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BBC SPECIAL: प्रणब मुखर्जी की मौजूदगी और संघ की कार्यशैली को समझें

भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी महोदय आगामी दिनों में नागपुर मे संघ के एक माह के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह मे मुख्य अतिथि के नाते संघ के मंच पर उपस्थित रहेंगे.

इस समाचार से मीडिया क्षेत्र में काफ़ी हलचल है, उस हलचल में दलीय राजनीति के गर्द-गुबार के कारण संघ की कार्यशैली के कई पहलू सामने नहीं आ रहे हैं.

By BBC News हिन्दी
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प्रणब मुखर्जी
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प्रणब मुखर्जी

भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी महोदय आगामी दिनों में नागपुर मे संघ के एक माह के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह मे मुख्य अतिथि के नाते संघ के मंच पर उपस्थित रहेंगे.

इस समाचार से मीडिया क्षेत्र में काफ़ी हलचल है, उस हलचल में दलीय राजनीति के गर्द-गुबार के कारण संघ की कार्यशैली के कई पहलू सामने नहीं आ रहे हैं.

वैसे तो बड़े-बड़े कई राजनैतिक नेता विभिन्न अवसरों पर संघ के शिविर में, संघ के मंच पर, और अनौपचारिक विचार-विमर्श हेतु संघ के लोगों से मिलते रहे हैं परंतु प्रणब दा के जाने की ख़बर कुछ ज़्यादा ही चर्चा में रही है.

प्रणब मुखर्जी की नागपुर यात्रा

एक मीडियाकर्मी ने तो बताया कि अटकलबाज़ी चल रही है कि आवश्यकता पड़ने पर संघ के लोग प्रणव मुखर्जी का नाम सत्ताशीर्ष के लिए सुझा सकते हैं, जबकि ये बात पूर्णतः निराधार है.

मोहन भागवत
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मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विस्तार का पहला क़दम है नवीन संपर्क यानी नये लोगों से संपर्क करना. उनका स्वभाव, प्रकृति और संघ के बारे में उनकी क्या जानकारी है ये सब जान-समझकर संघ के कार्य के बारे में उनसे संवाद स्थापित करना.

आत्मीयता और आदरपूर्वक संघ के स्वयंसेवक नए व्यक्ति को संघ से परिचित कराते हैं. प्रश्नों का, जिज्ञासाओं का उत्तर देते हैं, उत्तर नहीं सूझने पर अपने अधिकारी से बातचीत कराने का वादा करते हैं और फिर संपर्क, संवाद जारी रहता है.

'पूरा समाज है स्वयंसेवक'

संघ की मान्यता है कि संभावनाओं के तहत संपूर्ण समाज के सभी लोग स्वयंसेवक हैं, इनमें से कुछ आज के हैं, और कुछ आने वाले कल के.

नवीन संपर्क से शुरू होकर समर्थक, कभी कार्यक्रमों में आने-जाने वाले, फिर रोज़ शाखा में कुछ दायित्व लेने वाले, तत्पश्चात और नए लोगों से संपर्क कर, उन्हें शाखा में लाकर, स्वयंसेवक बनानेवाले बनते हैं, सामान्यतः हरेक का यह विकास क्रम होता है. जिसकी धुरी है संघ की शाखा.

उसमें एक घंटे मैदान में शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक संस्कार दिया जाता है, स्वयंसेवक शेष 23 घंटे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक तीनों पहलुओं में संतुलन बैठाता हुआ जीवन जीता है.

समाज के अनेक क्षेत्रों में बदलाव का भी हिस्सा बनता है चाहे वो शिक्षा, सेवा, प्रबोधन, राजनीति या अन्तिम व्यक्ति के हक़ और हित में किसी भी तरह से चल रहे रचनात्मक अथवा आंदोलनात्मक प्रयास हों.

हर स्वयंसेवक वर्ष में कम से कम 5-7 नए लोगों को संघ के संपर्क में लाने की कोशिश भी करता है. उसमें भी सोच-समझकर प्रभावी लोगों को चिन्हित कर अपने-अपने दायरे में संपर्क करने की कोशिश भी करता है.

