क्या अब भी बची हुई हैं कमलनाथ सरकार के बचने की संभावनाएं?
नई दिल्ली- मध्य प्रदेश इस वक्त गंभीर राजनीतिक और संवैधानिक संकट से गुजर रहा है। राज्यपाल के निर्देशों के मुताबिक सोमवार को राज्य विधानसभा में विश्वास मत पर वोटिंग नहीं हो पाया। विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस सरकार को कोरोना वायरस के नाम पर 10 दिन का जीवनदान देकर बहुत बड़ा सियासी दांव खेला है, लेकिन क्या इससे वो कमलनाथ सरकार को बचाने में सफल हो पाएंगे? आइए जानते हैं कि मध्य प्रदेश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति के बारे में संविधान क्या कहता है? क्योंकि, स्पीकर के फैसले के चलते गेंद राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के पाले में जा चुका है। राज्यपाल ने भी अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने की बात कही है और सुप्रीम कोर्ट में भी मंगलवार को इसपर सुनवाई होने वाली है।
क्या स्पीकर गवर्नर के निर्देशों का उल्लंघन कर सकते हैं ?
संविधान के मुताबिक राज्य सरकार विधानसभा के प्रति जवाबदेह होती है। एक सरकार तभी तक अस्तित्व में रह सकती है, जबतक कि उसे विधानसभा में बहुमत हासिल हो। संवैधानिक तौर पर अल्पमत सरकार को एक पल भी सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है, जबतक कि ऐसा करने के लिए (काम चलाऊ) राज्यपाल की ओर से उसे कहा न जाए। मध्य प्रदेश की राजनीति में सोमवार को यही सवाल खड़ा हुआ है। प्रदेश के राज्यपाल ने राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ को 16 मार्च यानि सोमवार को बहुत साबित करने का स्पष्ट निर्देश दिया था और संवैधानिक तौर पर सीएम कमलनाथ इसके लिए बाध्य थे। लेकिन, स्पीकर एनपी प्रजापति ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से ये जिम्मेदारी पूरा करवाए बिना ही सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। सवाल उठता है कि क्या स्पीकर को बहुमत परीक्षण के राज्यपाल के निर्देशों के उल्लंघन का अधिकार है ?
क्या कहता है संविधान ?
संविधान का आर्टिकल-175 में राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह सरकार यानि मुख्यमंत्री या विधानसभा स्पीकर को निर्देश या संदेश भेज सकता है। इसी अधिकार के तहत मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ से सोमवार को बहुमत साबित करने को कहा था। यह ऐसी व्यवस्था है जो हर बार नई सरकार बनने पर राज्यपाल देता है और सरकार के लिए उस फ्लोर टेस्ट से गुजरना संवैधानिक तौर पर अनिवार्य है। यही नहीं, जब भी राज्यपाल को लगता है कि सरकार के बहुमत में संदेह है तो वह उससे सदन में बहुमत साबित करने को कह सकता है। राज्यपाल ने निर्देश दिया था कि फ्लोर टेस्ट को टाला नहीं जा सकता या सोमवार से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। लेकिन, सोमवार को जब मध्य प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र शुरू हुआ तो सदन की कार्यवाही की लिस्ट में विश्वास मत का जिक्र तक नहीं था। स्पीकर एनपी प्रजापति ने कहा कि कोरोना वायरस बहुमत साबित करने से ज्यादा बड़ा मुद्दा है। साफ कहें तो राज्यपाल के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन हो चुका है।
'आपके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करूंगा'
सोमवार को सदन में राज्यपाल ने एक छोटा सा अभिभाषण भी दिया था, जिसमें उन्होंने सदन के सदस्यों, सरकार और स्पीकर को भी संविधान के मूल्यों और परंपराओं के पालन करने का संदेश दिया। उनका संदेश स्पष्ट तौर पर सीएम कमलनाथ को विश्वास मत प्राप्त करने को दिए गए निर्देश को लेकर था। लेकिन, स्पीकर ने यह भी दलील दी है कि फ्लोर टेस्ट के संबंध में राज्यपाल से उन्हें कोई संदेश नहीं मिला है। जाहिर है कि ऐसा करके स्पीकर ने कमलनाथ सरकार पर छाए संकट के बादल को कुछ दिनों के लिए टालने की कोशिश की है। स्पीकर के इस फैसले के खिलाफ भाजपा ने राजभवन में भी गुहार लगाई है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी के 106 विधायकों का गवर्नर के सामने परेड कराया है और संविधान की रक्षा की दुहाई दी है। जानकारी के मुताबिक इसपर राज्यपाल लालजी टंडन ने भाजपा विधायकों को भरोसा दिया है कि 'यदि मैंने निर्देश दिया है तो इसे पालन कराने की जिम्मेदारी भी मेरी है। मैं आपके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करूंगा।'
राज्यपाल के पास क्या हैं विकल्प ?
विश्वास मत हासिल करने की मुकर्रर की हुई तारीख के उल्लंघन के बाद राज्यपाल के पास संवैधानिक तौर पर दो विकल्प बचे हुए हैं। या तो वह एकबार फिर से मुख्यमंत्री कमलनाथ को किसी निश्चित तारीख से पहले बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं। या तो वह राज्य में संवैधानिक व्यस्था ठप पड़ने की रिपोर्ट केंद्रीय गृहमंत्रालय को भेजकर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं। या फिर वो मंगलवार तक इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के रुख का इंतजार कर सकते हैं। क्योंकि, भाजपा मध्य प्रदेश सरकार के अल्पमत में होने के दावे के साथ फ्लोर टेस्ट की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है। भाजपा का दावा है कि कांग्रेस सरकार सदन का विश्वास खो चुकी है, इसीलिए उसके पास एक पल भी सरकार में बने रहने का अधिकार नहीं है। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह विधानसभा स्पीकर को तत्काल फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दे।
कबतक बचेगी कमलनाथ सरकार ?
बता दें कि मध्य प्रदेश विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 230 है, जिनमें से दो सीटें अभी खाली हैं। इसके तहत बहुमत का जादुई आंकड़ा घटकर 228 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ 115 का रह गया। कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है, जिसके चलते सारा संकट खड़ा हुआ है। इन 22 में से 6 विधायक मंत्री थे, जिनका इस्तीफा स्पीकर ने स्वीकार कर लिया है। लेकिन, 16 बागियों का इस्तीफा अभी नहीं लिया गया है, क्योंकि स्पीकर उन्हें खुद अपने सामने पेश होने के लिए कह चुके हैं, जबकि वे बेंगलुरु में आराम कर रहे हैं। यानि अगर 16 बागियों को कांग्रेस के साथ जोड़ लें तो सदन में बहुमत का आंकड़ा 112 का होता है। तब कमलनाथ सरकार पर कोई संकट नहीं है। लेकिन अगर इन विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाता है या वो विश्वास मत से गायब रहते हैं तो बहुमत का जादुई आंकड़ा सिर्फ 104 का रह जाएगा और कमलनाथ सरकार का गिरना निश्चित है। कुल मिलाकर अब नजरें सुप्रीम कोर्ट पर ही टिकी हैं कि मंगलवार को वह क्या आदेश देता है। क्या कमलनाथ सरकार को महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की तरह फौरन बहुमत साबित करना पड़ता है या उनकी सरकार राज्यपाल के निर्देशों के तहत तय समय पर फ्लोर टेस्ट नहीं कराने के लिए असंवैधानिक घोषित होती है?
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