Gujarat Assembly Election: आखिर क्यों गर्त में चली गई कांग्रेस और BJP ने गुजरात में रच दिया इतिहास, 5 बड़ी वजह

Gujarat Assembly Election: गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का शासन 27 साल के बाद भी बरकरार है। एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ने ना सिर्फ जीत दर्ज की है बल्कि प्रचंड बहुमत के साथ वापसी की है। गुजरात में भाजपा 180 विधानसभा सीटों में से 156 सीटों पर जीत दर्ज की है, जोकि भारतीय जनता पार्टी की अबतक की सबसे बड़ी जीत है। गुजरात के एक मुस्लिम वोटर साबिर मिया का कहना है कि यहां तो बस मोदी ही है, उनका जादू बरकरार है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि गुजरात में हमारा लक्ष्य 92 सीटों का नहीं बल्कि 128 सीटों का है, जोकि मोदी के गृहराज्य में भाजपा की सबसे बड़ी जीत होगी। लेकिन भाजपा ने ना सिर्फ अपने रिकॉर्ड को तोड़ा है बल्कि कांग्रेस के 1985 के 149 सीटों के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है।

गुजरात में भाजपा ने रचा इतिहास
गुजरात चुनाव के नतीजे जिस तरह से आज सामने आए हैं उसने तमाम विश्लेषकों को गलत साबित कर दिया है। किसी ने भी नहीं कल्पना की थी कि भाजपा 156 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज करेगी। लोगों के लिए अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जमीन के बेटे हैं। जिस तरह से पाटीदार नेता भाजपा के साथ जुड़े, उसने 2017 में भाजपा के हुए नुकसान की ना सिर्फ भरपाई की बल्कि भाजपा को अप्रत्याशित जीत दिलाई है। कांग्रेस जहां दावा कर रही थी कि हम शांतिपूर्ण प्रचार कर रहे हैं, लेकिन वह वोटर्स तक नहीं पहुंच सका। खुद राहुल गांधी गुजरात के चुनाव प्रचार से नदारद नजर आए, जिसके चलते वोटर्स को यह संदेश गया कि कांग्रेस ने लड़ाई से पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है।

रावण-औकात जैसे बयानों को जमकर भुनाया
सत्ता विरोधी लहर को भारतीय जनता पार्टी ने कहीं भी महसूस नहीं होने दिया, सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए भाजपा ने विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनकी जगह भूपेंद्र पटेल को यह जिम्मेदारी सौंपी, पूरी कैबिनट में बड़ा फेरबदल किया गया। ऐसे में भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर को चुनाव से बहुत पहले ही खत्म कर दिया। पार्टी ने कांग्रेस के कई पारंपरिक वोटर्स को भी अपने साथ जोड़ा। कांग्रेस के पुराने वोटर्स भी यह समझ रहे थे कि कांग्रेस ने लड़ाई से पहले सरेंडर कर दिया। आम आदमी पार्टी ने गुजरात में काफी बढ़-चढ़कर प्रचार किया था। लेकिन गुजरात में आप भाजपा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकी। भाजपा ने कांग्रेस के औकात, रावण जैसे बयानों को चुनाव में जमकर भुनाया।

मोदी मैजिक
भाजपा की जीत के पांच बड़े फैक्टर्स पर नजर डालें तो इसमे मोदी मैजिक सबसे अहम है। लोगों का अभी भी प्रधानमंत्री मोदी में भरोसा बरकरार है। प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद में पिछले हफ्ते 50 किलोमीटर का रोड शो किया, जिसमे भाजपा ने दावा किया कि 10 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया, चार घंटे चले इस रोड शो में हर कोई पीएम मोदी की झलक हासिल करना चाहता था। इस रोड शो ने स्थापित कर दिया था कि जनता के बीच पीएम मोदी की प्रचंड लोकप्रियता है। गुजरात चुनाव प्रचार में हर जगह प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर थी। रैलियों में गुजराती अस्मिता जैसे नारों को आगे बढ़ाया गया, 2002 से शांति की बात कही गई। अमित शाह ने एक महीने पहले से ही गुजरात में अपना डेरा डाल दिया था। दोनों ने माइक्रो मैनेजमेंट के आगे दूसरे दल नतमस्तक नजर आए।