संघ के लोग चाहते हैं कि सभी जाति, क्षेत्र, भाषा, संप्रदाय के तबके हों या पढ़े लिखे, अनपढ़, डाक्टर, वक़ील, किसान, मज़दूर हो, सभी तक संघ का कार्य पहुँचे.

स्वयंसेवक का लक्ष्य रहता है, कोशिश रहती है कि संघ कार्य के इस संस्कार अभियान में सभी का समर्थन और सहयोग मिले.

'विरोधियों से दिखाई जाए आत्मीयता'

कोई विरोधी है तो अपनी आत्मीयता के व्यवहार से उसका विरोध कम हो, वो संघ कार्य को नज़दीक आकर देख सके, उसका भ्रम मिटे.

जो तटस्थ हैं, अपने संपर्क, संबंधो से वो अनुकूल बने, जो अनुकूल बने वो शाखा में दिखे, जो शाखा पर दिखे वो सक्रिय होकर शाखा का विस्तार करे और समाज के लिए एक जागरुक नागरिक की भूमिका भी निभाए. यह अपेक्षा रहती है.

प्रणब मुखर्जी के संदर्भ में सार्वजनिक जगत में आज जो चर्चा चल रही है, उसके पीछे हरेक घटना या उपक्रम के पीछे राजनीति देखने की मीडिया दृष्टि भी एक कारण है.

संघ
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ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत से व्यक्ति शाखा में लाए गए हैं. उदाहरण हैं लोकनायक जयप्रकाश नारायण, संघ के कार्य का उनका पहला संपर्क सन 1967 में बिहार के अकाल में कार्यरत स्वयंसेवको के माध्यम से हुआ था.

उस समय बिहार, नवादा ज़िला के पकड़ी बरांवां प्रखंड में अकाल पीड़ितों की सहायता में लगे स्वयंसेवको के प्रकल्प को देखने के लिए जयप्रकाश जी आए थे.

सभी सेवा कर्म स्वैच्छिक हैं, किसी को कोई वेतन नहीं है, सभी पढ़े-लिखे भी हैं, अपने मन से 15-15 दिन का समय लगा रहे है, इस तथ्य ने जयप्रकाश नारायण को प्रभावित किया था.

'जनसंघ फासिस्ट तो मैं भी फासिस्ट'

उन्होंने मीडिया में टिप्पणी भी की कि संघ के स्वयंसेवको की देशभक्ति किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं है.

कालांतर में वे संघ समर्थित छात्र आंदोलन में शामिल हुए. आंदोलन का नेतृत्व भी किया. जेपी आंदोलन के दौरान जनसंघ के अधिवेशन में जयप्रकाश नारायण ने कहा कि अगर जनसंघ फ़ासिस्ट है तो मैं भी फ़ासिस्ट हूँ.

सन 1978 में जनता पार्टी के शासन के दौरान जयप्रकाश जी ने संघ के पटना में आयोजित प्राथमिक शिक्षा वर्ग को संबोधित किया था.

इसी प्रकार कन्याकुमारी में विवेकानंद सेवा स्मारक के निर्माण में जिनकी विशेष भूमिका रही वे एकनाथ रानाडे संघ के ही स्वयंसेवक थे. और उन्हें कांग्रेस, कम्युनिस्ट आदि सभी पार्टी की सरकारों के ओर से भी सहयोग प्राप्त हुआ.

सभी ने एकनाथ जी को अपना माना.

संघ के ही स्वयंसेवक रज्जु भैया (जो बाद में संघप्रमुख भी बने) के प्रति उतर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्त की आत्मीयता सर्वविदित है.

'मुझे गर्व है कि मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं'

प्रणब दा ने गंगा को दिलाया राष्ट्रीय नदी का दर्जा

उसी प्रकार नानाजी देशमुख का कांग्रेस समेत कई दलों के प्रमुखों के घरों के अंदर भी प्रवेश था और वे लोग नानाजी को अपने घर का ही मानते थे.

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रोज़ टहलने जाने वाले केरल में कम्युनिस्ट नेता श्री अचुय्त मेनन हो या दिल्ली में सुबह टहल रहे नार्थ एवेन्यू में प्रणब दा हो या फिर अशोक रोड पर टहल रहे कांग्रेस के महासचिव केएन सिंह हों, उसी समय सुबह की शाखा के लिए हाफ़ पैंट में जा रहे स्वयंसेवक, इन श्रेष्ठ लोगों को सिर झुका कर प्रणाम करने में नहीं चूकते थे.

