अधिक कामगार लोग खाड़ी देशों की तरफ चले गए थे कि अब वे और अधिक नहीं भेज सकते थे. यही वजह है कि देश के बाकी हिस्सों के कामगार केरल में काम करने के लिए आने लगे. ऐसे में प्रदेश की जनसंख्या में परिवर्तन होने लगा.''

प्रो. राजन कहते हैं, ''आमतौर पर 20 से 34 साल की आयुवर्ग के लोग सबसे अधिक पलायन करते हैं. इन लोगों को अगर अपने प्रदेश में नौकरी नहीं मिलती तो ये बाहर जाने के लिए तत्पर रहते हैं. केरल और भारत के अन्य दक्षिणी राज्यों में साल 1980 से 2010 तक इसी आधार पर बहुत अधिक जनसंख्या परिवर्तन देखा गया.''

''और अब लोगों के बाहर जाने की राह पर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के लोग भी शामिल होने लगे हैं. इन राज्यों में जनसंख्या परिवर्तन होना शुरू हो गया है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक लोग खाड़ी देशों की तरफ जा रहे हैं, इनमें अधिकतर अकुशल श्रेणी के कामगार हैं. उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जनसंख्या परिवर्तन लगभग 30 साल के अंतराल में दिखेगा. यह साल 2015 में शुरू हुआ जो 2045 में ख़त्म होगा.''

इसके अलावा केरल में पलायन की दर कम होने के पीछे कुछ और वजहें भी हैं. जैसे खाड़ी देशों में मिलने वाले वेतन में कमी, सऊदी जैसे देशों में बढ़ाया गया कर आदि.

इस तरह यह समझा जा सकता है कि सजित जैसे लोगों के लिए दोबारा खाड़ी देशों की तरफ लौटना और फिर से उतना पैसा कमाना जितना उन्होंने पहले कमाया था, बेहद मुश्किल चुनौती होगी.

लेकिन इस बीच लगातार गिरती रुपए की कीमत उनके लिए एक उम्मीद की किरण ज़रूर जगाती है.

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English summary
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