सत्ता विरोधी लहर को खत्म किया
जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ने सितंबर 2021 में सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री समेत पूरे कैबिनेट को बदला, उसने पार्टी के निराश कार्यकर्ताओं ने नई ऊर्जा भरने की कोशिश की। 11 सितंबर को पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पूरी कैबिनेट को बदल दिया। भाजपा के इस फैसले के खिलाफ लोगों ने किसी भी तरह की नाराजगी जाहिर नहीं की। उत्तराखंड, कर्नाटक में जिस तरह से भाजपा ने नई शुरुआत का फार्मूला अपनाया उसका गुजरात में भी फायदा मिला। भूपेंद्र पटेल के सीएम बनने से पटेल समुदाय की नाराजगी खत्म हुई।

पाटीदारों की भाजपा में वापसी
गुजरात में पाटीदारों का वोट तकरीबन 13 फीसदी है, लेकिन पिछले चुनाव में पाटीदार आंदोलन का भाजपा को काफी नुकसान हुआ था, जिसके चलते कांग्रेस ने 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी और भाजपा 99 सीटों पर पहुंच गई थी। 2015 में पाटीदारों के आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन ने भी भाजपा की मुश्किल को बढ़ाया था, उस आंदोलन में 14 पाटीदारों की मौत हो गई थी जिसके चलते पाटीदार भाजपा के खिलाफ हो गए थे, इस नाराजगी को खत्म करने के लिए आनंदीबेन पटेल को सीएम बनाया गया। हार्दिक पटेल पाटीदार आंदोलन का चेहरा बने, लेकिन 2019 में वह भाजपा में शामिल हो गए। 2022 में पाटीदार भाजपा के साथ वापस आए, भाजपा ने 2020 में 10फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण पाटीदारों को देने का ऐलान किया, जिसने एक बार फिर से पाटीदारों को भाजपा के साथ जोड़ा। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस 10 फीसदी आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा।

कांग्रेस का आत्मसमर्पण
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी ने जहां जमकर चुनाव प्रचार किया, वहीं कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार काफी खामोश दिखा। पिछले चुनाव में जहां राहुल गांधी ने जमकर चुनाव प्रचार किया, मंदिरों तक गए, इस बार वह सिर्फ एक बार ही प्रचार के लिए पहुंचे। गुजरात में कई लोगों का मानना था कि कांग्रेस ने लड़ाई से पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया। ऐसे में लोग यह सोच रहे थे कि आखिर क्यों कांग्रेस को वोट किया जाए, भाजपा विरोधी वोटर्स जो कांग्रेस को वोट देते थे, उन्होंने आम आदमी पार्टी के विकल्प को चुना। जब गुजरात में चुनाव था तो राहुल गांधी मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा कर रहे थे। कांग्रेस ने 2017 की स्थिति को मजबूत करने की बजाए, बैक गियर लगाया और यहां पर चुनाव प्रचार में अपनी ताकत नहीं झोंकी।

आप की एंट्री
गुजरात में आम आदमी पार्टी ने काफी दमखम से प्रचार किया। जिसके चलते आम आदमी पार्टी को लेकर काफी हवा बनी। जहां कई दशक से गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई थी, इस बार चुनाव त्रिशंकु हुआ। यहां तक कि आप ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम की भी घोषणा कर दी थी। लेकिन बावजूद इसके लोग आप को भाजपा का विकल्प चुनने की बजाए कांग्रेस का विकल्प चुनाव। आप ने कई फ्री की योजनाओं का ऐलान किया था। मुस्लिम वोटर्स कांग्रेस को अपना समर्थन देते हैं, लेकिन आप ने गुजरात में अच्छी और मजबूत शुरुआत की।