Famous Spies: जासूसी के आरोप में इन्हें मिली ‘सज़ा-ए-मौत’, एक भारत का महान जासूस ‘ब्लैक टाइगर’ भी है शामिल
जासूसी के आरोप में किसी देश द्वारा दुश्मन देशों के जासूसों को फांसी देने का मामला कोई नई बात नहीं है। दुनिया में कई ऐसे जासूस हुए हैं जिन्हें दुश्मन देश में पकड़कर मौत की सजा दी गई।
Famous Spies: पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान दुनिया के कई देशों ने अपने-अपने यहां जासूसी के आरोप में कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि, दुनिया में जासूसी के कथित आरोप में कितने लोगों को मारा जाता है, ऐसा कोई भी आधिकारिक आंकड़ा किसी भी संस्था के पास नहीं है। वहीं कुछ आतंकी दबदबे वाले देशों (सीरिया, तालिबान, और अफगानिस्तान) में समय-समय पर जासूसी को लेकर सरेआम मौत की सजा देने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं।
हाल के दिनों में ईरान में एक ब्रिटिश-ईरानी नागरिक को फांसी देने का मामला दुनियाभर की सुर्खियां बटोर रहा है। दरअसल साल 2000 से 2008 तक ईरान के उप-रक्षा मंत्री के तौर पर काम कर चुके अली रजा अकबरी को ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने के आरोप में ईरान ने फांसी पर लटका दिया है। हालांकि, अकबरी की इस फांसी को लेकर कई पश्चिमी देशों ने इसका विरोध भी किया था, बावजूद ईरान ने एक नहीं सुनीं। वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने इस फांसी को बर्बरता बताया। उन्होंने कहा कि ईरान में ब्रिटिश-ईरानी नागरिक अली रजा अकबरी की फांसी से मैं हैरान हूं। अपने ही लोगों के मानवाधिकार के खिलाफ हुई बर्बरता की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं, ये बिना चुनौती के खत्म नहीं होगा।
हालांकि, ये कोई पहला मामला नहीं जब किसी देश द्वारा अपने दुश्मन मुल्क के नागरिक को जासूसी के नाम पर फांसी दी गई हो। आज हम आपको ऐसे ही कुछ खास जासूसों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जासूसी के आरोप में पकड़ कर मौत की सजा दी गई।
जासूसी की दुनिया का महान शख्स एली कोहेन
एली कोहेन वह शख्स है जिसे जासूसी की दुनिया का सबसे बड़ा जासूस माना जाता है। एली कोहेन इजराइल (Israel) की जासूसी एजेंसी मोसाद का एजेंट था। जिसके कारण इजराइल गोलन हाईट (जून 1967) जीतने में सफल हुआ था। इतना ही नहीं एली कोहेन अपनी योग्यता के दम पर सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति अमीन अल-हफ़्ज़ के बेहद करीबी हो गए थे और एक समय सीरिया के उप रक्षामंत्री तक बनने वाले थे लेकिन ठीक उससे पहले एक संदेश भेजने के दौरान उनका राज खुल गया और सीरिया ने उन्हें फांसी की सजा दे दी।
एंजिल के नाम से मशहूर अशरफ़ मारवान
अशरफ़ मारवान को भी दुनिया के सबसे बेहतरीन जासूसों में गिना जाता है। मारवान कोई आम शख्स नहीं था बल्कि मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति जमाल अब्देल नासेर का दामाद था। साथ ही वे पूर्व राष्ट्रपति सादात के भी नजदीकी सलाहकार थे। वैसे कई रिपोर्ट्स के मुताबिक मारवान मिस्त्र के ही निवासी थे। लेकिन वे मोसाद (इजराइल) के लिए जासूसी का काम करते थे। साल 1973 में योम किप्पुर युद्ध में मिस्र और सीरिया मिलकर इजरायल पर हमला करने वाले थे, जिसकी जानकारी अशरफ़ मारवान ने ही मोसाद को दी थी। जिससे इजराइल को कम से कम हानि हुई। वे मोसाद के लिए कई सालों तक जासूसी करते रहे और साल 2007 में अशरफ़ मारवान की लंदन में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। बाद में मारवान के बेटे गमाल मारवान ने कहा कि मैं निश्चित नहीं हूं कि हुआ क्या था? लेकिन इस बारे में मुझे कोई संदेह नहीं कि उनकी हत्या हुई थी। सौ फीसदी।