ये प्रणब दा ही हैं जिनके प्रबल संपर्क से आडवाणी जी, खंडूरी जी, श्री हरीश रावत, श्री अजित जोगी, डाक्टर मनमोहन सिंह एवं उनका परिवार, श्री जयराम रमेश, उमा भारती जी के सहयोग से गंगा मइया को राष्ट्रीय नदी के दर्जे से विभूषित किया जा सका.

दलीय सीमाओं से परे हटकर देश समाज के लिए परस्पर सहयोग करने की भारतीय परंपरा बहुत गहरी है. चुनावी राजनीति के लटके-झटकों, दाव-पेंच, मर्यादा उल्लंघन से भारत की शालीनता को खरोंच आती है.

आरएसएस के कार्यक्रम में क्यों जा रहे हैं प्रणब मुखर्जी

जो एक बार स्वयंसेवक बना, हमेशा के लिए हो गया

संघ की कार्यशैली के बारे में एक वरिष्ठ स्वयंसेवक प्रो. यशवंत राव केलकर कुछ नुस्ख़े बताया करते थे. जैसे हर धातु तो पिघलती ही है, कोई धातु ऐसी नहीं जो ना पिघले. केवल उसके लिए जितना आवश्यक है उतना ताप दिया जाए.

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अगर कोई धातु नहीं पिघलती तो उसका दोष नहीं है, जो पिघलाने गया उसमें ताप और तापक्रम कम है. इसलिए धातु पिघलती नहीं है.

ऐसे में अपना ताप और तापक्रम बढ़ाने के लिए स्वयंसेवक को साधना बढ़ानी चाहिए.

धातु से तात्पर्य है नया व्यक्ति. वो कहा भी करते थे कि पूरा समाज एक है. सभी स्वयंसेवक हैं. कुछ आज शाखा जाने वाले है कुछ आनेवाले कल में. इसलिए सबके प्रति नि:स्वार्थ स्नेह ही अभीष्ट है.

फिर कहा गया था कि कोई एक बार शाखा आया, स्वयंसेवक बना तो जीवन भर के लिए स्वयंसेवक है, उससे वैसे ही संस्कार, व्यवहार की अपेक्षा है.

इस अर्थ में, इस हिसाब से संघ के कार्य में प्रवेश हमेशा और बहिर्गमन निषेध की स्वभाविक स्थिति बनी रहती है.

प्रणब मुखर्जी या जयप्रकाश नारायण जी के समान समय-समय पर देश में प्रति वर्ष हज़ारों नए लोग गुरुपूर्णिमा कार्यक्रम या संघ के प्रचलित 6 उत्सवों या वार्षिक उत्सवों मे शामिल होते रहते हैं.

संघ के स्वयंसेवक अपनी क्षमता और संपर्क परिधि के अनुसार नए लोगों से मिलते हैं उनके घर जाते और विश्वास जीतते हैं.

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आज लगभग देश में 50 हज़ार से ज़्यादा शाखाएँ हैं. रोज़ शाखा जाने वाले लाखों है. कई करोड़ जन देश में और दुनिया में संघ कार्य की परिधि में हैं. यह संघ की 90 वर्ष से अधिक की निस्वार्थ स्नेह पर आधारित कार्यपद्धति का यह सहज परिणाम है.

जनता में अधिक प्रसिद्ध और एक विशिष्ट पद पर रहने के कारण प्रणब दा का नागपुर जाना विशेष चर्चा का विषय बना है.

इस शोर-गुल के बीच निस्वार्थ स्नेह पर आधारित नित्य सिद्ध शक्ति खड़ी होने में संघ संस्थापक डाक्टर हेडगेवार की गढ़ी हुई सर्वजन सुलभ, अचूक, कार्यपद्धति की ओर ध्यान जाना उपयोगी होगा.

आज लाखों अनाम स्वयंसेवक लाखों प्रकल्पों को खड़ा करने में शांत मन से इसी कारण जुटे हैं.

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English summary
BBC SPECIAL Understand the presence of Pranab Mukherjee and the functioning of the Sangh
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