‘चाइनीज माल’ की तरह है चीनी सेना ! डिस्प्ले में बेजोड़ लेकिन टिकाऊ नहीं
नई दिल्ली। चीन की नीति है, दुनिया के सामने अपनी कमियों को छिपाओ। कमियां न छिपें तो कॉन्फिडेंस से झूठ बोलो। झूठ पर अड़् रहे और प्रोपेगेंडा से सच बनाते रहो। क्या चीन की सेना दुनिया में सबसे आधुनिक और शक्तिशाली है ? बेशक चीनी सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। यह मारक और आधुनिक हथियारों से लैस भी है। लेकिन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में कुछ ऐसी खामियां हैं जो युद्ध के मैदान में इसको बेअसर बना सकती हैं। आस्ट्रेलिया के मैक्युएयर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बैट्स गिल और शोधकर्ता एडम नी ने अमेरिका के रिटायर लेफ्टिनेंट कर्नल डेनिस ब्लास्को के साथ मिल कर चीन की मौजूदा सैन्य शक्ति का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में चीनी सेना की प्रगति और इसकी समस्याओं का मूल्यांकन किया गया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि चीन की मौजूदा सरकार संकट से निबटने में सेना की क्षमता का गलत आकलन कर रहा है। सेना की कुछ गंभीर कमियां इसकी ताकत को बेअसर बना देंगी। विशाल सेना, आधुनिक युद्धपोतों और विध्वंशक मिसाइलों के बावजूद चीन की सेना युद्ध की स्थिति में धाराशायी हो सकती है। यानी चीन अपने खट्टे दही को 'मिष्टी दोई’ बता कर विश्व को भरमा रहा है।
‘टू इनएबिलिटी’ क्या है?
चीन के सरकारी अखबारों में सेना की कमियों और समस्याओं पर तो खुल कर बात होती है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वह इसे बब्बर शेर बना कर पेश करता है। चीन की सरकारी मीडिया में ‘two inabilities' की बार बार चर्चा हो रही है। ये टू इनएबिलिटी' क्या है? शोधकर्ताओं के मुताबिक चीनी सेना पहली अयोग्यता इसकी अकुशलता है। चीनी सेना की मौजूदा क्षमता आधुनिक युद्ध लड़ने के लायक नहीं है। दूसरी कमी ये है कि चीन के मौजूदा सैनिक कमांडर भी वक्त की मांग के अनुपरूप दक्ष नहीं हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासनकाल में चीनी सेना का तेजी से आधुनिकीकरण हुआ है। 2015 में जिनपिंग ने चीनी सेना में मोटापा, भ्रष्टाचार और स्तरहीनता को खत्म करने के लिए एक सख्त अभियान चलाया था। उन्होंने सैनिकों को विजेता और योग्य बनाने के लिए आर्मी के ढांचे में आमूल चूल बदलाव किया। नयी तकनीकों को शामिल किया। लेकिन चीनी सैनिक, अमेरिकी सैनिकों की तरह जुझारू और कुशल नहीं बन सके।
‘मॉडर्न वार कन्सेप्ट’ के मुताबिक ट्रेनिंग नहीं
चीन
थल,जल
और
वायुक्षेत्र
के
अलावा
अंतरिक्ष
और
साइबर
डोमेन
में
भी
युद्ध
लड़ने
की
क्षमता
विकसित
कर
रहा
है।
राष्ट्रपति
जिनपिंग
के
मुताबिक
2020
तक
चीनी
सेना
का
तकनीकीकरण
पूरा
कर
लिया
जाएगा।
लेकिन
इसका
असर
2035
के
बाद
दिखायी
पड़ेगा।
चीनी
रणनीतिकारों
का
मानना
है
कि
2050
तक
पीपल्स
लिबरेशन
आर्मी
एक
वर्ल्ड
क्लास
सेना
बन
जाएगी।
इसमें
अभी
बहुत
वक्त
लगेगा।
फिलहाल
चीनी
सैनिकों
की
ऐसी
ट्रेनिंग
नहीं
है
कि
वे
तकनीक
पर
आधारित
युद्ध
को
लड़
सकें।
अगर
अभी
युद्ध
होता
है
तो
चीनी
सैनिक
जीतने
की
स्थिति
में
नहीं
होंगे।
चीनी
सेना
मोटापा
का
शिकार
है।
कमांडरों
में
लीडरशिप
की
कमी
है
और
वे
मॉडर्न
वार
कन्सेप्ट
से
परिचित
नहीं
है।
चीनी
सेना
में
टेक्नोलॉजी
तो
लागू
कर
दिया
गया
है
लेकिन
उसके
अनुरूप
ट्रेनिंग
नहीं
दी
गयी
है।
चाइना
के
डिफेंस
जर्नल
‘मॉडर्न
वेपनरी'
के
वरिष्ठ
सम्पादक
हुवांग
गु
ओझी
का
कहना
है
कि
दुर्गम
पर्वतों
पर
लड़ने
के
मामले
में
भारतीय
सेना
दुनिया
में
सर्वश्रेष्ठ
है।
उसके
आगे
चीन
तो
क्या
अमेरिका
और
रूस
के
सैनिक
भी
फीके
हैं।
1967
में
भारत
के
17
माउंटेन
डिविजन
ने
ही
चीन
को
हराया
था।
चीन
ने
पिछले
30
साल
से
कोई
युद्ध
नहीं
लड़ा
है।
उसकी
सारी
तैयारी
युद्धाभ्यास
पर
निर्भर
है।
चीन
की
सेना
कागज
पर
तो
मजबूत
दिखती
है
लेकिन
आधे
अधूरे
मॉडर्नाइजेशन
के
कारण
युद्ध
के
मैदान
में
उसके
पांव
उखड़
सकते
हैं।
सैन्य सुधारों के अनुरूप ह्यूमन टैलैंट नहीं
आस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने कहा है कि चीन की सेना ने हाल के दिनों में अपनी ताकत का मुजहरा किया है। पिछले साल अक्टूबर में साम्यवादी शासन की स्थापना की 70वीं सालगिरह पर चीन ने पहली बार अपनी आधुनिक सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया था। उसने मॉडर्न मिलिट्री हार्डवेयर के 700 नमूनों को पेश कर दुनिया को अपनी शक्ति से वाकिफ कराया था। इस मौके पर चीन ने पहली बार DF-41 मिसाइल सार्वजनिक की थी। परमाणु बमों से लैस ये मिसाइल अमेरिका में किसी भी स्थान को निशाना बना सकती है। चीन ने जापान और ताइवान की समुद्री सीमा के पास अपनी नौसेना क्षमता बढ़ा ली है। पिछले साल दिसम्बर में चीन दक्षिणी चीन सागर में अपने दूसरे एयरक्राफ्ट कारियर को समुद्र में उतार चुका है। यानी चीन की सेना को कागजी शेर भी नहीं समझा जाना चाहिए। अभी पीपुल्स लिबरेनश आर्मी की क्षमता पर इसलिए सवाल उठाया जा रहा है क्यों कि वह सैन्य सुधारों के मुताबिक ह्यूमन टैलैंट को विकसित नहीं कर पायी है।