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सोनिया ने CM को हटाया तो इंदिरा गांधी ने PM को हटाया था

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नई दिल्ली, 20 सितंबर: कैप्टन अमरिंदर सिंह को मलाल है कि सोनिया गांधी ने बहुत ही अपमानजनक तरीके से उनकी कुर्सी छीन ली। मोदी लहर के बीच 2017 में उन्होंने अपने दम पर कांग्रेस को पंजाब में जीत दिलायी थी। इसके बावजूद उन्हें सीएम पद से चलता कर दिया गया। कुर्सी छीन लेना कांग्रेस की पुरानी फितरत है। 1979 में इंदिरा गांधी ने चरण सिंह की कुर्सी छीन ली थी तो 1991 में राजीव गांधी ने चंद्रशेखर की सरकार गिरा दी थी। कांग्रेस ने चरण सिंह और चंद्रशेखर को बेआबरू कर प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया था।

जनता पार्टी का झगड़ा और इंदिरा गांधी

जनता पार्टी का झगड़ा और इंदिरा गांधी

कांग्रेस पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह पहले किसी नेता का अपने हक में इस्तेमाल करती है। जब मतलब सध जाता है तो उसे दूध की मक्खी की तरह बाहर फेंक देती है। 1977 में इंदिरा गांधी की करारी हार हुई थी। वे सत्ता से बेदखल तो हुई हीं, खुद चुनाव हार गयीं। बहुत लोग उनके राजनीतिक अंत की बात करने लगे थे। लेकिन इंदिरा गांधी विचलित नहीं थीं। वे मुनासिब वक्त का इंतजार करने लगीं। 1977 में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री तो बन गये थे लेकिन उनकी गृहमंत्री चरण सिंह से पटरी नहीं बैठ रही थी। चरण सिंह खुद प्रधानमंत्री बनने को इच्छुक थे। 1978 तक मोरारजी देसाई और चरण सिंह में मतभेद इतने बढ़ गये कि आपसी लड़ाई शुरू हो गयी। 30 जून 1978 को मोरारजी देसाई ने चरण सिंह को गृहमंत्री के पद से इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया। जनता पार्टी में चरण सिंह का गुट बहुत मजबूत था। उसने मोरारजी सरकार को गिराने के लिए जोड़तोड़ शुरू कर दी। इंदिरा गांधी जनता पार्टी की इस अंदरुनी लड़ाई को बहुत गौर से देख रही थीं। मोरारजी देसाई को झुकना पड़ा। जनवरी 1979 में चरण सिंह की कैबिनेट वापसी हुई और उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। मोरारजी सरकार चल तो रही थी लेकिन अंदर से बहुत कमजोर हो चुकी थी। जनता पार्टी का एक मुख्य घटक भारतीय जनसंघ (भाजपा का पूर्ववर्ती रूप) था। जनसंघ के नेता मोरारजी देसाई के साथ थे। तब चरण सिंह के समर्थकों ने जनसंघ की दोहरी सदस्यता (पार्टी और आरएसएस) का मामला उठा कर विरोध शुरू कर दिया। मोरारजी सरकार डांवाडोल होने लगी।

कांग्रेस में विभाजन

कांग्रेस में विभाजन

1977 के चुनाव में जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं थीं जब कि कांग्रेस को 154 सीटें। इंदिरा गांधी के चुनाव हार जाने से कांग्रेस में उनके खिलाफ गुटबाजी शुरू हो गयी। कांग्रेस के पुराने नेता इंदिरा गांधी को दरकिनार कर पार्टी पर खुद कब्जा जमाना चाहते थे। महाराष्ट्र के नेता यशवंत राव चव्हाण को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया था। उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ गुटबाजी शुरू कर दी। जनवरी में कांग्रेस का विभाजन हो गया। इंदिरा गांधी गुट को कांग्रेस आइ तो यशवंत राव चव्हाण को कांग्रेस सोशलिस्ट कहा गया। इंदिरा गांधी के साथ 71 सांसद थे तो चव्हाण गुट के साथ 75 सांसद। एक तरफ जनता पार्टी में उठापटक चल रही थी तो दूसरी तरफ कांग्रेस में भी घमासान चल रहा था। इंदिरा गांधी खामोशी से सब कुछ देख रही थीं। उधर जनता पार्टी की अंदरुनी लड़ाई में कई सांसदों ने इस्तीफा दे दिया था। आखिरकार मोरारजी देसाई ने 15 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। चरण सिंह के गुट में 92 सांसद थे। चरण सिंह प्रधानमंत्री बनने के लिए जोड़तोड़ कर रहे थे।

