बिहार: पिता का उठ चुका है साया, मां ने दिया हौसला, बतौर ऑल राउंडर गेंदबाज T-20 में खेलेंगी सरिता
बिजवारा गांव (केवटी प्रखंड, दरभंगा) निवास सरिता का सेलेक्शन अंडर-19 महिला टी-20 टीम (बिहार) लिए हुआ है। 40 सदस्यीय प्रिपरेटरी कैंप में बतौर ऑलराउंडर गेंदबाज सरिता ने टीम में अपनी जगह बनाई है।
दरभंगा, सितंबर 2022। हिंदुस्तान में क्रिकेट का क्रेज़ हर युवाओं में है, फिर चाहे वह युवक हो या युवती क्रिकेट में दिलचस्पी सभी की होती है। वहीं जब क्रिकेट में कैरियर बनाने की बात आए तो बहुत कम ही युवाओं को कामयाबी मिल पाती है। बिहार के दरभंगा जिले के छोटे से गांव की रहने वाली बेटी सरिता के संघर्ष की कहानी कुछ ऐसी ही है। सिर पर पिता का साया नहीं है, परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। इसके बावजूद सरिता अपने सपने को साकार करने जुनून लिए आगे क़दम बढ़ा रही हैं। सरिता के कामयाबी के पीछे उनकी मां का काफी योगदान है।
ट्रेन से सफर कर करती हैं क्रिकेट प्रैक्टिस
बिजवारा गांव (केवटी प्रखंड, दरभंगा) निवास सरिता का सेलेक्शन अंडर-19 महिला टी-20 टीम (बिहार) लिए हुआ है। 40 सदस्यीय प्रिपरेटरी कैंप में बतौर ऑलराउंडर गेंदबाज सरिता ने टीम में अपनी जगह बनाई है। सरिता के परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने के बावजूद उन्होंने क्रिकेट टीम में जगह बनाई है। ग्रामीणों ने बताया कि सरिता क्रिकेट की प्रैक्टिस के लिए सरिता 15 किलोमीटर ट्रेन से सफर कर कैंप में खेलने जाती है। उन्होंने कहा कि पिता का साया नहीं होने से अकसर लड़किया अपने हौसले की उड़ान नहीं भर पाती हैं।
'बचपम से खेल में थी दिलचस्पी'
स्थानीय लोगों ने कहा कि सरिता ने सारी परेशानियों को मात देते हुए टीम में जगह बनाई है। यह गांव से लेकर पूरे प्रदेश के लिए गर्व की बात है। सरिता की मां रामपरी देवी ने बताया कि सरिता बचपन से ही खेल-कूद में खूब दिलचस्पी रखती थी। बेटी को कामयाब होता देख खुशी महसूस हो रही है। वह इसी तरह कामयाब होते हुए देश के लिए भी खेलेगी। रामपरी देवी (सरिता की मा) ने कहा कि उसके पिता भोला मांझी तो इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन वह होते तो बेटी की सफलता पर काफी खुश होते।
यूनिवर्सिटी लेवल पर उपकप्तान रह चुकी हैं सरिता
आपको बता दें कि स्टेट टीम में चयन होने से पहले सरिता यूनिवर्सिटी लेवल पर उपकप्तान रह चुकी हैं। सुजीत ठाकुर (सरिता के क्रिकेट ट्रेनर) ने बताया कि सरिता काफी मेहनती है। उसके खेल में भी काफी अच्छा प्रदर्शन रहा है। ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी खेल में भी उनका बेहतरीन प्रदर्शन रहा है। अब सरिता स्टेट टीम में खेलेगी, यह पूरे कैंप के लिए गर्व की बात है। सरिता ने अपने जुनून से सपने को साकार करने लिए क़दम बढ़ाया है और काम भी हो रही है।
मुकेश के सिर पर भी नहीं है पिता का साया
बिहार के गोपालगंज जिला के क्रिकेट खिलाड़ी मुकेश कुमार के संघर्ष की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से उनके पिता काशीनाथ सिंह ऑटो चलाते थे। मुकेश क्रिकेट खेलते थे तो उनके पिता और चाचा की डांट सुननी पड़ती थी। गोपालगंज जिले के काकड़कुंड गांव निवासी मुकेश कुमार बंगाल से रणजी ट्रॉफी खेल चुके हैं । पहली बार उन्हें इंडिया-ए टीम में जगह मिली है। उन्होंने न्यूजीलैंड-ए के खिलाफ पहले 'अनाधिकृत' टेस्ट मैच में शानदार प्रदर्शन कर बल्लेबाज़ों के छक्के छुड़ा दिए। आपको बता दें कि चार दिन का डेब्यू मैच 4 सिंतबर तक चिन्नस्वामी स्टेडियम (बैंगलुरू) में खेला गया था।
मुकेश ने क्रिकेट में किया नाम रोशन - ग्रामीण
मुकेश के बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि वह बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौकीन था, वह गांव ( काकड़कुंड ) की गलियों में ही क्रिकेट खेलने लग जाया करता थै। बचपन में क्रिकेट खेलने के जुनून में उसके पिता काशीनाथ सिंह से मुकेश को काफी डांट भी सुननी पड़ती थी। वही चाचा कृष्णा सिंह भी उसके क्रिकेट खेलने के खिलाफ थे। मुकेश के सिर से पिता का साया तो उठ गया लेकिन चाचा कृष्णा सिंह आज भी मुकेश के बचपन की बातों को बताते हुए भावुक हो जाते हैं। उनका कहना है कि मुकेश बहुत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखता है, इसके बावजूद क्रिकेट में नाम रोशन कर सभी लोगों को गौरवांवित कर रहा है।
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