Indian Railways: भाप इंजन के बाद जल्द डीजल इंजन भी इतिहास बन जाएंगे, जानिए क्यों?
बेंगलुरू। भारतीय रेलवे एक बार फिर इतिहास बदलने के कगार पर है और अगले पांच वर्षों के भीतर रेलवे मार्गों को इलेक्ट्रीफाइड करने की योजना तैयार की गई है। इसकी आधिकारिक रूप से घोषणा करते हुए रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारतीय रेलवे आगामी 4-5 वर्षों में 100 फीसदी विद्युत चालित नेटवर्क में तब्दील हो जाएगी।
माना जा रहा है कि भारतीय रेल नेटवर्क के 100 फीसदी इलेक्ट्रीफाइड होते ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा विद्युत संचालित रेल नेटवर्क में शुमार हो जाएगा। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने आठवें विश्व ऊर्जा नीति सम्मेलन में आधिकारिक घोषणा के दौरान बताया कि भारतीय रेल अपने पूरे नेटवर्क के विद्युतीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा है और इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है।
गौरतलब है मौजूदा वक्त में भारतीय रेल के करीब 55 फीसदी नेटवर्क का विद्युतीकरण हो चुका है और उम्मीद जताई गई है कि शेष 45 फीसदी रेल नेटवर्क के विद्युतीकरण में चार-पांच वर्ष का समय लग सकता है। इसकी तैयारी भी सरकार ने अभी से शुरू कर दी गई है।
विश्व ऊर्जा नीति सम्मेलन में चर्चा के दौरान रेल मंत्री ने खुलासा किया कि सरकार ने लक्ष्य को अमलीजामा पहनाने के लिए देश में ऊर्जा क्षेत्र में निवेश प्रोत्साहित करने के लिए कई पहल शुरू किए गए हैं। इसी के तहत ही सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र में नए निवेशकों को प्रोत्साहित करने के लिए 15 फीसदी की निम्न आयकर दर का प्रस्ताव किया है।
रेलवे नेटवर्क के 100 फीसदी में बदलने और उसके लिए जरूरी ऊर्जा लक्ष्यों की पूर्ति के लिए रेलवे वर्ष 2030 तक 20 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन में निवेश करने की योजना तैयार की है। रेल मंत्री के मुताबिक भारत ऊर्जा के उपयोग में बदलाव के लिए पूरी तरह से तैयार है।
बकौल पीयूष गोयल, भारत गैर पारंपिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से दुनिया को बेहतर जगह बनाने के वैश्विक प्रयासों में भागीदारी को तैयार है। विश्व में ऊर्जा उत्सर्जन स्तर कम करने की प्रतिबद्धताओं को लेकर भारत बहुत सचेत हैं इसलिए पिछले छह साल में किसी भी पारंपरिक ईंधन वाले नए संयंत्र को मंजूरी नहीं दी गई है।
उल्लेखनीय है वर्ष 1853 में भारत में पहली बार यात्री रेल चलाया गया था। तब भाप के इंजन का इस्तेमाल किया जाता था। 16 अप्रैल 1853 को बोरीबंदर (छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) से ठाणे के बीच चलाई गई पहली यात्री रेल करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर चलाई गई थी। इस ट्रेन को ब्रिटेन से मंगवाए गए तीन भाप के इंजन सुल्तान, सिंधु और साहिब द्वारा खींचा गया था।
भाप इंजन के आविष्कारक जॉर्ज स्टीफेंसन ने 1814 में इसका ईजाद किया था। भाप इंजन फेयरी क्वीन दुनिया में सबसे पुरानी इंजन है, जो अभी भी भारतीय रेल नेटवर्क पर दौड़ती है, जिसे वर्ष 2017 में रेलवे बोर्ड ने दिल्ली कैंट से रेवाड़ी के बीच दोबारा चलाने की मंजूरी दी थी। इस इंजन का निर्माण 1855 में किया गया था।
भारत में पहली बार वर्ष 1920 के आसपास ब्रिटेन से लाई गई डीजल इंजन का इस्तेमाल किया गया था। आजादी के बाद वर्ष 1950 के आसपास भारत में पहली बार इंजन निर्माण का काम शुरू हुआ। इस दौरान डीजल इंजन के कास्टिंग पार्ट्स जैसे बॉडी, ब्लॉक और हेड बनाए गए।
