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Bhakra Railway: 73 वर्षों से इस ट्रेन में नहीं लगता कोई किराया, सबके लिए फ्री क्यों है सेवा ? जानिए

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नई दिल्ली, 11 मई: ट्रेन में सफर करते हुए आपने भी देखा होगा कि कई बार किसी वजह से बिना टिकट के यात्रा करने वाले यात्रियों की क्या हालत होती है। उन्हें टीटीई के सामने कई तरह के बहाने बनाने पड़ते हैं, मिन्नतें करनी पड़ती हैं। ज्यादातर समय जुर्माने के तौर पर मोटी रकम देकर टिकट बनवाना पड़ता है। लेकिन, देश में दशकों से एक ऐसी ट्रेन भी चल रही है, जिसमें टिकट लेने का झंझट ही नहीं है। जिनती बार मन करे सफर कीजिए और आपको एक भी पैसे नहीं देने पड़ेंगे। इस रेलवे की कहानी काफी रोचक है, तो यह अपने देश की एक महत्वपूर्ण विरासत भी बन चुकी है। इसलिए ट्रेन के संचालन पर काफी खर्च आने के बावजूद, मुफ्त वाली यह सेवा अबतक बरकार रखी गई है।

73 वर्षों से मुफ्त मिल रही है यह ट्रेन सेवा

73 वर्षों से मुफ्त मिल रही है यह ट्रेन सेवा

देश में हर साल हजारों रेल यात्री बिना टिकट यात्रा करते हुए पकड़े जाते हैं। लेकिन, देश में एक ऐसी भी ट्रेन है, जिसमें यात्रा करने के लिए कोई टिकट की आवश्यकता नहीं है। आप जितनी बार सफर करना चाहे करें, न तो आपसे कोई टिकट मांगेगा और ना ही कोई टीटीई टिकट चेक करने के लिए आएगा। भाखड़ा रेलवे यात्रियों को यह सेवा 73 वर्षों से इसी तरह से मुफ्त में उपलब्ध करवा रहा है। यह सुनकर यकीन करना मुश्किल लगता है, लेकिन पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर नांगल और भाखड़ा के बीच यकीनन इस स्पेशल ट्रेन सेवा का किराया नहीं लिया जाता।

रोजाना करीब 300 लोग करते हैं सफर

रोजाना करीब 300 लोग करते हैं सफर

भारतीय रेलवे से हर दिन लगभग सवा दो लाख से ज्यादा यात्री सफर करते हैं। यूं समझ लीजिए कि देश का सबसे बड़ा ट्रांस्पोर्टर रोजाना ऑस्ट्रेलिया जितनी आबादी को ढोता है। लेकिन, एक को भी मुफ्त में यात्रा करने का मौका नहीं मिलता। लेकिन, 1948 में बना भाखड़ा रेलवे हमेशा से यात्रियों की सेवा में तैनात है और वह भी बिल्कुल फ्री। आज की तारीख में इस ट्रेन से हर दिन लगभग 300 लोग सफर करते हैं। ये रेल यात्री मुख्य तौर पर आसपास के 25 गांवों के लोग और डैम के कर्मचारी हैं। इनके अलावा स्कूल जाने वाले बच्चों की भी संख्या अच्छी खासी है।

1948 में स्थापित हुआ भाखड़ा रेलवे

1948 में स्थापित हुआ भाखड़ा रेलवे

दरअसल, 1948 में भाखड़ा रेलवे को इसलिए स्थापित किया गया था कि भाखड़ा-नांगल डैम के निर्माण के समय नांगल और भाखड़ा के बीच आवाजाही का कोई तरीका उपलब्ध नहीं था। इसलिए विशेष रेलवे की आवश्यकता महसूस की गई। इंडियन रेल इंफो के मुताबिक इसी को देखते हुए रेल ट्रैक बिछाने का फैसला हुआ, ताकि भारी उपकरणों के साथ-साथ लोगों की आवाजाही को भी सुगम बनाया जा सके। शुरुआत में ये ट्रेन स्टीम इंजन से चलती थी। लेकिन, 1953 में अमेरिका से तीन आधुनिक इंजन मंगाए गए।

नांगल स्टेशन से दो बार निकलती है ये ट्रेन

नांगल स्टेशन से दो बार निकलती है ये ट्रेन

भारतीय रेलवे ने अब तक इस रेलवे के लिए इंजनों के पांच प्रकार प्रस्तावित भी किए हैं, लेकिन यह स्पेशल ट्रेन आज भी 60 साल पुराने इंजन के भरोसे ही यात्रियों की मुफ्त सेवा में लगी हुई है। अब इस ट्रेन के टाइम-टेबल भी देख लीजिए। ताकि कभी मौका मिले तो इस शानदार यात्रा का लुत्फ उठायी जा सके। यह ट्रेन रोजाना सुबह 7.05 पर नांगल रेलवे स्टेशन से निकलती और 8.20 बजे भाखड़ा पहुंच जाती है। दोपहर बाद 3.05 पर यह फिर से नांगल से चलती है और शाम 4.20 बजे यात्रियों को भाखड़ा रेलवे स्टेशन पर उतार देती है।

लकड़ियों के बने हुए हैं कोच

लकड़ियों के बने हुए हैं कोच

भाखड़ा-नांगल के बीच की यह ऐतिसाहिसक ट्रेन कुल 13 किलोमीटर का रूट तय करती है। इस दौरान यात्रियों को शिवालिक पहाड़ों के सुंदर नजारों का आनंद उठाने का भी मौका मिलता है। जानकारी के मुताबिक इस यात्रा में प्रति घंटे 18 से 20 गैलन डीजल की खपत होती है। लेकिन, भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) ने फिर भी इस सेवा को मुफ्त ही रखा है। इस ट्रेन के कोच में लकड़ियों का इस्तेमाल काफी ज्यादा है और यात्रियों के अलावा किसी भी हॉकर की आवाजाही नहीं दिखती।

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इस वजह से अबतक फ्री है यह रेल सेवा

इस वजह से अबतक फ्री है यह रेल सेवा

इंडियन रेल इंफो के मुताबिक 2011 में बीबीएमबी अधिकारियों ने वित्तीय चुनौतियों की वजह से इस फ्री सेवा को खत्म करने का विचार किया था। लेकिन, बाद में इस विचार को इस लिए त्याग दिया कि यह ट्रेन कमाई के लिए नहीं चलाई जाती, बल्कि यह विरासत और परंपरा को सहेजने के लिए चलाई जा रही है। (भाखड़ा रेलवे से जुड़ी तस्वीरें सौजन्य- यूट्यूब वीडियो और बाकी प्रतीकात्मक)

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English summary
Bhakra Railway is providing free services to the passengers for the last 73 years. No ticket is required to travel in this train. This train is running to save the heritage
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