चीन की प्रभुत्व विस्तार के लिए कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति
बेंगलुरु। चीन विकास के नाम पर कब्जे की रणनीति से दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है। चीन का प्रभाव दक्षिण एशिया में लगातार बढ़ रहा है। भारत को घेरने की नीति के तहत चीन पड़ोसी देशों में विकास के नाम पर अपनी पैठ मजबूत कर रहा है। अब भारत को चुनौती देने के लिए चीन धीरे-धीरे नेपाल में अपनी पैठ बना रहा है। वह नेपाल में अपनी राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक छाप छोड़ रहा है। चीन ऐसा देश हैं जिसने अपने सभी पड़ोसी देशों को पहले मदद दी उसके बाद कब्जे की रणनीति के तहत अपना अधिपत्य स्थापित किया। वो चाहे श्रीलंका, पाकिस्तान, तिब्बत या बांग्लादेश हो। इन देशों के अलावा भारत का अभिन्न मित्र देश नेपाल भी चीन के शिकंजे में फंसता जा रहा हैं।
बता दें अन्य देशों के अलावा नेपाल चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना (ओबीओआर) में शामिल हो चुका हैं। जबकि भारत इस परियोजना के पक्ष में नहीं है। पिछला इतिहास देखे तो चीन संबंधित देश को विकास के नाम पर कर्ज में इस हद तक फंसा देता है कि उसे अपने उद्देश्य के पूरा होने को लेकर कोई संदेह ही नहीं रहता है। चीन अपने प्रभुत्व के विस्तार के लिए कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति के जरिये दादागीरी करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार कर रहा है।
चीन का श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर कब्जा
चीन की ऋण-जाल कूटनीति का खतरनाक उदाहरण यह है कि, श्रीलंका उस चीनी ऋण पर भुगतान करने में असमर्थ हो गया जो उसने हंबनटोटा बंदरगाह विकास परियोजना के लिए लिया था और बाद में श्रीलंकाई हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन ने आधिपत्य जमा लिया। बता दें अपनी ओबीओआर परियोजना के जरिए चीन ने श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर अरबों डॉलर का निवेश किया था। उसने इस कार्य में सबसे अधिक प्राथमिकता हंबनटोटा बंदरगाह को दी थी।
चीन ने इस विकास कार्य के नाम पर श्रीलंका को भारी कर्ज के जाल में फंसा दिया। वह जब इसे चुकाने की स्थिति में नहीं रहा तो चीन को दिसंबर, 2017 में 99 साल के लिए बंदरगाह लीज पर देना पड़ा। 8 अरब डालर के चीनी कर्ज़ से उबरने के लिये श्री लंका ने अपना हॅमबनटोटा बंदरगाह चीन कोलीज में सौंपना पड़ा था। श्रीलंका को चीन को बंदरगाह के चारों ओर की 1,500 एकड़ जमीन चीन को सौंपना पड़ा था। चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स कंपनी द्वारा प्रबंधित हंबनटोटा इंटरनैशनल पोर्ट ग्रुप और हंबनटोटा इंटरनैशनल पोर्ट सर्विसेज के साथ श्री लंका पोर्ट्स अथॉरिटी इस बंदरगाह और इसके आसपास के निवेश क्षेत्र को नियंत्रित कर रहा था।
