क्या ओवैसी की पार्टी AIMIM ने तेजस्वी को CM बनने से रोका ? जानिए सच्चाई
पटना- एआईएमआईएम के लिए बिहार का तीसरा चुनाव भाग्यशाली साबित हुआ है। वह बिहार के सीमांचल इलाके में 5 सीटें जीतने में कामयबा रही है। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी बिहार के सीमांचल इलाकों की कुछ सीटों पर प्रभावशाली मानी जाती रही है। इस बार के चुनावों में उनकी पार्टी ने मुख्य तौर पर चुनावी रैलियों में महागठबंधन को निशाना बनाया। क्योंकि, उनका दावा है कि राजद-कांग्रेस ने इलाके की ज्यादा नुमाइंदगी की है, लेकिन इस क्षेत्र की उन्होंने हमेशा उपेक्षा की है। इसके अलावा उन्होंने एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों को भी उठाया। यही वजह है कि कांग्रेस और राजद की ओर से उन्हें वोट कटवा कहा जा रहा है और दावा किया जा रहा है कि उन्हीं की वजह से तेजस्वी यादव की कुर्सी दूर हो गई। लेकिन, आइए समझते हैं कि क्या ऐसा वाकई में हुआ है या फिर तथ्य कुछ और ही हैं।
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सीमांचल क्षेत्र में मजबूती से चुनाव लड़ने के चलते आरजेडी-कांग्रेस जैसी पार्टियां ओवैसी की पार्टी को भाजपा की बी टीम कहती रही हैं। उनका आरोप है कि एआईएमआईएम उनके सेक्युलर वोटों में सेंध लगाता है। मसलन, कांग्रेस एमएलसी प्रेम चंद्र मिश्रा का दावा है कि सीमांचल क्षेत्र में ओवैसी की पार्टी ने ही महागठबंधन का खेल खराब किया है। उनके मुताबिक, 'ओवैसी ने मोटे तौर पर उस इलाके में एनडीए की मदद की है, जिसे की महागठबंधन का गढ़ माना जाता था।' राजद के चितरंजन गगन भी ऐसा ही दावा करते हैं। लेकिन, जिन सीटों पर ओवैसी की पार्टी चुनाव लड़ी है अगर उनपर नजर डालें तो महागठबंधन को उन्हीं सीटों का असल में नुकसान हुआ है, जहां एआईएमआईएम चुनाव जीत गई है। मुश्किल से ही ऐसी कोई सीट है, जहां ओवैसी की पार्टी को मिला वोट महागठबंधन की उम्मीदवार की हार के अंतर से बहुत ज्यादा है, जैसा कि एनडीए के केस में दर्जनों सीटों पर लोजपा की वजह से देखा जा सकता है।
इस बार के चुनाव में एआईएमआईएम ने 14 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उसने बसपा और रालोसपा के साथ गठबंधन के तहत सीमांचल की 24 में से 20 पर चुनाव लड़ा है। इनमें से ओवैसी की पार्टी अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बहादुरगंज और बायसी की सीट जीती है। लेकिन, बाकी सीटों पर चुनाव परिणामों का विश्लेषण करने पर हमने पाया है कि उसको मिले वोट (बसपा-रालोसपा के समर्थन के बावजूद) इतना नहीं है, जिसने महागठबंधन को सत्ता के रास्ते में ग्रहण लगाया हो। मसलन, बरारी सीट को ही लीजिए। यहां जदयू का प्रत्याशी राजद उम्मीदवार से 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीता है। जबकि, यहां एआईएमआईएम के उम्मीदवार को सिर्फ 6,598 वोट मिले हैं। इसी तरह रानीगंज सीट में ओवैसी के चलते महागठबंधन की हार नहीं मानी जा सकती। यहां एआईएमआईएम को मिले वोट से राजद की हार का अंतर सिर्फ 108 वोट का है। लेकिन, यह नहीं भूलना चाहिए कि एआईएमआईएम के साथ बसपा और रालोसपा का भी गठबंधन था। इसके ठीक उलट ओवैसी के उम्मीदवार की मौजूदगी के बावजूद अररिया, कसबा और मनिहारी जैसी सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवार काफी ज्यादा वोटों से चुनाव जीते हैं।
बिहार की 243 सीटों में से इस बार एनडीए को 125, महागठबंधन-110, लोजपा-01 और अन्य को 7 सीटें मिली हैं।
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