Bihar Election result 2020: बिहार में पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनेगी BJP
पटना- बिहार विधानसभा का इस बार का चुनाव भाजपा के लिए बहुत बड़ा चुनाव साबित होते दिख रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के लिए हिंदी भाषी उत्तर भारतीय राज्य बिहार में जदयू के छोटे भाई वाली हैसियत से बाहर निकलने की संभावना जग गई है। चुनाव आयोग के ताजा रुझान के मुताबिक 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बीजेपी के उम्मीदवार 77 सीटों पर या तो बढ़त बनाए हुए हैं या फिर चुनाव जीत चुके हैं। अगर अंतिम दौर की मतगणना तक यही ट्रेंड कायम रहा तो पहली बार बिहार में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा मिलना तय है। इस चुनाव में भाजपा को अबतक करीब 20 फीसदी वोट मिलते नजर आ रहे हैं। जबकि, दूसरे नंबर पर राजद है, जिसके उम्मीदवार 67 सीटों पर या तो आगे हैं या जीत चुके हैं। इस तरह से रुझानों के हिसाब से भाजपा और राजद में 10 सीटों से ज्यादा का अंतर नजर आ रहा है। वहीं सत्ताधारी जेडीयू तीसरे नंबर पर खिसकर 44 सीटों पर आगे चल रही है।
इस बार के चुनाव में सहयोगी जदयू के साथ समझौते के तहत बीजेपी को 121 सीटें प्रत्याशी उतारने के लिए मिली थी। उनमें से 11 सीटें उसने विकासशील इंसान पार्टी को प्रत्याशी उतारने के लिए दे दिए। इस तरह से भाजपा सिर्फ 110 सीटों पर चुनाव मैदान में रही। जबकि, जेडीयू ने बड़े भाई की हैसियत से एक ज्यादा सीट यानि 122 बीजेपी से तालमेल में प्राप्त किया था। बाद में उसने अपने सहयोगी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को चुनाव लड़ने के लिए 7 सीटें दे दीं और खुद 115 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी।
वैसे 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजपी ने जेडीयू के साथ तालमेल में सिर्फ 102 सीटों पर ही चुनाव लड़कर 91 सीटों पर कब्जा किया था। लेकिन, तब जदयू सबसे बड़ी पार्टी थी और उसके 115 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। यही वजह है कि जब 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने भाजपा से किनारा किया था तो विरोधी दलों के रणनीतिक सहयोग और निर्दलीयों के दम पर उनकी सरकार बच गई थी। उस चुनाव में बीजेपी को 16.49% वोट मिले थे। लेकिन, 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा अलग-अलग लड़ी थी और 157 सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा ने केवल 53 सीटें जीती थी।
भाजपा के बड़े नेताओं ने पूरे चुनाव अभियान में एक बाद दोहराया है कि चाहे उसे ज्यादा सीटें भी मिलें तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। लेकिन, ताजा रुझान बता रहे हैं कि दोनों दलों में जीतने वाले उम्मीदवारों में 20 के आसपास का अंतर रहेगा। ऐसे में सवाल है कि क्या नीतीश कुमार नैतिक तौर पर ऐसी सरकार की कमान संभालने के लिए तैयार होंगे, जिसमें खुद उनकी पार्टी की हैसियत छोटे भाई की हो चुकी है। यही नहीं क्या नीतीश कुमार के लिए भाजपा के साथ इस मानसिक दबाव में सरकार चलाना आसान रहेगा या फिर वह खुद ही भाजपा को अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आमंत्रित कर देंगे और खुद केंद्र की ओर रिटायरमेंट वाली राजनीति की तरफ कदम बढ़ा देंगे। अगर रुझान ऐसे ही रहे तो आने वाले दिनों में इन तमाम मुद्दों पर सवाल उठेंगे और उसपर चर्चा होती रहेगी।