कर्नाटक में सिद्दारमैया ने गिरा दी सरकार, क्या यही सोच रहे हैं राहुल गांधी
नई दिल्ली- कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिरने पर राहुल गांधी ने जो ट्वीट किया है, उसमें अंदर और बाहर के कुछ स्वार्थी तत्वों पर उंगली उठाई गई है। बाहरी लोगों से उनका मतलब सीधा-सीधा बीजेपी से है। लेकिन, अंदर के लोग कौन हैं, जो गठबंधन सरकार को पहले दिन से ही गिराना चाहते थे और इसके पीछे उनका मकसद क्या है? अगर राहुल की बातों की गहन छानबीन करें तो यही लगता है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर ही निशाना साध रहे हैं। लेकिन, सवाल है कि राहुल ऐसा क्यों कह रहे हैं? राहुल के ट्वीट को कांग्रेस अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे से जोड़कर देखा जा सकता है। तब उन्होंने कहा था कि "भारत में यह आदत है कि ताकतवर लोग सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं, सत्ता की त्याग करने के लिए कोई तैयार नहीं होता। लेकिन, जब तक हम सत्ता की लालच नहीं छोड़ेंगे, अपने विरोधियों नहीं हरा सकते....।" आइए देखते हैं कि कर्नाटक में ऐसा क्या हुआ, जिसके चलते उंगलियां सिद्दारमैया की ओर उठ रही हैं।
देवगौड़ा-शिवकुमार ठहरा चुके हैं जिम्मेदार
जेडीएस सुप्रीमो एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी सिद्दारमैया पर गठबंधन सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया था। वही नहीं राज्य में कांग्रेस के संकटमोचक डीके शिवकुमार भी प्रदेश के राजनीतिक संकट के लिए सिद्दारमैया को जिम्मेदार ठहरा चुके थे। सिद्दारमैया के चलते प्रदेश में कांग्रेस खेमों में बंट गई थी, जिसमें से उनका खेमा सबसे दबदबा वाला था। पार्टी का यह धरा शुरू से ही शिकायत कर रहा था कि गठबंधन के चलते पुराने मैसूर के इलाके में कांग्रेस खत्म हो रही है, जो कि सिद्दारमैया का गढ़ माना जाता है। जबकि, डीके शिवकुमार और 'परिवार' के भक्त गठबंधन बचाए रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे।
देवगौड़ा ने राहुल से भी की शिकायत
कांग्रेस के अलग-अलग धरों का मतभेद और गठबंधन का विरोधाभाष लोकसभा चुनाव के बाद सतह पर आ गया। दोनों धरों ने हार के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। सीनियर लीडर रोशन बेग ने भी चुनाव में करारी हार का ठीकरा सार्वजनिक तौर पर सिद्दारमैया पर फोड़ दिया। इसपर उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया, जिससे लड़ाई और बढ़ती चली गई। लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली में राहुल गांधी की देवगौड़ा के साथ एक बैठक हुई, जिसमें उन्होंने सिद्दारमैया के खिलाफ मनमानी करने की शिकायत की। गौरतलब है कि सिद्दारमैया विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता होने के साथ-साथ कांग्रेस-जेडीएस समन्वय समिति के चेयरमैन भी हैं। देवगौड़ा ने राहुल से कहा कि सिद्दारमैया और उनके समर्थक कुमारस्वामी की सरकार चलाने में अड़ंगा लगा रहे हैं। देवगौड़ा ने राहुल को साफ कर दिया कि जबतक वे बागी नेताओं और सिद्दारमैया पर लगाम नहीं लगाएंगे, सरकार चलाना मुश्किल होगा।
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राहुल से सिद्दारमैया मिले तो क्या हुआ?
देवगौड़ा के बाद राहुल गांधी से मिलने के लिए सिद्दारमैया भी दिल्ली पहुंचे या उन्हें ही तलब कर बुला लिया गया। लेकिन, दोनों के बीच क्या बातचीत हुई यह बात खुलकर सामने नहीं आ पाई। लेकिन, जिस तरह से राहुल ने दो दिन तक सिद्दारमैया को मुलाकात के लिए इंतजार करवाया उससे जाहिर है कि वे उनसे बेहद नाराज थे। एक बात और खास है कि जैसे ही यह बैठक हुई उसके के कुछ ही घंटों के भीतर कर्नाटक कांग्रेस कमिटी भंग कर दी गई। फिर दो हफ्ते भी नहीं बीते, कांग्रेस के बागी विधायकों के इस्तीफे का सिलसिला शुरू हो गया। एक जुलाई को दो विधायक ने इस्तीफा दिया था और 6 जुलाई आते-आते 10 कांग्रेसी विधायकों ने अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा स्पीकर रमेश कुमार को सौंप दिया। यहां से सरकार गिरने का काउंटडाउन चालू हो गया, लेकिन विधायकों का जाने का सिलसिला नहीं थमा।
जब सिद्दारमैया बने गठबंधन के विलेन!
