रामविलास पासवान की बरसी : खटक गया नीतीश कुमार का नहीं आना !
पटना, 12 सितंबर: रामविलास पासवान को गुजरे एक साल हो गया। वे इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनका नाम बिहार की राजनीति में अभी भी असरदार है। वे बिहार के 'पोलिटिकल एस्सेट' रहे हैं। उन्हें नदरअंदाज करना मुमकिन नहीं। लोकसभा चुनाव के दौरान जिन नेताओं ने चिराग पासवान के लिए कड़वे बोल बोले थे उन्होंने भी रामविलास पासवान को दिल से श्रद्धांजलि दी। सुशील कुमार मोदी ने सरकार से मांग की है कि रामविलास पासवान की जयंती राजकीय समारोह के रूप में मनायी जाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिये श्रद्धांजलि दी। चिराग से बगावत करने वाले पशुपति कुमार पारस भी आये। यानी रामविलास पासवान आज भी बिहार की राजनीति में ड्राइविंग फोर्स हैं, उनकी श्रद्धाजंलि सभा से ये बात साबित हो गयी।
खटक गया नीतीश कुमार नहीं आना
नीतीश कुमार और चिराग पासवान के रिश्तों की कड़वाहट कम नहीं हुई है। उन्होंने चिराग के न्योते को स्वीकार नहीं किया। नीतीश कुमाऱ रामविलास पासवान की श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने के लिए चिराग के घर नहीं गये। जब कि राज्यपाल फागु चौहान ने चिराग के घर जा कर श्रद्धासुमन अर्पित किये। नीतीश कुमार ने भले कभी रामविलास पासवान से सीधा चुनावी गठबंधन नहीं किया हो लेकिन दोनों करीब 45-46 साल से राजनीति में एक साथ थे। जिस रामविलास पासवान के लिए जेपी ने 1977 में वीटो का इस्तेमाल किया था भला उससे नीतीश कुमार कैसे दूर रहे होंगे।1989 में दोनों एक ही दल से सांसद बन कर केन्द्र सरकार में मंत्री बने थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा और जदयू के बीच सीट बंटारे को लेकर तकरार बढ़ गयी थी तब रामविलास पासवान ने ही सुलह का रास्ता तैयार किया था। कुछ तो बॉन्डिंग रही होगी दोनों में। लेकिन नीतीश कुमार ने केवल प्रेस विज्ञप्ति से एक लाइन की श्रद्धांजलि दी। इस बात को रामविलास पासवान के समर्थक किस रूप में लेंगे, यह अभी मालूम नहीं। चिराग पासवान ने अभी इतना ही कहा है, मैंने बहुत कोशिश की कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मौके पर जरूर मेरे घर आएं।
क्या नीतीश के नहीं आने का मुद्दा तूल पकड़ेगा ?
शोक सभा का आयोजन वह मौका होता है जब गिले-शिकवे की सभी दीवारें अपने आप ढह जाती हैं। निधन के बाद जब रामविलास पासवान का पार्थिव शरीर पटना हवाई अड्डा पर पहुंचा था तब नीतीश कुमार ने वहां पहुंच कर श्रद्धांजलि दी थी। लेकिन पहली बरसी पर उनका नहीं जाना लोजपा को खटक रहा है। चिराग पासवान की बातों से लग रहा है कि वे इस बात को रामविलास पासवान की प्रतिष्ठा से जोड़ सकते हैं। रामविलास पासवान की मौत और एनडीए से अलग होने के बाद भी लोजपा को 2020 के विधानसभा चुनाव में 5.66 फीसदी वोट मिले थे। लोजपा ने अपने इसी वोट प्रतिशत की वजह से नीतीश कुमार को करीब 34 सीटों का नुकसान पहुंचाया था। कहा जाता है कि इसी राजनीतिक प्रतिशोध में जदयू के लोजपा में विभाजन कराया था। उसका मकसद चिराग को कमजोर करना था। लेकिन श्रद्धांजलि सभा में पशुपति कुमार पारस के पहुंचने से राजनीतिक परिस्थितियां बदलती दिख रही हैं। अगर रामविलास पासवान की प्रतिष्ठा का सवाल सामने आएगा तो पशुपति पारस, चिराग के साथ ही रहेंगे। अपने पिता की पहली बरसी पर चिराग ने पारिवारिक एकता प्रदर्शित की है। अगर ये एकता कायम रहती है तो जदयू के लिए कोई भी चुनावी मुकाबला आसान नहीं रहेगा।
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रामविलास पासवान की अहमियत
बिहार की राजनीति में राम रामविलास पासवान खुद का आंकलन किस तरह करते थे ? 1998 में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, "रामविलास पासवान राजनीति का वो पिलर है जिसे कोई गिरा नहीं सकता। जो इस पिलर से टकराएगा, चूर चूर हो जाएगा। मैं बाज हूं। अपना शिकार खुद करता हूं। कुछ लोग सोशल जस्टिस का नारा देंगे लेकिन उसी का अंग-अंग काट देंगे। आदिमी को हाथी की तरह चलना चाहिए। हाथी विशाल है। वह डूब नहीं सकता। फिर भी जब पानी में जाता है तो कदम बढ़ाने से पहले सूंढ़ से पानी का अंदाजा लगाते रहता है। मैं भी सोच समझ कर ही कदम उठाता हूं।" उनकी कुछ बातें अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकती हैं लेकिन ये सच है कि वे बिहार की राजनीति के लिए स्तंभ रहे हैं। उन्होंने लालू यादव और नीतीश कुमार के समकक्ष राजनीति की। अपने 52 साल के राजनीति सफर के बाद अब रामविलास पासवान एक विचार बन चुके हैं। यह विचार दलित राजनीति को हमेशा प्रभावित करेगा। कोई भी राजनीतिक दल हो वह सामाजिक समीकरण में सिडियूल्ड कास्ट की अनदेखी नहीं कर सकता।
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