वर्ष 1955 के आसपास में भारत में पहला "ओपन जाली" क्रैंकशाफ्ट डीजल इंजन निर्मित किया गया था और वर्ष 1962 तक आते-आते भारत में पहला डीजल इंजन पूर्व स्वदेशी तकनीक से विकसित करने में सफलता मिल गई, लेकिन अब डीजल इंजन भी इतिहास बनने की कगार पर है।
अगस्त, 2019 में रेलवे में 31 वर्ष से अधिक पुराने 300 डीजल इंजनों को तत्काल प्रभाव से प्रचालन से बाहर करने का निर्णय लिया। डीजल इंजन को बाहर का रास्ता दिखाने के पीछे की वास्तविक वजह पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों में कमी लाना और प्रदूषण को कम करना है, क्योंकि इलेक्ट्रिक इंजन की तुलना में डीजल न केवल अधिक ईंधन पीती थीं बल्कि उनसे प्रदूषण अधिक होता है।
वर्तमान में रेलवे के पास लगभग 12 हजारइंजन हैं। इसमें 6.5 हजार डीजल इंजन और 5.5 हजार इलेक्टि्रक इंजन हैं। वर्ष 2022 तक सभी रूटों के सौ फीसदी विद्युतीकरण के लक्ष्य के तहत डीजल इंजनों की संख्या को क्रमश: घटाते हुए 3000 पर लाने का प्रस्ताव है, जिनका इस्तेमाल मुख्यतया सीमावर्ती इलाकों के साथ आपात स्थिति में ट्रेन सेवाओं के संचालन में किया जाएगा।
माना जाता है कि डीजल इंजन की औसत आयु 30 वर्ष होती है, लेकिन ओवरहॉलिंग के बाद इन्हें 5-6 वर्ष और चलाया जा सकता है। चूंकि पुराने इंजन हटाने के निर्णय से 31 वर्ष से पुराने सभी इंजन सेवा से बाहर हो जाएंगे। इससे डीजल खपत घटने के साथ-साथ वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी।
दिलचस्प बात यह है कि पूरी दुनिया को पछाड़कर भारतीय रेलवे ने इतिहास रचते हुए पहली बार डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक में बदलने का कारनामा कर दिखाया था। अब 2600 से 2700 हार्स पावर की क्षमता वाला डीजल इंजन 5 हजार से 10 हजार हार्स पावर वाले इलेक्ट्रिक इंजन में तब्दील हो गया।
डीजल लोकोंमेटिव वर्क्स ने विश्व के पहले डीजल रेल इंजन को इलेक्ट्रिक रेल इंजन बदलने का काम पूरा किया है, जिस पर 22 दिसंबर 2017 को काम शुरू हुआ था और नया इंजन 28 फरवरी 2018 को रवाना किया गया। महज 69 दिन की अवधि में डीजल इंजन से इलेक्ट्रिक इंजन में बदला गया पहला इंजन राजधानी दिल्ली में सफदरजंग रेलवे स्टेशन पर आज भी मौजूद है।
भारतीय रेलवे के मिशन 100 फीसदी विद्युतीकरण और कार्बन मुक्त एजेंडे को ध्यान में रखते हुए डीजल इंजन कारखाना वाराणसी ने डीजल इंजन को नए प्रोटोटाइप इलेक्ट्रिक इंजन में विकसित किया था। डीजल इंजनों को 18 साल से अधिक समय की अवधि तक चलाने के लिए करीब पांच से छह करोड़ रुपए का खर्च आता है।
लेकिन अब उस खर्च के महज 50 फीसदी से ही डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक में बदलने में इस्तेमाल किया जा सकेगा। एक आकलन के मुताबिक डीजल इंजन के जरिए 24 डिब्बे की रेलगाड़ी को खींचने में प्रति किलोमीटर लगभग 6 लीटर की खपत होती है जबकि 12 डिब्बे की रेलगाड़ी को खींचने में प्रति किलोमीटर लगभग 4.50 लीटर डीजल का एवरेज आता है।
मेक इन इंडिया पहल के तहत स्वदेशी तकनीक अपनाते हुए डीजल रेल कारखाने ने डब्लूएजीसी 3 श्रेणी के इलेक्ट्रिक रेल इंजन से शुरुआत की है। यह इलेक्ट्रिक रेल इंजन माल गाड़ी में उपयोग किया जाएगा। डब्लूएजीसी 3 श्रेणी इंजन प्रदूषण मुक्त है और डीजल इंजन के मुकाबले बेहतर स्पीड देने में कारगर हैं। यह उसके ब्रॉडगेज नेटवर्क को पूरी तरह विद्युतीकृत करने के प्रयासों का हिस्सा है। इससे लोकोमोटिव की क्षमता 2600 हॉर्सपावर से बढ़कर 5000 हॉर्सपावर हो गई है।