पाकिस्तान पर कब्जा
चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर भी लगभग अपना नियंत्रण स्थापित कर चुका है। पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट और अन्य प्रॉजेक्ट्स के लिए चीन से कम से कम 10 अरब डॉलर का कर्ज लिया था।अरब सागर के किनारे पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन ग्वादर पोर्ट का निर्माण चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना के तहत कर रहा है और इसे पेइचिंग की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट, वन रोड (ओबीओआर) तथा मेरिटाइम सिल्क रोड प्रॉजेक्ट्स के बीच एक कड़ी माना जा रहा है। पाकिस्तान चीन के कर्ज के जाल में बुरी तरह फंस चुका हैं। कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति में वह पाकिस्तान के आर्थिक गलियारे पर कब्जा देने के लिए पाकिस्तान को मजबूर कर सकता है। बता दें पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले वर्ष कुल 7408 अरब पाकिस्तानी रुपए का कर्ज लिए हैं।
पाकिस्तान
में
पूरे
कर्ज
में
उसके
कथित
मित्र
पड़ोसी
राष्ट्र
चीन
के
कर्ज
का
बड़ा
हिस्सा
शामिल
है।
पाकिस्तान
ने
चीन
पाकिस्तान
आर्थिक
गलियारे
(सीपेक)
के
तहत
चीन
से
62
अरब
डॉलर
का
कर्ज
लिया
हुआ
है,
लेकिन
पाकिस्तान
की
माली
हालत
इतनी
खराब
है
कि
वह
चीन
को
कर्ज
को
पैसा
चुकाने
के
स्थिति
में
नहीं
रह
गया
है।
हाल
ही
में
पाकिस्तानी
प्रधानमंत्री
इमरान
खान
चीन
से
मिले
कर्ज
को
लौटाने
के
लिए
अंतर्राष्ट्रीय
मुद्राकोस(आईएफएफ)
से
बेलआउट
पैकेज
की
मांग
की
थी।
माना
जाता
है
कि
पाकिस्तान
में
सीपेक
के
ज़रिए
घुसपैठ
करने
के
बाद
पाकिस्तान
को
अपना
गुलाम
बनाने
के
लिए
सीपेक
का
पासा
फेंका
था।
गौर करने वाली बात ये हैं कि वर्ष 2022 तक सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान के ग्वादर में चीन अपने पांच लाख चीनी नागरिकों को बसाने के लिए मकान बनाकर कालोनी बसा रहा हैं। चीन ने पाकिस्तान में ना सिर्फ 5 लाख चीनी नागरिकों को बसाने का प्लान बनाया बल्कि चीनी अब पाकिस्तान में अपनी करेंसी भी चलाने की योजना का अमलीजामा पहनाने जा रहा है। यानी पाकिस्तानी रुपए और डॉलर के बाद अब चीनी युआन भी पाकिस्तान में लीगल टेंडर बन जाएगा और पाकिस्तान अपने प्रभुत्व से समझौता करके चीनी मनमानी को सहना पड़ेगा।
चीन का हांगकांग पर कब्जा
हांगकांग
पर
चीन
ने
150
साल
के
ब्रिटेन
के
औपनिवेशिक
शासन
के
बाद
हांगकांग
को
99
साल
की
लीज
पर
चीन
को
सौंपना
पड़ा
था।
पिछली
सदी
के
आठवें
दशक
की
शुरुआत
में
जैसे-जैसे
99
साल
की
लीज
की
समयसीमा
पास
आने
लगी
ब्रिटेन
और
चीन
ने
हांगकांग
के
भविष्य
पर
बातचीत
शुरू
कर
दी।
चीन
की
कम्युनिस्ट
सरकार
ने
तर्क
दिया
कि
हांगकांग
को
चीनी
शासन
को
वापस
कर
दिया
जाना
चाहिए।
