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Indira Gandhi Death Anniversary: काश, आज श्रीमती इंदिरा गांधी होतीं!

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आशा त्रिपाठी

स्वतंत्र पत्रकार
आशा त्रिपाठी हरिद्वार( उत्तराखंड) की रहने वाली हैं, समसामयिक विषयों पर उनकी कलम चलती रहती है।

हरिद्वार। पिछले दिनों तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सभी लोकतांत्रिक देशों में अब तक की 'सबसे स्वीकार्य' प्रधानमंत्री बताते हुए उन्हें निर्णायक क्षमता में दक्ष अबतक की सबसे सफल नेतृत्वकर्ता करार दिया। इतना ही नहीं प्रणब मुखर्जी ने राहुल गांधी को संदेश देते हुए कहा कि फैसले लीजिए, अमल कीजिए। इंदिरा ने तीन महीने में ही कांग्रेस का कायाकल्प कर दिया था। मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी नेतृत्व को सांगठनिक मामलों में तेजी से निर्णय लेने का संदेश देते हुए कहा कि 1978 में कांग्रेस में दूसरा विभाजन होने के कुछ महीने बाद ही राज्य चुनावों में पार्टी के शानदार जीत की याद दिलाई। राष्ट्रपति ने विशिष्ट अतिथियों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कहा कि वह 20वीं सदी की महत्वपूर्ण हस्ती थीं। खैर, अब किसी को भी इंदिरा बनना आसान नहीं है। जो अदम्य साहस, इच्छा शक्ति, दृढ़ता इंदिरा गांधी में थीं, अब वो शायद ही कभी देखने को मिले। हाल ही में एक पुस्तक 'इंडियाज इंदिरा-ए सेंटेनियल ट्रिब्यूट' विमोचित हुई है, जिसकी प्रस्तावना खुद कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने लिखा है।

अपनी इच्छाएं मेरे ऊपर नहीं थोपें...

अपनी इच्छाएं मेरे ऊपर नहीं थोपें...

अपनी सास इंदिरा गांधी के बारे में सोनिया गांधी ने लिखा है कि वो एक मित्र और सलाहकार थीं। वो अपनी इच्छाएं मेरे ऊपर नहीं थोपें, इसको लेकर वह बेहद सतर्क रहती थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश को संभालते हुए भी पारिवारिक जीवन को लेकर इंदिरा गांधी कितनी संवेदनशील थीं। मौजूदा हालात में देश इंदिरा गांधी की कमी को महसूस कर रहा है। लोगों अक्सर यह चर्चा करते रहते हैं कि काश, आज श्रीमती इंदिरा गांधी होतीं!

जन्म 19 नवम्बर 1917

जन्म 19 नवम्बर 1917

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की पुत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी का जन्म 19 नवम्बर 1917 को हुआ था। उन्होंने इकोले नौवेल्ले, बेक्स (स्विट्जरलैंड), इकोले इंटरनेशनेल, जिनेवा, पूना और बंबई में स्थित प्यूपिल्स ओन स्कूल, बैडमिंटन स्कूल, ब्रिस्टल, विश्व भारती, शांति निकेतन और समरविले कॉलेज, ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उम्दा शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विवि द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण दिया गया। इंदिरा गांधी शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहीं। बचपन में उन्होंने ‘बाल चरखा संघ' की स्थापना की और असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस पार्टी की सहायता के लिए 1930 में बच्चों के सहयोग से ‘वानर सेना' का निर्माण किया। सितम्बर 1942 में उन्हें जेल में डाल दिया गया। 1947 में इन्होंने गाँधी जी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कार्य किया। 1955 में इंदिरा गाँधी कांग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी। 1958 में उन्हें कांग्रेस के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। वे एआईसीसी के राष्ट्रीय एकता परिषद की उपाध्यक्ष और 1956 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनीं।

भारत की प्रधानमंत्री

भारत की प्रधानमंत्री

वे वर्ष 1959 से 1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं। जनवरी 1978 में उन्होंने फिर से यह पद ग्रहण किया। 1966-1964 तक सूचना और प्रसारण मंत्री रहीं। जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक वह भारत की प्रधानमंत्री रहीं। सितम्बर 1967 से मार्च 1977 तक के लिए परमाणु ऊर्जा मंत्री भी रहीं। 5 सितंबर 1967 से 14 फ़रवरी 1969 तक विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला। श्रीमती गांधी ने जून 1970 से नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मामले मंत्रालय का प्रभार संभाला। जनवरी 1980 से वह योजना आयोग की अध्यक्ष रहीं। 14 जनवरी 1980 में वे फिर से प्रधानमंत्री बनीं।
विभिन्न विषयों में रुचि रखने वाली श्री गाँधी जीवन को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखती थीं जिसमें कार्य एवं रुचि इसके विभिन्न पहलू हैं जिन्हें किसी खंड में अलग नहीं किया जा सकता या न ही अलग-अलग श्रेणियों में रखा जा सकता है। उन्होंने अपने जीवन में कई उपलब्धियां प्राप्त की। उन्हें 1972 में भारत रत्न पुरस्कार, 1972 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए मैक्सिकन अकादमी पुरस्कार, 1973 में एफएओ का दूसरा वार्षिक पदक और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा साहित्य वाचस्पति (हिन्दी) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1953 में श्रीमती गाँधी को अमरीका ने मदर पुरस्कार, कूटनीति में उत्कृष्ट कार्य के लिए इटली ने इसाबेला डी ‘एस्टे पुरस्कार और येल विश्वविद्यालय ने होलैंड मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया। फ्रांस जनमत संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार वह 1967 और 1968 में फ्रांस की सबसे लोकप्रिय महिला थी। 1971 में अमेरिका के विशेष गैलप जनमत सर्वेक्षण के अनुसार वह दुनिया की सबसे लोकप्रिय महिला थी।पशुओं के संरक्षण के लिए 1971 में अर्जेंटीना सोसायटी द्वारा उन्हें सम्मानित उपाधि दी गई।