यह बात दीगर है कि सामान्य बल्ब की जगह पर एलईडी बल्ब के प्रयोग से हर साल 8 करोड़ टन से अधिक कार्बन ऑक्साइड में कमी आई है। यह तभी संभव हो सका है कि जब पारंपरिक ईंधनों में शामिल लकड़ी और कोयले के इस्तेमाल में कमी लाने और खाना बनाने के लिए एलपीजी गैसों की पहुंच अधिक लोगों तक पहुंचाने में सरकार सफल हुई है।
इस मुहिम में मोदी सरकार के उज्जवला योजना को भी क्रेडिट दिया जा सकता है, जिसके तहत अब तक 5 करोड़ निम्न तबके वाले परिवार को एलपीजी गैस मुहैया कराया गया है। इससे एक तरफ जहां कोयले और लकड़ी का अनावश्यक दोहन कम हुआ है, दूसरी तरफ प्रदूषण स्तर में गिरावट भी दर्ज की गई है।
यह भी पढ़ें- Railway Budget 2020: रेलवे के लिए हुए बड़े ऐलान, बढ़ेंगी तेजस जैसी हाईस्पीड ट्रेनें
वर्ष 2022 तक सभी रूटों के सौ फीसदी विद्युतीकरण के लक्ष्य
वर्तमान में रेलवे के पास लगभग 12 हजार इंजन हैं। इसमें 6.5 हजार डीजल इंजन और 5.5 हजार इलेक्टि्रक इंजन हैं। वर्ष 2022 तक सभी रूटों के सौ फीसदी विद्युतीकरण के लक्ष्य के तहत डीजल इंजनों की संख्या को क्रमश: घटाते हुए 3000 पर लाने का प्रस्ताव है, जिनका इस्तेमाल मुख्यतया सीमावर्ती इलाकों के साथ आपात स्थिति में ट्रेन सेवाओं के संचालन में किया जाएगा।
सामान्यतया 30 वर्ष होती है डीजल इंजन की औसत उम्र
माना जाता है कि डीजल इंजन की औसत आयु 30 वर्ष होती है, लेकिन ओवरहॉलिंग के बाद इन्हें 5-6 वर्ष और चलाया जा सकता है। चूंकि पुराने इंजन हटाने के निर्णय से 31 वर्ष से पुराने सभी इंजन सेवा से बाहर हो जाएंगे। इससे डीजल खपत घटने के साथ-साथ वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी।
अगस्त, 2019 में 300 डीजल इंजनों को ऑपरेशन से बाहर किया गया
अगस्त, 2019 में रेलवे में 31 वर्ष से अधिक पुराने 300 डीजल इंजनों को तत्काल प्रभाव से प्रचालन से बाहर करने का निर्णय लिया। डीजल इंजन को बाहर का रास्ता दिखाने के पीछे की वास्तविक वजह पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों में कमी लाना और प्रदूषण को कम करना है, क्योंकि इलेक्ट्रिक इंजन की तुलना में डीजल न केवल अधिक ईंधन पीती थीं बल्कि उनसे प्रदूषण अधिक होता है।
लगभग पूरा किया जा चुका है दिल्ली-जयपुर मार्ग का विद्युतीकरण
फरवरी, 2019 में दिल्ली से रेवाड़ी विद्युत इंजन से चलने वाली पैसेंजर ट्रेन चलाई गई थी। 2019 के अंत तक दिल्ली से जयपुर तक विद्युतीकरण का काम पूरा कर लिया गया। इससे पहले दिल्ली एनसीआर पलवल, सोनीपत, फरीदाबाद आदि रूट पर विद्युत इंजन से ट्रेन चलाई जा रही हैं।
2022 तक 100 फीसदी रेल नेटवर्क का विद्युतीकरण का लक्ष्य
ग्रीन रेलवे अभियान के तहत रेलवे में सभी रूटों का विद्युतीकरण किया जा रहा है। धीरे-धीरे डीजल इंजन का उपयोग कम कर डीजल की खपत को कम किया जा रहा है। मौजूदा वक्त में भारतीय रेल के करीब 55 फीसदी नेटवर्क का विद्युतीकरण हो चुका है और उम्मीद जताई गई है कि शेष 45 फीसदी रेल नेटवर्क के विद्युतीकरण में चार-पांच वर्ष का समय लग सकता है। रेल मंत्री पीयूष गोयल की मानें तो भारतीय रेलवे आगामी 4-5 वर्षों में 100 फीसदी विद्युत चालित नेटवर्क में तब्दील हो जाएगी।
डीजल इंजन में 1 KM में होती है इतनी ईंधन की खपत
डीजल इंजन में प्रति किलोमीटर का एवरेज गाड़ी के लोड के मुताबिक ही तय होता है मसलन अगर गाड़ी 24 डिब्बे की है तो लगभग 6 लीटर डीजल में 1 किलोमीटर का एवरेज आयेगा। अगर 12 डिब्बे की पैसेंजर गाड़ी है तो उसमें भी डीजल का एवरेज लगभग 6 लीटर में 1 किलोमीटर आएगा, क्योंकि उसे हर स्टेशन पर रुकना पड़ता है और ब्रेक एवं एक्सीलेटर लेने की वजह से डीजल ज्यादा खर्च होता है। अगर 12 डिब्बे की गाड़ी है और एक्सप्रेस है तो लगभग 4.50 लीटर में 1 किलोमीटर का एवरेज आता है।
