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कर्नल नरेंद्र कुमार: भारत को सियाचिन दिलाने वाले हीरो 'बुल कुमार' का निधन

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नई दिल्ली। Colonel Narendra 'Bull' Kumar passed away. पाकिस्तान (pakistan) के कब्जे से सियाचिन ग्लेशियर (Siachen glacier) को छिनकर भारत के कब्जे में लाने वाले कर्नल नरेंद्र कुमार उर्फ बुल कुमार (Colonel Narendra 'Bull' Kumar)का आज निधन हो गया। कर्नल नरेंद्र ने आज दिल्ली के आरआर अस्पताल में अंतिम सांस ली। 87 साल के नरेंद्र कुमार पिछले कुछ समय से उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। आर्मी में बुल कुमार के नाम मशहूर कर्नल नरेंद्र कुमार का भारत को सियाचिन में स्थापित करने में बड़ा योगदान है।

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सियाचिन में फिर से भारत का झंड़ा लहराने में कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार का अहम योगदान

सियाचिन में फिर से भारत का झंड़ा लहराने में कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार का अहम योगदान

1984 को कड़े संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हराकर उत्तरी कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर लिया था। सियाचिन में फिर से भारत का झंड़ा लहराने में कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार का अहम योगदान था। पर्वतारोहण अभियान के एक हिस्से के रूप में सियाचिन ग्लेशियर पर उतरने वाले पहले अधिकाकी थे बुल कुमार। भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन ग्लेशियर संघर्ष ने एक नए शब्द को जन्म दिया है- 'ओरोपॉलिटिक्स' या राजनीतिक उद्देश्य से पर्वतारोहण।

1965 में एवरेस्ट में भारत का झंडा फहराने वाले पहले भारतीय

1965 में एवरेस्ट में भारत का झंडा फहराने वाले पहले भारतीय

उन्होंने सियाचिन ग्लेशियर के सामरिक महत्व के बारे में भारत के सैन्य / राजनीतिक नेतृत्व को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1953 में कुमाऊं रेजीमेंट से आईएमए देहरादून से पास आउट कर्नल नरेंद्र कुमार नंदा देवी पर्वत पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे। 1965 में एवरेस्ट में भारत का झंडा फहराने वाले पहले भारतीय और 1976 में कांचनजंगा को उत्तर पूर्व दिशा, जो सबसे विकट है, से चढ़नेवाले पहले भारतीय थे।

ऐसे नरेंद्र कुमार बने बुल कुमार

ऐसे नरेंद्र कुमार बने बुल कुमार

नरेंद्र कुमार का जन्म 1933 में रावलपिंडी, वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था। इनकी शुरुआती शिक्षा रावलपिंडी में हुई थी। लेकिन 1947 में आजादी के बाद वो परिवार के साथ पंजाब आ गए । नरेंद्र के तीन भाई है और तीनों आर्मी में रहे। नरेंद्र 17 वर्ष की उम्र में ही भारतीय आर्मी में दाखिल हो गए। आर्मी प्रशिक्षण के बाद इन्हें 1954 में कुमारों रेजिमेंट में कमीशन मिला । भारतीय सेना में 'बुल कुमार' के नाम मशूहर कर्नल नरेंद्र कुमार के इस नाम के पीछे भी एक रोचक वाकया जुड़ा है। अंग्रेज़ी के 'बुल' शब्द का उपनाम कर्नल नरेंद्र कुमार के नाम के साथ तब जुड़ा जब नॅशनल डिफेंस अकाडेमी में वे अपने पहले बॉक्सिंग मैच खुद से 6 इंच लम्बे और कहीं ज़्यादा तगड़े प्रतिद्वंद्वी से एक बैल की तरह भीड़ गए थे।

कीर्ति चक्र समेत कई सम्मान से नवाजे गए

कीर्ति चक्र समेत कई सम्मान से नवाजे गए

1965 में, कुमार को चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया। सेना ने उन्हें तीनों सेवाओं में परम विशिष्ट सेवा पदक (पीवीएसएम) के साथ सम्मानित किया गया। उन्हें कीर्ति चक्र और अति विशिष्ट सेवा पदक से भी अलंकृत किया गया था। ग्लेशियर बेस कैंप में सियाचिन बटालियन मुख्यालय को उनके सम्मान में 'कुमार बेस' नाम दिया गया है। वो रॉयल जियोग्राफिक सोसायटी के सदस्य भी बने।

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English summary
Colonel Narendra ‘Bull' Kumar passed away officer who helped Indian Army secure the Siachen
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