BJP Foundation Day: 1989 में वाजपेयी को क्यों नहीं दिया गया था लोकसभा का टिकट?
नई दिल्ली, 06 अप्रैल। भारतीय जनता पार्टी का शून्य से शिखर पर पहुंचना, भारतीय राजनीति की एक ऐतिहासिक घटना है। 137 साल पुरानी कांग्रेस के बाद भाजपा ही वह दल है जिसे अकेले बहुमत (2014) प्राप्त हुआ। 1977 में जनता पार्टी जरूर जीती थी लेकिन इसका गठन कई दलों के मिलने से हुआ था। जनता पार्टी में सबसे बड़ा घटक दल जनसंघ (भाजपा का पूर्ववर्ती रूप) था।
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भाजपा ने पहली बार 1984 के लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमायी थी। 1980 में भाजपा का गठन तो हुआ था। लेकिन इसके गठन के चार महीना पहले ही लोकसभा का चुनाव सम्पन्न हो गया था। 1980 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ के नेताओं ने जनता पार्टी के बैनर पर ही चुनाव लड़ा था। 1980 में अटलबिहारी वाजपेयी जनता पार्टी के टिकट पर नयी दिल्ली सीट से सांसद बने थे। 6 अप्रैल 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ तो वाजपेयी जी ही इसके पहले अध्यक्ष बने थे।
1980 के लोकसभा चुनाव में क्या रूप था भाजपा का ?
1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी विखंडित हो गयी थी। चरण सिंह के गुट ने जनता पार्टी सेक्यूलर के नाम से चुनाव लड़ा था। मूल जनता पार्टी में मोरारजी गुट, जगजीवन गुट और जनसंघ ही बचे थे। 3 जनवरी से 6 जनवरी 1980 के बीच चुनाव हुआ था। जनता पार्टी को 31 सीटें मिलीं थीं। जनता पार्टी सेक्यूलर को 41 सीटें मिलीं थीं। जनता पार्टी के जो 31 सांसद चुने गये थे उनमें 16 जनसंघ के नेता थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने नयी दिल्ली से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उन्होंने कांग्रेस के सीएम स्टीफन को करीब पांच हजार वोटों से हराया था। चुनाव के बाद जनता पार्टी में फिर दोहरी सदस्यता का विवाद शुरू हो गया। सुरेन्द्र मोहन और कृष्णकांत जैसे समाजवादी धारा के नेताओं ने अपनी हार के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहरा दिया। जनता पार्टी के नेता कहने लगे कि भाजपा का कोई नेता आरएसएस से संबंध नहीं रख सकता। वह एक साथ भाजपा और आरएसएस का मेम्बर नहीं हो सकता। 1979 में दोहरी सदस्यता के विवाद ने ही मोरारजी देसाई को कुर्सी छोड़ने पर मजबूर किया था। 1980 में जब यह विवाद फिर उठा तो जनसंघ के आधार वाले 16 सांसदों ने अलग पार्टी बनाने का फैसला किया। ये नेता संघ के खिलाफ प्रोपोगेंडा से नाराज थे। आखिरकार 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ।
1989 में अटल बिहारी वाजपेयी ने क्यों नहीं लड़ा था चुनाव ?
1980 में अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के अध्यक्ष बने। राजमाता विजयाराजे सिंधिया और रामजेठमलानी को उपाध्यक्ष बनाया गया। लालकृष्ण आडवाणी और सिकंदर बख्त को महासचिव बनाया गया। लालकृष्ण आडवाणी उस समय राज्यसभा के सदस्य थे। वे 1970 से 1989 तक लगातार चार बार राज्यसभा सांसद चुने गये थे। आडवाणी ने पहली बार 1989 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय नेता को 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का टिकट नहीं मिला था। उस समय इस बात की चर्चा उड़ी थी कि आडवाणी गुट ने वाजपेयी जी को किनारे लगाने की नीयत से ऐसा किया था। 1986 में लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के अध्यक्ष बने थे। उनके नेतृत्व में हिंदुत्व की प्रेरक शक्ति से भाजपा आगे बढ़ने लगी। राममंदिर आंदोलन ने भाजपा को नयी शक्ति दी। 1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा 1989 में 86 पर पहुंच गयी। इस कामयाबी को लालकृष्ण आडवाणी से जोड़ कर देखा गया। 1980 में वाजपेयी जिस नयी दिल्ली सीट से जीते थे, 1989 में आडवाणी ने वहीं से पहली बार चुनाव लड़ा। वे जीते भी। कहा जाता है कि 1989 में जानबूझ कर वाजपेयी जी को टिकट नहीं दिया गया था।
वाजपेयी बनाम आडवाणी
लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता इस आरोप को लगत मानते हैं। 1984 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद वाजपेयी जी को 1986 में गुजरात से राज्यसभा में भेजा गया था। चूंकि वे राज्यसभा के सदस्य थे इसलिए उन्हें लोकसभा चुनाव में नहीं उतारा गया था। वे पहले से सांसद थे। अगर वे लोकसभा चुनाव में खड़ा होते और जीत जाते तो एक सदन की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ता। इससे राज्यसभा में भाजपा की एक सीट कम हो जाती। खैर ये विवाद आगे नहीं बढ़ा। लालकृष्ण आडवाणी और अटलबिहारी वाजपेयी की दोस्ती इतनी पक्की थी कि उसमें किसी स्वार्थ की कोई गुंजाइश नहीं थी। पार्टी बनने के 16 साल बाद जब भाजपा को पहली बार सरकार बनाने का अवसर मिला तो अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधानमंत्री बने थे।
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