First Budget of India: कैसा था स्वतंत्र भारत का पहला वित्तीय बजट, जानें उससे जुड़े रोचक तथ्य
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत हर वित्तीय वर्ष के आरंभ से पहले केंद्र सरकार को केंद्रीय बजट संसद में पेश करना जरूरी होता है। यह सरकार के साल भर के खर्च का लेखाजोखा होता है।
First Budget of India: 1 फरवरी 2023 को केंद्रीय वित्तमंत्री द्वारा आम बजट पेश किया जाता है। अगले वित्त वर्ष का बजट पेश करने का यह सिलसिला 1947 से लगातार चल रहा है। वैसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में भारत में बजट की शुरूआत 7 अप्रैल 1860 को हुई थी। इसे वायसराय की परिषद में स्कॉटिश अर्थशास्त्री व नेता जेम्स विल्सन ने पहली बार पेश किया था। इसलिए जेम्स विल्सन को भारतीय बजट का संस्थापक भी माना गया है। भारत में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलने वाले वित्त वर्ष की शुरुआत वर्ष 1867 में हुई। इससे पहले तक 1 मई से 30 अप्रैल तक वित्त वर्ष होता था। मगर क्या आप जानते हैं कि स्वतंत्र भारत का पहला बजट कब पेश किया गया तथा उसकी क्या खास बातें थीं?
बजट शब्द कहां से आया?
'बजट' शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द बुल्गा से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - चमड़े का ब्रीफकेस। बुल्गा से फ्रांसीसी शब्द Bougette बना। इसके उपरांत अंग्रेजी शब्द बोगेट अस्तित्व में आया, जिससे बजट शब्द सामने आया। प्राचीन समय में व्यापारी अपने दस्तावेज एक थैले में रखते थे। धीरे-धीरे इस शब्द का प्रयोग संसाधनों के हिसाब-किताब से जुड़ गया। इस तरह सरकारों के साल भर के आर्थिक बही-खाते को नाम मिला 'बजट'। हालांकि, भारत में 2019 से पहले वित्तमंत्री बजट पेश करने के लिए चमड़े के बैग का इस्तेमाल करते थे, जिसको वित्तमंत्री सीतारमण ने लाल रंग के पारंपरिक 'बही खाता' कपड़े में बदल दिया।
वित्तमंत्री ने माना अपने आपको खुशकिस्मत
15 अगस्त 1947 के बाद भारत का पहला बजट 26 नवम्बर 1947 को तत्कालीन वित्त मंत्री आर.के. शनमुखम शेट्टी द्वारा पेश किया गया था। यह 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक सिर्फ साढ़े सात महीने के लिए ही था। दरअसल, अगला बजट 1 अप्रैल 1948 से लागू होना था। बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री का कहना था, "मैं आजाद भारत का पहला बजट पेश करने के लिए खड़ा हुआ हूं। इसे एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में माना जा सकता है।" उन्होंने स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश करने के लिए अपने आपको बहुत खुशकिस्मत माना था।
वित्तमंत्री शेट्टी ने बजट वाले दिन टाई और सफेद शर्ट के साथ काला सूट पहना हुआ था। उन्होंने हाथों में बजट वाला ब्रीफकेस भी ले रखा था। बजट का ऑल इंडिया रेडियो पर भी प्रसारण किया गया था।
सिर्फ अंग्रेजी में पेश हुआ पहला बजट
1947 में जब स्वतंत्र भारत का पहला बजट पेश किया गया तो बजट से जुड़े सारे दस्तावेज सिर्फ अंग्रेजी में ही छपे थे। यह सिलसिला 1954-55 के बजट तक चला, उसके उपरांत 1955-56 से बजट अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में छपने (मुद्रित) लगा।
तब इन्कम टैक्स की दरें क्या थी?
1949-50 के बजट में पहली बार इनकम टैक्स की दरें तय की गई। 1,500 रुपये तक सालाना आय को आयकर दायरे से बाहर रखा गया था। वहीं 1,501 रुपये से 5,000 रुपये तक की वार्षिक आय पर 4.69 प्रतिशत इनकम टैक्स, तथा 5001 से 10,000 रुपये तक की आय पर 10.94 प्रतिशत टैक्स लगाया गया था।
बजट के मुख्य आकर्षण
इस बजट का मुख्य आकर्षण बजट पारित करने का निर्णय था। बजट में तीन प्रमुख खर्च खाद्यान्न उत्पादन, रक्षा सेवाओं और नागरिक व्यय पर किए गए। खाद्य उत्पादन कम था, इसलिए खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी।
पहले बजट में 171.15 करोड़ रुपये के कुल रेवेन्यू (राजस्व) का अनुमान था। वहीं खर्च का अनुमान 197.39 करोड़ रुपये रखा गया था। जिससे फिस्कल डेफिसिट (राजकोषीय घाटे) का अनुमान 26.24 करोड़ रुपये था। इस अनुमानित राजस्व का 46 प्रतिशत अर्थात 92.74 करोड़ रुपए सिर्फ रक्षा सेवाओं पर खर्च के लिए रखा। वही सिंचाई पर 6.68 लाख रूपये का प्रस्ताव रखा गया था। बजट में वित्तमंत्री शेट्टी ने सूती कपड़ों और धागों पर 3 फीसदी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का इकलौता टैक्स प्रस्ताव इस बजट में रखा था।
तब भारत की क्या स्थिति थी
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आजादी के समय भारतीय अर्थव्यवस्था (कुल जीडीपी) सिर्फ 2.7 लाख करोड़ रुपये थी। जो दुनिया की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 3 प्रतिशत से भी कम थी। भारत में उस समय गरीबी बहुत थी। स्वतंत्र भारत के पहले बजट में वित्तमंत्री शेट्टी ने बताया था कि साल 1944-45 से 1946-47 तक 43.80 लाख टन (लगभग 120 करोड़ रूपये) की खाद्य सामग्री का आयात किया गया। वहीं अप्रैल 1947 से सितंबर 1947 तक 42 करोड़ रूपये की 10.62 लाख टन खाद्य सामग्री का आयात हुआ। इसका मतलब यह है कि उस समय हम खाद्य सामग्री के लिए विदेशों पर निर्भर थे। हालांकि, आजादी के 75 साल बाद देश की जीडीपी करीब 55 गुना बढ़ चुकी है, और आने वाले वर्षों में दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा होने के अनुमान हैं।
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