इंदिरा गांधी ने झगड़े का फायदा उठाया

इंदिरा गांधी ने झगड़े का फायदा उठाया

मौका ताड़ कर इंदिरा गांधी ने अपने दो विश्वस्त दूतों (कमलापति त्रिपाटी और सीएम स्टीफन) को चरण सिंह के पास भेजा। इन दोनों नेताओं ने चरण सिंह से कहा, हम मोरारजी सरकार से छुटकारा पाना चाहते हैं, अगर आप सरकार बनाएंगे तो कांग्रेस आइ बिना शर्त समर्थन देगी। चव्हाण गुट पहले से चरण सिंह के साथ था। उसने केवल सरकार में शामिल होने की शर्त रखी। मोराजी जी के इस्तीफे के 13 दिन बाद चरण सिंह को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी गयी। यशवंत राव चव्हाण को उपप्रधानमंत्री बनाया गया। कांग्रेस ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया। देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि जिस पार्टी केवल 92 सांसद (चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्यूलर) थे उसे सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति ने आमंत्रित किया था। चरण सिंह को 20 अगस्त तक बहुमत साबित करने के लिए समय मिला था। चरण सिंह की जैसे ही सरकार बनी इंदिरा गांधी के दूतों के रोज टेलीफोन आने लगे। उस समय संजय गांधी के खिलाफ सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाये गये थे। इमरजेंसी के अपराध और 'किस्सा कुर्सी का' मामले में संजय गांधी के खिलाफ सुनवाई चल रही थी।

ऐसे छीन ली प्रधानमंत्री की कुर्सी

ऐसे छीन ली प्रधानमंत्री की कुर्सी

इंदिरा गांधी की तरफ से चरण सिंह को कहा गया कि वे प्रधानमंत्री होने के नाते स्पेशल कोर्ट बनाये जाने के आदेश को वापस ले लें । संजय गांधी कानून के शिकंजे से बचाने की कोशिश शुरू हो गयी। फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' मामले में लोअर कोर्ट से संजय गांधी को दो साल एक महीने की सजा मिल चुकी थी। संजय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। गृहमंत्री के रूप में जब चरण सिंह ने अक्टूबर 1977 में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कराया था तब उनकी छवि एक शक्तिशाली नेता की बन गयी थी। लेकिन जब वे इंदिरा गांधी से समर्थन से प्रधानमंत्री बने तो उनको अवसरवादी और पदलोलुप नेता कहा जाने लगा। यह आरोप लगने लगा कि चरण सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के लिए इंदिरा गांधी से कोई सौदा किया है। उनकी किसान नेता की ईमानदार छवि लगातार धूमिल हो रही थी। चरण सिंह इस बात से वाकिफ थे। उन्होंने सोचा कि अगर संजय गांधी को बचाने के लिए स्पेशल कोर्ट के आदेश वापस लिया तो वे जनता की नजरों में और गिर जाएंगे। लोगों को यकीन हो जाएगा कि उनमें और इंदिरा गांधी में कोई 'डील' हुई है। चरण सिंह ने इंदिरा गांधी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब नाराज इंदिरा गांधी ने विश्वास मत से एक दिन पहले ही 19 अगस्त को चरण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। आखिरकार चरण सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के 23 दिन बाद ही (20 अगस्त 1979) अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस तरह इंदिरा गांधी ने चरण सिंह की कुर्सी छीन ली थी।

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English summary
Congress Political Story Sonia Gandhi removed the CM and Indira Gandhi removed the PM
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