जब बिस्मिल-अशफाक और रोशन ने चूमा फांसी का फंदा, इतिहास में अमर हो गए तीनों महानायक
नई दिल्ली। महान स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी इसलिए आज के इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है, आजादी के इन मतवालों को काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए सूली पर चढ़ाया गया था। आपको बता दें कि 9 अगस्त 1925 की रात चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित कई क्रांतिकारियों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया था, खजाना लूटने के बाद चंद्रशेखर आजाद तो पुलिस के चंगुल से बच निकले, लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
अमर शहीद रोशन सिंह
अमर शहीद रोशन सिंह काकोरी काण्ड के सबसे उम्र दराज सदस्य थे, शाहजहांपुर के नेवादा गांव में 22 जनवरी 1894 में जन्मे रोशन सिंह के पिता का नाम जगदीश सिंह उर्फ जंगी सिंह था। रोशन सिंह ने मिडिल तक शिक्षा लेने के बाद एक प्राइमरी स्कूल में शिक्षक की नौकरी भी की थी, नौकरी के दौरान उन्होंने भारतवासियों की दुर्दशा देखी जिसके बाद उनके मन में देश को आजाद करने की उमंग पैदा हुई जो कि जूनून में तब्दील हो गई। उनके बारे में कहा जाता है कि वह एक अचूक निशानेबाज थे। जब वह पकड़े गए और मुकदमा चला तो न्यायाधीश हेमिल्टन ने पहले उन्हें पांच साल के कैद की सजा दी जिसे बाद में बदल कर फांसी कर दिया गया था, उन्हें 19 दिसंबर 1927 को इलाहाबाद के नैनी जेल में फांसी दी गई थी।
स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल
जब-जब काकोरी कांड की बात आती है, तब-तब स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल का नाम तुरंत जहन में आ जाता है। इसके अलावा 1918 के मैनपुरी कांड में भी बिस्मिल ने बड़ी भूमिका निभाई थी। बिस्मिल वो नाम है, जिसने महज 30 साल की उम्र में देश के लिये इतना कुछ कर दिया, जिसे करना आज भी किसी के लिए आसान नहीं है, राम प्रसाद 'बिस्मिल' एक बेहतरीन लेखक भी थे। और उनका गीत सरफरोशी की तमन्ना... आज भी जब लोग सुनते हैं, तो शरीर में एक अजब सी ऊर्जा दौड़ जाती है।
अशफाक उल्ला खां
अशफाक उल्ला खां का जन्म शाहंजहांपुर में हुआ था, उन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, अशफाक उल्ला खां उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे, अशफाक उल्ला खां और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल गहरे मित्र थे, एक रोचक किस्सा उन दोनों का काफी मशहूर हुआ था, दरअसल एक दिन स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मन्दिर शाहजहांपुर में बिस्मिल के पास किसी काम से गये। अशफाक उस वक्त शायराना मूड में थे और अचानक जिगर मुरादाबादी की चंद लाइनें गुनगुनाने लगे लाइनें थीं- "कौन जाने ये तमन्ना इश्क की मंजिल में है, जो तमन्ना दिल से निकली फिर जो देखा दिल में है।।"
क्यों राम भाई! मैंने मिसरा कुछ गलत कह दिया क्या?
बिस्मिल सुन कर मुस्कुरा दिए, अशफाक को अटपटा लगा और कहा,'क्यों राम भाई! मैंने कुछ गलत कह दिया क्या?' बिस्मिल ने जबाब दिया- नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया! यह बात नहीं। मैं जिगर साहब की बहुत इज्जत करता हूं मगर उन्होंने मिर्ज़ा गालिब की पुरानी जमीन पर घिसा पिटा शेर कहकर कौन-सा बडा तीर मार लिया, कोई नयी रंगत देते तो मैं भी इरशाद कहता।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना बाजु ए-कातिल में है?
उस वक्त अशफाक को कुछ अच्छा नहीं लगा और चुनौती भरे अंदाज में कहा, "तो राम भाई! अब आप ही इसमें गिरह लगाइये, मैं मान जाऊँगा आपकी सोच जिगर और मिर्ज़ा गालिब से भी उच्च दर्जे की है। बिना कुछ बोले राम प्रसाद बिस्मिल' ने कहा- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजु ए-कातिल में है?, यह सुनते ही अशफाक भावविभोर हो गये और बिस्मिल को गले लगा लिया। फिर बोले - "राम भाई! मान गये; आप तो उस्तादों के भी उस्ताद हैं।"
क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी
क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने गोंडा की धरती पर हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगा लिया था, फांसी पर चढ़ने से पहले उन्होंने फंदे को चूमा फिर भारत माता को नमन किया था, उन्होंने कहा था कि मैं मरने नहीं जा रहा बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।
यह भी पढ़ें: कभी-कभी लगता है कि काश मैं पाकिस्तान में पैदा होता: सोनू निगम