दिल्ली में दो बड़ी बैठकों के बाद तीसरी बड़ी बैठक बेंगलुरु में देवगौड़ा और डीके शिवकुमार के बीच हुई। बताया जाता है कि उस बैठक में शिवकुमार ने देवगौड़ा से कहा कि बगावत के पीछे सिद्दारमैया का ही हाथ है। 7 जुलाई को देवगौड़ा ने कहा भी था कि, "मैं जानता हूं कि प्रदेश में राजनीति भूचाल के पीछे सिद्दारमैया हैं। जिन्होंने इस्तीफा दिया है, वे उनके ही समर्थक हैं।" कहा जाता है कि शिवकुमार ने देवगौड़ा को सलाह दी थी कि अब गठबंधन सरकार बचाने का एक ही उपाय है कि सिद्दारमैया को मुख्यमंत्री बना दें। लेकिन, शायद देवगौड़ा इसके लिए कत्तई तैयार नहीं हुए।
जब सिद्दारमैया की उम्मीदों पर फिरा था पानी
मई 2018 के विधानसभा चुनाव में सिद्दारमैया को पूरा यकीन था कि वे दोबारा सत्ता में आएंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस बीजेपी से काफी पीछे दूसरे नंबर की पार्टी बन गई और 35 साल बाद दोबारा कांग्रेसी मुख्यमंत्री बनकर लौटने का उनका सपना चकनाचूर हो गया। लेकिन, बीजेपी को लेकर देवगौड़ा परिवार के रवैए को देखकर उनकी उम्मीदें फिर से जग गईं और उन्हें लगा कि अगर जेडीएस-कांग्रेस में सत्ता की साझेदारी होती है, तो उन्हें दोबारा सीएम बनने का चांस मिल सकता है। लेकिन, राहुल गांधी शायद दूसरी दिशा में सोच रहे थे। उन्हें लगा कि अगर हालात ऐसे ही रहने दिया गया तो बीजेपी जोड़-तोड़ करके सरकार बचा ही लेगी। इसलिए, उन्होंने आनन-फानन में कांग्रेस की 78 से आधी से भी कम यानी 37 सीटों वाली जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। इस दिन के बाद से ही सिद्दारमैया घुट-घुट कर सरकार के साथ चलने को मजबूर हो गए।
सिद्दारमैया का इतिहास
कर्नाटक की राजनीति में सिद्दारमैया का इतिहास भी शायद राहुल को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सिद्दारमैया कुर्सी से दूरी बर्दाश्त नहीं कर सके और इसलिए गठबंधन सरकार को गिराने की साजिश में शामिल हो गए। बात 2004 की है जब बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस-जेडीएस ने हाथ मिलाकर वहां सरकार बना ली। तब सिद्दारमैया जेडीएस में होते थे और देवगौड़ा के बेहद खास थे। लेकिन, साझा सरकार के फॉर्मूले में मुख्यमंत्री की कुर्सी धरम सिंह के हाथ लगी और सिद्दारमैया डिप्टी सीएम ही बन सके। 2006 में गठबंधन सरकार गिर गई और जेडीएस ने बीजेपी से हाथ मिला लिया। तब सिद्दारमैया जेडीएस में देवगौड़ा के बाद दूसरे सबसे प्रभावशाली नेता थे। लेकिन, जब मुख्यमंत्री बनाने की बात आई तो देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी का नाम सामने आ गया और सिद्दारमैया मुंह ताकते रह गए। तभी उन्हें लग गया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनना है तो जेडीएस में उनके लिए अब जगह नहीं बच गई है। इसलिए उन्होंने जेडीएस छोड़कर एक नई पार्टी बनाई और 2006 में उसका कांग्रेस में विलय कर दिया। इस तरह से जब 2013 में कांग्रेस सत्ता में आई तो सिद्दारमैया को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया, लेकिन इस पद पर बने रहने की उनकी ख्वाहिश शायद कभी खत्म नहीं हुई।