ओमिक्रॉन के बढ़ते ख़तरे के बीच, घर पर जाँच करने वाले कोरोना किट कितने ज़रूरी?
कोरोना के बढ़ते ख़तरे के बीच कई लोग अब घर पर किट ला कर ही टेस्ट कर रहे हैं. जानिए क्या है इसके इस्तेमाल का सही तरीका और कब ग़ैर ज़रूरी हो जाती है ऐसी टेस्टिंग.
कोरोना की तीसरी लहर के बीच कोरोना टेस्ट किसे करवाना चाहिए और किसे नहीं - इस बारे में भारत सरकार ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं.
अब अगर आपको कोरोना के लक्षण नहीं है और आप बस टेस्ट इस वजह से कराना चाहते हैं कि आप हाल फिलहाल में ऐसे किसी के सम्पर्क में आए हैं जो कोविड पॉज़िटिव रहा है तो आपको टेस्ट कराने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन अगर आपको दूसरी बीमारी है और आपकी उम्र 60 साल से ऊपर है तो आप कोरोना टेस्ट करा सकते हैं.
भारत सरकार की नई गाईडलाइन के मुताबिक़ होम आइसोलेशन के दिन पूरे होने के बाद या फिर अस्पताल से डिस्चार्ज होने के वक़्त या फिर एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा के वक़्त भी कोविड19 टेस्ट कराने की ज़रूरत नहीं है.
दूसरी तरफ़ आंकड़े बता रहे हैं कि रोज़ाना बढ़ते नए मामलों के बीच घर पर टेस्ट किट लाकर कोरोना जाँच करने वालों की तादाद दिनों दिन बढ़ती जा रही है.
ऐसे ही एक टेस्ट किट कंपनी माईलैब्स के मैनेजिंग डायरेक्टर हंसमुख रावल ने बीबीसी को बताया कि दिसंबर के अंत से लेकर जनवरी के पहले हफ़्ते में घर पर कोविड 19 की जाँच करने वाली टेस्ट किट की बिक्री 400-500 प्रतिशत बढ़ी है.
ग़ौरतलब है कि कोरोना की घर पर जाँच करने वाले टेस्ट किट को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर की मंजूरी पिछले साल मई के अंत में मिली थी. तब कोरोना की दूसरी लहर का पीक लगभग जा चुका था. ऐसे लगभग सात किट बाज़ार में उपलब्ध हैं.
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कैसे काम करते हैं ये किट?
किट के सही इस्तेमाल के निर्देश सरकार ने जारी किए हैं, लेकिन कई जानकार इसके इस्तेमाल से जुड़ी दिक़्कतों के बारे में अब आगाह कर रहे हैं.
घर बैठे इस किट के ज़रिए कोरोना की जाँच के लिए ज़रूरी है कि लोग पहले गूगल प्ले-स्टोर या एप्पल स्टोर पर होम टेस्टिंग की जानकारी देने वाले मोबाइल ऐप को डाउनलोड करें. फिर उस पर अपना पंजीकरण करें.
जाँच किट में एक स्वॉब स्टिक, एक सॉल्यूशन, एक टेस्ट कार्ड और टेस्ट कैसे करना है उससे जुड़ा एक मैनुअल होता है.
स्वॉब स्टिक से पहले सैम्पल लें, फिर सैम्पल को सॉल्यूशन के अंदर मिलाएं. बाद में टेस्ट कार्ड पर उसकी एक बूंद डाली जाती है.
15 मिनट में अगर टेस्ट कार्ड पर दो लाल लकीर ( सी और टी ) दिखाई देती है तो रिजल्ट पॉज़िटिव माना जाता है और एक लाल लाइन (सी) आने पर रिजल्ट को निगेटिव माना जाता है.
घर पर जाँच कर रहे सभी लोगों को टेस्ट की तस्वीर मोबाइल फ़ोन के ज़रिये ऐप में अपलोड करना अनिवार्य भी है. लेकिन कई लोग टेस्ट रिजल्ट की सूचना सरकार को दिए बिना भी टेस्ट किट का इस्तेमाल कर रहे हैं.
यही वजह है कि जानकार मान रहे हैं कि नई लहर के बीच रोजाना आने वाले नए मामलों की संख्या असल संख्या नहीं है.
हालांकि माईलैब्स के मैनेजिंग डायरेक्टर हंसमुख रावल कहते हैं, "अगर RTPCR टेस्ट में पॉज़िटिव आने पर भी भारत सरकार आपके विवेक पर छोड़ती है कि आप आइसोलेशन के नियमों का पालन करेंगे, उसी तरह से घर पर जाँच करने वाली किट बनाने वाली कंपनी भी ये मान कर चलती है कि जनता कोविड नियमों का पूरी तरह पालन करेगी और अपना रिपोर्ट साइट पर अपलोड करेगी. हम पैकेट में भी लिखते हैं और प्रचार सामाग्री के ज़रिए भी लोगों को बताते हैं."
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दिक्क़त कहाँ आ सकती है?
दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉक्टर जुगल किशोर ने बताया कि टेस्ट किट के इस्तेमाल में क्या दिक्कते हैं.