दोनों
पक्षों
ने
1984
में
एक
सौदा
किया
कि
एक
देश,
दो
प्रणाली
के
सिद्धांत
के
तहत
हांगकांग
को
1997
में
चीन
को
सौंप
दिया
जाएगा।
इसका
मतलब
यह
था
कि
चीन
का
हिस्सा
होने
के
बाद
भी
हांगकांग
50
वर्षों
तक
विदेशी
और
रक्षा
मामलों
को
छोड़कर
स्वायत्तता
का
आनंद
लेगा
हांगकांग
द्वीप
पर
1842
से
ब्रिटेन
का
नियंत्रण
रहा।
जबकि
द्वितीय
विश्व
युद्ध
में
जापान
का
इस
पर
अपना
नियंत्रण
था।
यह
एक
व्यस्त
व्यापारिक
बंदरगाह
बन
गया
और
1950
में
विनिर्माण
का
केंद्र
बनने
के
बाद
इसकी
अर्थव्यवस्था
में
बड़ा
उछाल
आया।
चीन
में
अस्थिरता,
गरीबी
या
उत्पीड़न
से
भाग
रहे
लोग
इस
क्षेत्र
की
ओर
रुख
करने
लगे।1997
में
जब
हांगकांग
को
चीन
के
हवाले
किया
गया
था
तब
बीजिंग
ने
एक
देश-दो
व्यवस्था
की
अवधारणा
के
तहत
कम
से
कम
2047
तक
लोगों
की
स्वतंत्रता
और
अपनी
कानूनी
व्यवस्था
को
बनाए
रखने
की
गारंटी
दी
थी।
लेकिन
2014
में
हांगकांग
में
79
दिनों
तक
चले
अंब्रेला
मूवमेंट
के
बाद
लोकतंत्र
का
समर्थन
करने
वालों
पर
चीनी
सरकार
कार्रवाई
करने
लगी।
विरोध
प्रदर्शनों
में
शामिल
लोगों
को
जेल
में
डाल
दिया
गया।
आजादी
का
समर्थन
करने
वाली
एक
पार्टी
पर
प्रतिबंध
लगा
दिया
गया।
तिब्बत पर कब्जा
तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से कई बार युद्ध किया, लेकिन हर बार ही उसको हार का सामना करना पड़ा था। इसके हर्जाने के तौर पर तिब्बत को हर वर्ष नेपाल को 5000 नेपाली रुपया बतौर जुर्माना देने की शर्त भी माननी पड़ी थी। लेकिन जल्द ही तिब्बत इस हर्जाने से दुखी हो गया और इससे बचने के लिए चीन से सैन्य सहायता मांगी, जिससे नेपाल को युद्ध में हराया जा सके। चीन की मदद के बाद तिब्बत को नेपाल को दिए जाने वाले हर्जाने से छुटकारा तो मिल गया, लेकिन 1906-7 ईस्वी में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग ग्याड्से समेत गरटोक में अपनी चौकियां स्थापित कर लीं।चीन ने दशकों से तिब्बत पर अवैध कब्जा कर रखा है। तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के नेतृत्व वाली तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत में शरण लेकर रह रही है। लेकिन, चीन तिब्बत के असल शासकों को उनका राज सौंपने की जगह तिब्बत में लगातार अपना प्रभुत्व बढ़ाता जा रहा है। वहां की संस्कृति और पर्यावरण की चिंता किए बगैर अंधाधुंध इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करता जा रहा है। तिब्बत में चीन की बढ़ती ताकत भारत के लिए भी सामरिक दृष्टिकोण से बेहत खतरनाक हैं।
बांगलादेश के पायरा बंदरगाह पर चीन की नजर
चीन
की
पैनी
नजर
बांग्लादेश
के
पायरा
बंदरगाह
पर
भी
है।
बांग्लादेश
का
पायरा
बंदरगाह
चीन
(
के
कब्जे
में
जा
सकता
है।
दरअसल,
दिसंबर
2016
में
चीन
और
बांग्लादेश
ने
वन
बेल्ट
वन
रोड
(ओबीओआर)
को
लेकर
समझौता
किया
था।
ओबीओआर
