Covid test:मरीज जांच के पीछे न भागें, जानिए कब कौन टेस्ट करवाना जरूरी है ?
नई दिल्ली, 20 मई: कोरोना मरीजों को पूरे इलाज के दौरान कई तरह की टेस्ट करवाने की जरूरत पड़ती है। कई मामलों में देखा गया है कि होम आइसोलेशन में रह रहे मरीज और उनके परिजन भी घबराकर तरह-तरह की टेस्ट के पीछे दौड़ लगाना शुरू कर देते हैं। लेकिन, इसकी आवश्यकता नहीं है। कोविड मैनेजमेंट के तहत पूरा प्रोटोकॉल तैयार है और डॉक्टर उसी के आधार पर केस-दर-केस जरूरी टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। गौरतलब है कि हाल ही में एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने सीटी स्कैन को लेकर सावधान किया था कि इसका इस्तेमाल बेवजह नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह शरीर के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि कोई भी टेस्ट डॉक्टरों की सलाह पर ही करवाएं। आइए जानते हैं कि कौन सा टेस्ट कब करवाया जाता है, इसके बारे में डॉक्टर क्या कह रहे हैं।
सीआरपी टेस्ट कब करवाई जाती है?
कोविड मरीजों को कब कौन सी टेस्ट करवाने की आवश्यकता पड़ती है, इसपर टीओआई ने नई दिल्ली के डॉ डैंग्स लैब के सीईओ डॉक्टर अर्जुन डैंग और डॉ गुलाटी इमेजिंग इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉक्टर प्रवीण गुलाटी से विस्तार से बातचीत की है। उनसे सबसे पहले पूछा गया कि आरटी-पीसीआर या रैपिड एंटीजन टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद कौन सा ब्लड टेस्ट करवाना होता है। उन्होंने बताया कि फिजिशियन लक्षणों की गंभीरता को देखते हुए आगे की टेस्ट की सलाह देते हैं और यह इलाज के दौरान कई बार भी हो सकता है। हल्के लक्षण होने पर कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) और सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) टेस्ट करवाने की जरूरत होती है, ताकि डॉक्टर को मरीज की बीमारी की स्थिति पता चल सके। सीआरपी एक प्रोटीन है, जो लिवर में बनता है। शरीर में इंफ्लेमेशन के साथ सीआरपी लेवल बढ़ता है। जबकि मध्यम से गंभीर लक्षण होने पर इन दोनों टेस्ट के अलावा आईएल 6, फेरिटिन, एलडीएच के अलावा डी-डाइमर जांच करवाने के लिए कहा जाता है। ज्यादा एनएलआर (न्यूट्रोफिल लिंफोसाइट रेशियो) का मतलब है कि बीमारी ज्यादा गंभीर है। 4 से ज्यादा वैल्यू आने का मतलब है कि आईसीयू एडमिशन का केस है।
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होम आइसोलेशन में सीआरपी टेस्ट की जरूरत क्यों पड़ती है?
उनसे यह पूछा गया कि होम आइसोलेशन वाले मरीजों को भी डॉक्टर सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) टेस्ट करवाने की सलाह क्यों देते हैं ? उनके मुताबिक गंभीर बीमारी के केस में सीआरपी लेवल में बहुत ज्यादा बदलाव आता है और इससे लक्षण और अधिक गंभीर होने और इंफ्लेमेशन का बहुत बड़ा ताल्लुक है। बार-बार यह टेस्ट करवाने से डॉक्टरों को होम आइसोलेशन वाले मरीजों की स्थिति का आंकलन करना ज्यादा आसान होता है और उन्हें यह पता चलता है कि मरीज ठीक है या फिर बीमारी मध्यम और गंभीर तो नहीं हो रही है।
सीटी स्कैन करवाने की जरूरत कब पड़ती है ?
रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर गुलाटी का कहना है कि हर कोरोना संदिग्धों या पॉजिटिव मरीजों को इसकी जरूरत नहीं है। कुछ खास स्थिति में ही इसकी आवश्कता पड़ती है। मरीज में कोविड के लक्षण हों, लेकिन किसी वजह से रिपोर्ट निगेटिव आई हो। अगर ऐसे मामलों सीटी स्कैन करवाने की जरूरत है तो यह पांचवें और सातवें दिन के बीच होना चाहिए। उस स्थिति में जब मध्यम या गंभीर मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो रही हो, ऑक्सीजन सैचुरेशन गिरने लगे, ऐसी स्थिति में सीटी स्कोर उस मरीज की स्थिति के मुताबिक आपात इलाज शुरू करने में मदद कर सकता है। इससे बैक्ट्रियल इंफेक्शन या हार्ट की स्थिति के आंकलन में भी सहायता मिल सकती है। हल्के लक्षण वाले मरीजों में इसकी जरूरत तभी पड़ती है, जब आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट नहीं है और इलाज में देरी से मरीज की स्थिति बिगड़ने का अंदेशा रहता है। कुछ आपात स्थिति में भी इसे कराने की सलाह दी जाती है। जैसे कि मरीज की अचानक कोई सर्जरी करनी पड़े और आरटी-पीसीआर या रैपिड टेंस्टिंग उपल्ध नहीं हो। रिकवरी के बाद इसकी जरूरत नहीं है, अगर डॉक्टर ऐसी सलाह न दें तो। एसिम्पटोमेटिक मरीजों में भी इसकी जरूरत नहीं है।
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ब्लड इंफ्लेमेटरी मार्कर टेस्ट क्यों करवाए जाते हैं ?
कोविड के गंभीर केस में सीआरपी, ईएसआर, फेरिटिन, एलडीएच और प्रोकैल्सिटोनिन ऐसे इंफ्लेमेटरी मार्कर हैं, जिससे बीमारी के रुख का पता चलता है और उसी मुताबिक उपचार का प्रोटोकॉल तैयार किया जाता है। यदि ऐसे मरीजों में आईएल 6 जैसे साइटोकाइंस और 'ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर अल्फा' बढ़ना शुरू हो जाए तो दूसरी परेशानियों के साथ ही फेफड़े खराब हो सकते हैं। शोध से पता चला है कि आईएल 6 और डी-डाइमर में नजदीकी रिश्ता है और बीमारी की गंभीरता का पता लगाने के लिए इनका शुरू में पता लगाना काफी अहम साबित हो सकता है।