देश-विदेश की यात्रा

देश-विदेश की यात्रा

उनके मुख्य प्रकाशनों में ‘द इयर्स ऑफ़ चैलेंज' (1966-69), ‘द इयर्स ऑफ़ एंडेवर' (1969-72), ‘इंडिया' (लन्दन) 1975, ‘इंडे' (लौस्सैन) 1979 एवं लेखों एवं भाषणों के विभिन्न संग्रह शामिल हैं। उन्होंने व्यापक रूप से देश-विदेश की यात्रा की। श्रीमती गांधी ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, बर्मा, चीन, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों का भी दौरा किया। उन्होंने फ्रांस, जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य, जर्मनी के संघीय गणराज्य, गुयाना, हंगरी, ईरान, इराक और इटली जैसे देशों का आधिकारिक दौरा किया।श्रीमती गांधी ने अल्जीरिया, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया बेल्जियम, ब्राजील, बुल्गारिया, कनाडा, चिली, चेकोस्लोवाकिया, बोलीविया और मिस्र जैसे बहुत से देशों का दौरा किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

 जन्म के 100वें साल में...

जन्म के 100वें साल में...

भारत की 'आयरन लेडी' कही जाने वाली इंदिरा गांधी अपने कठोर फ़ैसलों के लिए दुनिया में मशहूर थी। जन्म के 100वें साल में इंदिरा गांधी पर लोग फिर बात कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर इन दिनों इंदिरा गांधी से जुड़ी एक स्टोरी की चर्चा है। वजह है जवाहर लाल नेहरू के निजी सचिव एमओ मथाई की 1978 में छपी किताब 'रेमिनिसन्स ऑफ नेहरू एज' का चैप्टर 'शी'। दावा किया जा रहा है कि ये वही चैप्टर है, जिसे एमओ मथाई की किताब से हटा दिया गया था। इस चैप्टर के अंश काफी निजी हैं, जिसमें कई आपत्तिजनक बातों का ज़िक्र है। इस चैप्टर को लेकर दो तरह के दावे हैं। एक दावा ये है कि किताब में ऐसा कोई चैप्टर ही नहीं था, इसे बस किताब के प्रमोशन के लिए प्रचारित किया गया था। दूसरा दावा ये है कि किताब में इंदिरा गांधी पर शी चैप्टर था, जिसमें इंदिरा गांधी और एम ओ मथाई के कथित संबंधों के बारे में जानकारी थी लेकिन इसे छापा नहीं गया था। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का कहना है कि 1977 में इमरजेंसी पर जब मेरी किताब 'द जजमेंट' छपी और बिकी थी। तब मथाई की 'रेमिनिसन्स ऑफ नेहरू एज' को छापने वाले विकास पब्लिकेशन ने मुझे किताब की हस्तलिपि भेजकर पूछा था कि ये छापें या नहीं। मैंने सलाह दी कि शी चैप्टर के बगैर सब छाप दो। लेकिन बाद में ये चैप्टर सर्कुलेट होता गया। शी चैप्टर के वर्णन के बारे में कुलदीप नैयर बताते हैं कि उन्होंने पूरा चैप्टर या किताब नहीं पढ़ी थी। वो कहते हैं कि 'मेरी दिलचस्पी ही नहीं थी। इसलिए मैंने पूरा चैप्टर नहीं पढ़ा था। सबके बावजूद इंदिरा गांधी की काबिलियत का जवाब नहीं था। उनकी कार्यशैली की जितनी भी तारीफ हो, कम होगी। हाल में 'इंदिरा: इंडियाज़ मोस्ट पॉवरफ़ुल प्राइम मिनिस्टर' किताब लिखने वाली सागरिका घोष कहती हैं कि इंदिरा गांधी में बहुत जोश और लड़ते रहने की क्षमता थी।

 31 अक्टूबर 1984

31 अक्टूबर 1984

बताते हैं कि 1971 के युद्ध से पहले जब इंदिरा गांधी अमेरिका गईं, तो वहाँ के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उनसे बहुत धृष्टता से पेश आए। अमेरिकी राजनयिक गैरी बास ने अपनी किताब 'द ब्लड टेलिग्राम' में लिखा हैं कि निक्सन ने बदतमीज़ी की सभी हदें पार कर दी, जब उन्होंने इंदिरा गांधी को मिलने के लिए 45 मिनटों तक इंतज़ार कराया। बाद में इसी बैठक का ज़िक्र करते हुए पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अपनी आत्मकथा 'द व्हाइट हाउज़ इयर्स' में लिखा है कि जब इंदिरा गांधी निक्सन से मिलीं, तो उन्होंने निक्सन से कुछ इस तरह बरताव किया जैसा कि एक प्रोफ़ेसर किसी पढ़ाई में कमज़ोर छात्र के साथ करता है। बहरहाल, उनके निजी सुरक्षाकर्मियों सरदार सतवंत सिंह और सरदार बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को गोली मारकर हत्या कर दी थी। आज इंदिरा की याद सबके जेहन में हैं। बेशक उनकी यादें आखों को नम करते हुए कहती हैं कि काश, आज श्रीमती इंदिरा गांधी होतीं!

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English summary
The nation remembers the former Prime Minister, Indira Gandhi on her death anniversary every year on 31st October. She was India’s first woman prime minister and served the country from 1966 to 1976 and from 1980 to 1984.She was an eminent figure of Indian National Congress.
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