#BBCRiverStories: बिहार की राजनीति में कितनी अहम है जाति?
सबसे पहले टीम पहुंची बिहार के लक्ष्मणपुर बाथे गांव जहां बिहार के इतिहास का शायद सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था. यहां कथित ऊंची जाति के लोगों ने 58 दलितों को बेरहमी से मार दिया था. इस नरसंहार में मारे गए लोगों के परिवार वाले आज भी वो दिन याद करके सिहर जाते हैं. लेकिन इस मामले में किसी भी शख़्स को सज़ा नहीं मिली. इस बात का गुस्सा पीड़ित परिवारों में है.
बिहार की राजनीति में जाति कितनी अहम है, इसी बात की पड़ताल के लिए बीबीसी हिन्दी की टीम मशहूर यूट्यूबर ध्रुव राठी के साथ पटना पहुंची.
सबसे पहले टीम पहुंची बिहार के लक्ष्मणपुर बाथे गांव जहां बिहार के इतिहास का शायद सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था. यहां कथित ऊंची जाति के लोगों ने 58 दलितों को बेरहमी से मार दिया था. इस नरसंहार में मारे गए लोगों के परिवार वाले आज भी वो दिन याद करके सिहर जाते हैं. लेकिन इस मामले में किसी भी शख़्स को सज़ा नहीं मिली. इस बात का गुस्सा पीड़ित परिवारों में है.
जातीय भेदभाव और जाति आधारित राजनीति को लेकर एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर दिवाकर कहते हैं, ''जब ज़मींदारी उन्मूलन के बाद भी ज़मीनें नहीं मिलीं और लोगों को लगने लगा कि उनका हक़ मारा जा रहा, वहां से निचली और निम्न मध्य जाति के लोग इकट्ठा हुआ और अपने हक़ के लिए लड़ने लगे. वहां से जातीय गोलबंदी शुरू हुई और ऊंची जाति के लोग ख़ासकर ज़मींदार भी इसी दौरान एकजुट होने लगे. उन्होंने आंदोलनों को दबाने की कोशिश की. इसी वजह से जातीय भेदभाव बढ़ा.''
इन घटनाओं के बाद जाति की राजनीति ने जोर पकड़ा. चुनाव प्रचार से लेकर टिकट देने तक जाति की भूमिका काफ़ी अहम होती गई.
बिहार के आम लोग जातीय भेदभाव और राजनीति में जाति की भूमिका पर काफ़ी हद तक सहमत हैं. हालांकि लोगों का कहना है कि अगर किसी एक जाति के लोग उन्हें दबाने की कोशिश करेंगे तो उन्हें भी जातिय एकजुटता लानी पड़ेगी.
लेकिन जाति का ये मुद्दा सिर्फ़ राजनीति में ही नहीं सोशल मीडिया पर भी खूब छाया है.