कई-कई घंटे खड़ी होने पर भी नहीं बंद किए जाते थे डीजल इंजन
पहले मालगाड़ी के एक ही स्टेशन पर दस से बारह घंटे खड़ी रहने के बावजूद इंजन को बंद नहीं किया जाता था जिसकी वजह से रेल विभाग को काफी नुकसान झेलना पड़ता था। डीजल इंजन नहीं करने का एक कारण ये था कि विभाग की तरफ से ये कहा जाता था कि बंद करने के दौरान अगर इंजन में कोई खराबी आ गई और इंजन स्टार्ट नहीं हुआ तो परेशानी खड़ी हो सकती है लेकिन तकरीबन 3 साल पहले विभाग ने बदलाव करते हुए आदेश दिया कि अगर कोई मालगाड़ी दस से बारह घंटे तक एक ही स्टेशन पर रुकती है तो इंजन को बंद किया जायेगा।
डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक में बदलने में आता है 5-6 करोड़ का खर्च
भारतीय रेलवे के मिशन 100 फीसदी विद्युतीकरण और कार्बन मुक्त एजेंडे को ध्यान में रखते हुए डीजल इंजन कारखाना वाराणसी ने डीजल इंजन को नए प्रोटोटाइप इलेक्ट्रिक इंजन में विकसित किया था। डीजल इंजनों को 18 साल से अधिक समय की अवधि तक चलाने के लिए करीब पांच से छह करोड़ रुपए का खर्च आता है, लेकिन इस खर्च का महज 50 फीसदी ही डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक में बदलने में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
भारत में सबसे पहले डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक इंजन में बदला गया
भारतीय रेलवे के डीजल लोकोंमेटिव वर्क्स ने विश्व के पहले डीजल रेल इंजन को इलेक्ट्रिक रेल इंजन बदलने का काम पूरा किया है, जिस पर 22 दिसंबर 2017 को काम शुरू हुआ था और नया इंजन 28 फरवरी 2018 को रवाना किया गया। भारतीय रेलवे ने इतिहास रचते हुए 2600 से 2700 हार्स पावर की क्षमता वाला डीजल इंजन 5 हजार से 10 हजार हार्स पावर वाले इलेक्ट्रिक इंजन में तब्दील कर दिया। महज 69 दिन की अवधि में डीजल इंजन से इलेक्ट्रिक इंजन में बदला गया पहला इंजन राजधानी दिल्ली में सफदरजंग रेलवे स्टेशन पर आज भी मौजूद है।
रेलवे को एक डीजल इंजन के उत्पादन में 15 करोड़ का खर्च आता है
भारतीय जीई डीज़ल लोकोमोटिव को उत्पादित करने में रेलवे को 14.656 करोड़ का खर्च आता है। डब्लूडीपी-4 रेलवे का सबसे लोकप्रिय लोकोमोटिव माना जाता है। इस इंजन को बनाने में रेलवे को 14 करोड़ की लागत आती है। भारतीय रेलवे का नेटवर्क 1.16 लाख किमी लंबा है। कोई 15 हजार रेलगाड़ियां इस नेटवर्क पर दौड़ती हैं। इस नेटवर्क पर 6 हजार से ज्यादा स्टेशन हैं। करीब 2 करोड़ लोग रोज रेलगाड़ियों के माध्यम से इधर से उधर आते-जाते हैं।
डब्ल्यूएपी -5 इलेक्ट्रिक इंजन की लागत करीब 35 करोड़ रुपए है
वर्तमान समय में यात्री खंड में प्रमुख इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव डब्ल्यूएपी -4, डब्ल्यूएपी -5 और डब्ल्यूएपी -7 और फ्रेट सेगमेंट में डब्ल्यूएपी -9, डब्ल्यूएपी -9 एच हैं। जिनमें से डब्ल्यूएजी -7, डब्ल्यूएजी -5, डब्ल्यूएएम -4 जैसे अन्य लोकोमोटिव वापस ले जाने के कगार पर हैं क्योंकि इनमें से नवीनतम डब्ल्यूएजी -7 को 2015 में उत्पादन से बाहर कर दिया गया है। लेकिन फिर भी वे 3 साल तक सेवा में हैं। एक डब्ल्यूएपी -5 रेल इंजन की लागत करीब 35 करोड़ रुपए होती है। डब्ल्यूएजी-9 का आयात करने में भारतीय रेलवे को 35 करोड़ रूपए की लागत आती है। जबकि सीएलडब्ल्यू को भारत में उत्पादित करने में 13.5 करोड़ से लेकर 15 करोड़ रूपए तक की लागत आती है।