ISWOTY- मंजू रानीः वो मुक्केबाज़ जिनके पास दस्ताने ख़रीदने तक के पैसे नहीं थे
हरियाणा की बॉक्सर मंजू रानी ने मैरी कॉम के ओलंपिक में पदक जीतने के बाद बॉक्सिंग दस्ताने पहने थे. मंजू ने आगे चलकर नैशनल और इंटरनैशनल स्तर पर अपने पहले ही मुक़ाबले में मेडल जीते.
मुक्केबाज़ मंजू रानी ने साबित किया है कि जब लक्ष्य श्रेष्ठता हासिल करना हो तो कामयाबी मिलना तय होता है.
जब वो छोटी थीं तो पूरी शिद्दत से खेलना चाहती थीं. इससे बहुत ज़्यादा मतलब उन्हें नहीं था कि वो कौन सा खेल खेलेंगी.
हरियाणा के रोहतक ज़िले के रिठल फोगट गाँव में लड़कियाँ कबड्डी का अभ्यास करती थीं. तो वो कबड्डी खेलने लगीं.
उन्हें लगता था कि उनमें कबड्डी में कामयाब होने के लिए ज़रूरी तेज़ी और ताक़त है. वे कुछ दिन कबड्डी खेलीं. अखाड़े में अच्छा प्रदर्शन भी किया. लेकिन किस्मत को कुछ और ही करना था.
कबड्डी से बॉक्सिंग में कैसे आईं?
रानी ने कबड्डी के मैदान में अपना दमखम दिखा दिया था लेकिन उनके कोच साहब सिंह नरवाल को लगता था कि अगर ये जोशीली लड़की किसी व्यक्तिगत खेल में जाएगी तो और भी बेहतर करेगी. हालाँकि उन्होंने उसके लिए रास्ता नहीं चुना था.
2012 में लंदन ओलंपिक खेलों में मैरी कॉम को कांस्य पदक जीतते हुए देखकर मंजू रानी ने स्वयं ही तय कर लिया था कि वो मुक्केबाज़ी की ट्रेनिंग लेंगी. मैरी कॉम की जीत के बाद पूरे भारत में जश्न मना था.
मैरी कॉम से मिली प्रेरणा और कोच से मिले मार्गदर्शन के बाद मंजू रानी ने बॉक्सिंग रिंग में उतरने का फ़ैसला कर लिया.
बॉक्सिंग में आने का फ़ैसला करना तो आसान था लेकिन इसके प्रशिक्षण के लिए संसाधन जुटाना एक मुश्किल काम था.
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) में तैनात उनके पिता की साल 2010 में ही मौत हो गई थी. रानी और उनके छह-भाई बहनों का पालन-पोषण पिता की पेंशन से ही होना था.
उनकी माँ के लिए घर चलाना और अपनी युवा बेटी की ट्रेनिंग और खानपान के लिए संसाधन जुटाना बड़ी चुनौती बन गया था.
उन दिनों अच्छी डाइट और पेशेवर ट्रेनिंग की बात तो दूर, रानी के लिए तो एक जोड़ी बॉक्सिंग दस्ताने ख़रीदना ही मुश्किल था.
उनके कबड्डी कोच ने न सिर्फ़ उन्हें मानसिक तौर पर मज़बूत किया बल्कि उनके पहले बॉक्सिंग कोच की भूमिका भी अदा की. रानी ने अपने गाँव के मैदान में ही बॉक्सिंग का अभ्यास शुरू किया था.
और फिर शुरू हुआ स्वर्णिम सफर
रानी के परिवार के पास भले ही संसाधन कम थे लेकिन उन्होंने हमेशा उनका हौसला बनाए रखा और हर परिस्थिति में साथ खड़े रहे. सीमित संसाधनों और ज़बरदस्त हौसले के साथ खेल रहीं रानी ने 2019 में पहली बार सीनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में शामिल हुई और इस पहले प्रयास में ही गोल्ड मेडल भी जीत लिया.
ऐसा लगा कि ये युवा खिलाड़ी अपने डेब्यू को भव्य बनाना जानती हों. इसी वर्ष रूस में हुई एआईबीए वर्ल्ड विमेन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्होंने रजत पदक अपने नाम कर लिया. फिर बुल्गारिया में हुई स्त्रांजा मेमोरियल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में उन्होंने रजत पदक अपने नाम किया.
शुरुआती कामयाबियों ने उनमें जोश भर दिया है और अब वो 2024 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के लक्ष्य के साथ तैयारियाँ कर रही हैं.
रानी मानती हैं कि यदि भारत में महिलाओं को खेल में कामयाब करियर बनाना है तो उसके लिए परिवार का सहयोग सबसे ज़रूरी है. अपने अनुभवों के आधार पर वे कहती हैं कि किसी भी परिवार को किसी भी परिस्थिति में एक लड़की को आगे बढ़ने से नहीं रोकना चाहिए.
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