को
‘बेल्ट
एंड
रोड
इनिशिएटिव'
(बीआरआई)
के
नाम
से
भी
जाना
जाता
है।
जिसे
चीनी
21वीं
सदी
का
'सिल्क
रूट'
कहते
हैं।
इसका
उद्देश्य
एशियाई
देशों
को
चीन
द्वारा
प्रायोजित
इंफ्रास्ट्रक्चर
प्रोजेक्ट्स
से
जोड़ना
है।
चीन
अपनी
कई
परियोजनाओं
के
अलावा
बांग्लादेश
के
पायरा
बंदरगाह
के
विस्तार
और
विकास
में
अधिक
रुचि
ले
रहा
है।
चीन
की
दो
कंपनियां
चाइना
हार्बर
इंजीनियरिंग
कंपनी
(सीएचईसी)
और
चाइना
स्टेट
कंस्ट्रक्शन
इंजीनियरिंग
कंपनी
(सीएससीईसी)
ने
इस
बंदरगाह
के
मुख्य
ढांचे
के
विकास
और
अन्य
कार्यों
के
लिए
600
मिलियन
अमेरिकी
डॉलर
का
समझौता
किया
है।
इस
निवेश
से
वह
बांग्लादेशी
बंदरहगों
को
अपने
कब्जे
में
लेना
चाहता
है।
बिलकुल
वैसे
ही
जैसे
उसने
श्रीलंका
के
हंबनटोटा
बंदरगाह
को
अपने
कब्जे
में
लिया
है।
चीन
ढाका
में
भी
कुछ
ऐसी
ही
रणनीति
अपनाए
हुए
हैं।
अगर
पायरा
बंदरगाह
की
बात
करें
तो
यह
बांग्लादेश
के
लिए
रणनीतिक
रूप
से
बेहद
जरूरी
है।
जो
पटुआखली
में
स्थित
है।
ये
बंदरगाह
बंगाल
की
खाड़ी
के
तट
पर
है।
वह
इसपर
कब्जे
से
समुद्री
जाल
बिछाना
चाहता
है।
चीन की नेपाल पर अब हैं नजर
गौरतलब
हैं
कि
भारत
का
दो
दिवसीय
दौरा
पूरा
करने
के
बाद
चीन
के
राष्ट्रपति
शी
चिनफिंग
शनिवार
को
महाबलीपुरम
से
सीधे
काठमांडू
पहुंचे
थे।
23
साल
के
बाद
कोई
चीन
का
राष्ट्रपति
नेपाल
के
दौरे
पर
है
तो
इसके
कुछ
मायने
हैं।नेपाल
और
भारत
के
बीच
संबंध
हमेशा
से
अच्छे
रहे
हैं।
दोनों
देशों
के
बीच
पारिवारिक,
सांस्कृतिक,
धार्मिक
संबंधों
को
कैसे
खत्म
किया
जाए
चीन
इसकी
फिराक
में
लगा
हुआ
हैं।
उसके
लिए
चीन
दोनों
देशों
के
बीच
खुली
सीमाओं
को
बंद
करने
और
पासपोर्ट
लागू
करने
का
प्रयास
कर
रहा
है।इसके
लिए
नेपाल
को
मनाने
के
लिए
उसने
हाल
के
वर्षों
में
वहां
भारी
निवेश
किया
है।
वह
नेपाल
में
कई
परियोजनाओं
पर
काम
कर
रहा
है।
इसमें
बुनियादी
ढांचों
सी
जुड़ी
परियोजनाएं
सबसे
ज़्यादा
हैं,
जैसे
एयरपोर्ट,
रोड,
अस्पताल,
कॉलेज,
मॉल्स
रेलवे
लाइन।
यानी
अपनी
कई
जरूरतों
के
लिए
भारत
पर
निर्भर
रहने
वाले
नेपाल
को
चीन
भारत
का
विकल्प
मुहैया
करा
रहा
है।
भारत
से
लगी
सीमाओं
तक
अपनी
पहुंच
बनाने
के
लिए
चीन
नेपाल
में
रेल
और
सड़क
विस्तार
करने
जा
रहा
है।
चीन
के
केरुंग
से
काठमांडू
तक
रेलवे
ट्रैक
के
निर्माण
में
वह
बहुत
अधिक
दिलचस्पी
दिखा
रहा
है।
चीन
की
योजना
है
कि
इस
रेल
विस्तार
को
लुंबिनी
तक
पहुंचाया
जाए।हिंदू
बहुल
देश
नेपाल
में
चीन
का
दिलचस्पी
लेना
काफी
अहम
है।
चीन
ने
साल
2017
में
नेपाल
के
साथ
अपनी
वन
बेल्ट
वन
रोड
परियोजना
के
लिए
द्विपक्षीय
सहयोग
पर
समझौता
किया
था।
माना
जा
रहा
है
कि
इस
दौरान
इस
परियोजना
पर
नेपाल
और
चीन
के
बीच
बातचीत
होगी।
नेपाल
को
इस
परियोजना
में
शामिल
हुए
दो
साल
हो
चुके
हैं,
लेकिन
अभी
तक
उसने
इस
परियोजना
के
तहत
कोई
कार्य
शुरू
नहीं
किया
है।