डॉक्टर किशोर कहते हैं, "ये टेस्ट RTPCR टेस्ट की तरह गोल्ड स्टैंडर्ड टेस्ट नहीं हैं. घर पर टेस्ट कर पॉज़िटिव आने पर लोगों में स्ट्रेस ही बढ़ता है. इसका कोई 'क्लिनिकल लाभ' नहीं मिलता है. और हर बार सही रिपोर्ट आए, इसकी भी गारंटी नहीं होती. कई लोग घर पर टेस्ट कर रहे हैं, पॉज़िटिव आने पर अपना टेस्ट रिजल्ट अपलोड नहीं कर रहे हैं और इस वजह से ऐसे मामलों की ट्रैकिंग और ट्रेसिंग में दिक्क़त का सामना करना पड़ रहा है. इस वजह से सरकार ने इतनी मेहनत से जो सर्विलेंस सिस्टम खड़ा किया है, वो कमजोर होगा. इस वजह से हम पुरानी कोरोना की स्थिति में पहुँच सकते हैं."
हालांकि डॉक्टर किशोर साथ में ये भी जोड़ते हैं कि इस तरह के टेस्ट किट व्यक्ति को एम्पॉवर यानी सशक्त ज़रूर बनाता है कि वो अपना टेस्ट ख़ुद कर सके. लेकिन वो साथ में जोड़ते हैं कि बीपी की मशीन हो या फिर शरीर का तापमान थर्मामीटर से मापना - इन सब अविष्कारों ने दूसरी तरह से लोगों की मदद की है.
वो आगे कहते हैं, "पब्लिक हेल्थ में किसी चीज़ के इस्तेमाल के लिए जब भी मंजूरी दी जाती है तो उसमें कई चीज़ों को तोलने की ज़रूरत होती है. पब्लिक हेल्थ से जुड़े फैसलों में सरकार का दखल होता है और लोगों का पैसा लगा होता है और सबसे बड़ी बात जनता का स्वास्थ्य दांव पर होता है."
इस तरह के घर पर जाँच करने वाली किट में निगेटिव रिजल्ट आने पर RTPCR टेस्ट ज़रूर कराने की सलाह दी जाती है. लेकिन पॉज़िटिव रिजल्ट आने पर बीमारी की गंभीरता के हिसाब से अस्पताल या फिर घर पर आइसोलेट करने की सलाह दी जाती है.
लेकिन कुछ डॉक्टरों का कहना है कि ये टेस्ट किट आसानी से सस्ती दरों पर उपलब्ध होने की वजह से लोग घर पर टेस्ट कर पॉज़िटिव होने पर अस्पताल में भर्ती होना चाह रहे हैं, जिससे अस्पतालों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है.
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सही इस्तेमाल
पर कुछ डॉक्टर इस टेस्ट किट को अच्छा भी मानते हैं. डॉक्टर सुनीला गर्ग सरकार के कोविड टास्क फोर्स की सदस्य भी है.
वो कहती हैं, "अब लोगों को टेस्ट के लिए लाइन में लगने और इंतजार की ज़रूरत नहीं है. कई बार अस्पताल जाकर टेस्ट कराने के चक्कर में लोग कोरोना का शिकार भी हो जाते हैं. इस टेस्ट किट से वो झंझट ख़त्म हो जाता है. स्वास्थ्य तंत्र पर बोझ कम पड़ता है. और कई दिनों तक रिपोर्ट का इंतजार भी नहीं करना पड़ता है. दाम कम होने की वजह से टेस्ट दोबारा करने में भी कोई दिक़्क़त नहीं होती है. 6 घंटे के अंतराल में दो बार भी इसे किया जा सकता है."
लेकिन डॉक्टर सुनीला मानती है कि इस टेस्ट किट के इस्तेमाल के बाद लोग रिजल्ट को अपलोड नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से सही आँकड़े जुटाने में दिक़्क़त बढ़ सकती है.
उनके मुताबिक, "इसके लिए जनता को अपनी आदतें बदलनी होगी. सरकार ही सब कुछ नहीं कर सकती. कोविड एक बीमारी है, लेकिन लोग अब भी इसे एक कलंक या धब्बा मानते हैं और छुपाते हैं, ये सही नहीं है. कुछ जिम्मेदारी किट बेचने वाले दुकानों पर भी डाली जा सकती है, ताकि वो लोगों को जागरुक करें, लोग किस तरह आसानी से अपनी जाँच रिपोर्ट अपलोड कर सकते हैं."
पॉज़िटिव आते ही अस्पताल में भर्ती होने की बात पर वो कहती हैं, "इसके लिए केवल घर पर जाँच करने वाली किट ही जिम्मेदार नहीं है. कोरोना के इलाज में बीमा का आसानी से उपलब्ध होना भी इसके पीछे एक वजह है. इस वजह से प्राइवेट अस्पतालों में दाखिले ज़्यादा है और सरकारी में कम."
सुनीला गर्ग कहती हैं, "कोरोना की तीसरी लहर और ओमिक्रॉन के ख़तरे के बीच कहा जा रहा है कि इस तीन गुना तेज़ी से संक्रमण फैल रहा है. ऐसे में सब पॉज़िटिव मामले की RTPCR जाँच के आदेश होते ही पूरा तंत्र चरमरा सकता है. अभी भी इतने बड़े स्तर पर कोरोना जाँच की क्षमता भारत में नहीं है."
इस वजह से सरकार ने टेस्टिंग और आइसोलेशन के लिए नई गाइडलाइन जारी की है.
जानकारों का मानना है कि घर पर कोरोना जाँच में कोई बुराई नहीं है लेकिन इसका सही तरीके से इस्तेमाल करने और बेवजह घबराने की ज़रुरत नहीं है.
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