'द एंजिल- द इजिप्शयन स्पाई हू सेव्ड इजराइल' के लेखक यूरी बार जोजफ के मुताबिक स्कॉटलैंड यार्ड ने इस पूरे मामले की जांच की थी और वे इस नतीजे पर पहुंचे थे कि यह आत्महत्या का मामला नहीं था और न ही कोई दुर्घटना थी। संभवत: मिस्र की खुफिया एजेंसी ने इस हत्या को अंजाम दिया था क्योंकि उनका अतीत मुबारक प्रशासन के लिए बहुत बड़ी शर्मिंदगी का सबब था। हालांकि, दिखावे के लिए अशरफ़ मारवान की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ मिस्र में की गई।
रूसी जासूस अलेक्जेंडर लितविनेंको को रूस ने ही दी सजा
ये एक ऐसा जासूस था, जिसे अपने ही देश (रूस) की सरकार ने मरवा दिया। साल 2006 में यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट ने लंदन में अलेक्जेंडर लितविनेंको की हत्या के मामले में एक ब्रिटिश जांच रिपोर्ट के आधार पर कहा गया कि उनके कत्ल के लिए रूस जिम्मेदार था। दरअसल केजीबी और सोवियत संघ के विघटन के बाद बनी एफएसबी (Federal Security Service of the Russian Federation) के पूर्व एजेंट लितविनेंको ने साल 2000 में रूस को छोड़ दिया था और भागकर लंदन आ गए थे।
लंदन में रहने के दौरान वह रूसी खुफिया सेवा में भ्रष्टाचार और संगठित अपराध का पर्दाफाश करने लगे। जो रूसी सरकार को रास नहीं आ रहा था। आखिरकार 1 नवंबर 2006 को लंदन के एक होटल में लितविनेंको रूस के दो व्यक्तियों (कोवतुन और आंद्रेई लुगोवॉय) के साथ चाय पी थी, जहां उन दोनों ने कथित तौर पर लितविनेंको की चाय में रेडियोधर्मी (रेडियोएक्टिव) पदार्थ पोलोनियम 210 मिला दिया और इसके कुछ ही हफ्तों बाद उनकी मृत्यु हो गई।
भारत का ब्लैक टाइगर, रविंद्र कौशिक
इस लिस्ट में अगर रविंद्र कौशिक की बात न हो तो यह हमेशा अधूरी ही रहेगी। रविंद्र कौशिक की जासूसी से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इतनी प्रभावित थीं कि उन्हें 'ब्लैक टाइगर' के खिताब से नवाजा गया था। रविंद्र कौशिक को साल 1977 में एक भारतीय खुफिया एजेंसी R&AW (रिसर्च ऐंड ऐनालिसिस विंग) एजेंट के रुप में पाकिस्तान भेजा गया था। उनका कोड नाम नबी अहमद शाकिर रखा गया।
कई रिपोर्ट्स के अनुसार रॉ ने उन्हें वहां आम लोगों की तरह पाकिस्तान में रहने और जासूसी के लिए भेजा था। मगर रविंद्र उनकी सोच से बहुत आगे थे और उन्होंने वहां लॉ डिग्री हासिल की, इसके बाद पाकिस्तानी सेना में भर्ती हो गए। इस दौरान वे बहुत सी खुफिया जानकारी रॉ को देते रहते। इसी बीच वे पाकिस्तानी सेना में मेजर तक बन गए।
हालांकि, 1983 में रॉ ने एक और जासूस इनायत मसीह को कौशिक से संपर्क में रहने के लिए भेजा। दुर्भाग्य से वह पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों के हत्थे चढ़ गया और उसने पूछताछ में मेजर नबी अहमद शाकिर (रविंद्र कौशिक) का राज खोल दिया। तब उनकी उम्र 29 साल थी। अगले दो सालों तक पाकिस्तानी सेना द्वारा भयंकर यातनाएं दी गईं पर कौशिक ने मुंह तक नहीं खोला। साल 1985 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई जिसे बाद में उम्रकैद में बदल दिया गया। फिर नवंबर 2001 में सूचना आई कि टीबी और दिल का दौरा पड़ने से रविंद्र कौशिक की मौत हो गई।
ईरान ने दी चार जासूसों को फांसी
4 दिसंबर 2022 को ईरान ने चार नागरिकों को मोसाद का एजेंट बताकर फांसी पर लटका दिया। ईरान की ही एक सरकारी न्यूज एजेंसी इरना (IRNA) के मुताबिक चार कथित जासूसों को फांसी दी गई थी। उनमें शाहीन इमानी मोहमदाबादी, हुसैन ओरदोखानजादा, मिलाद अशरफी और मनौचेहर शाहबंदी शामिल थे। दरअसल ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड ने जासूसी के आरोप में इन सबको पकड़ा था और आरोप था कि ये सभी मोसाद से जुड़े हुए थे। फिर कानूनी प्रक्रिया के तहत उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।
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